Monday, January 26, 2009

आज हमारा गणतंत्र ६० वें वर्ष में प्रवेश कर गया है .भारतीय गणतंत्र प्रौढ़ हो गया है .भारतीय संविधान में अनेक संशोधन हो चुके हैं अमेरिकी संविधान से भी ज्यादा .पश्चिमी अवधारणाओं का बोझ लिए चलता हमारा संविधान देश के अनुरूप न होने से कई कमियां भी झेल रहा है .समय समय पर उसमें सुधार प्रक्रिया भी चलती रहती है .और भी सुधार की गुंजाईश आज भी बनी हुई है .संप्रभुता प्राप्त राष्ट्र को अपने ही देश में चुनौती मिलती रहती है ,विलगाव की .अलगाव वादी शक्तियां सर उठाती रहती हैं .जाति , भाषा ,धर्मं ,क्षेत्रीयता जैसे नाग अपना फन उठा फुफकारते रहते हैं .यह बात अलग है की उनकी फुफकार को खास प्रभाव नहीं छोड़ पाती ।
हाँ ,जन तंत्र में तंत्र तो है पर आज जन गायब है .सिर्फ़ चुनाव के समय ही जन दिखाई देते हैं मत के रूप में ,इसके बाद तो जन गायब हो जाता है .कहाँ रह जाता है जनता का ,जनता के लिए ,जनता के द्वारा शासन का जनतंत्रीय रूप .मानो जनता ठगी जाती है ।
भ्रष्टाचार ,भाई भतीजा वाद ,आतंकवाद ,राजनीती में धन बल ,बाहुबल का बढ़ता प्रयोग ,असामाजिक लोगों का प्रभुत्व गणतंत्र में बहुत खटकता है .नेहरू ,जयप्रकाश ,गुलजारी लाल नंदा और लाल बहादुर जैसे महान नेताओं की कमी आज खलती है .कहने को तो गणतंत्र पर कुंवर ,युवराज ,महाराजा जैसे संबोधन जनतंत्र में चुभते हाँ .स्वतंत्र भारत का बदला स्वरुप मनमानी की झलक दिखाता है .बाजार वाद ने जहाँ देश को व्यवसाय और तकनीक में नई दिशाएं दी हैं वहीं भ्रष्ट नेताओं ,हर्षद मेह्ताओं ,तेलगी और सत्यम के राजुओं को भी जन्म दिया है जो रातों रात अमीर बनना चाहते थे .आज ईमानदारी ,नैतिकता को अंगूठा दिखाया जा रहा है .यह बात खलती है । कर्ज करो घी पियो की प्रवृति बढ़ रही है ,परिणाम अमेरिका तो भुगत रहा है ,काश हम बचे रहें ।
तमाम खामियों के बाद भी हमारा गणतंत्र फल फूल रहा है ,यह एक सुखद आश्चर्य है .कामना है कि हमारा गणतंत्र अमर रहे .एक नई सोच ,नया विचार इस देश में जागे जिससे इस गणतंत्र को बल मिले .

1 comment:

Anonymous said...

bahut achachhe hai aapke bichar.