आखिर कब तक ?
सत्य ,शिव और सुंदर
कसौटी पर परखे जायेंगे ।
ईसा ,सुकरात ,गाँधी ,
शूली से ,जहर के प्याले से और ,
गोलियों से कब तक नपता हम पाएंगे .
सत्ता रूपी सुर ,असुर ,
जनता रूपी दधीचि की ,
हड्डियों से बने अस्त्र को लेकर ,
कब तक लड़ते रहेंगे ।
और सत्ता मोह में अंधे ध्रतराष्ट्र,
कब तक देश को निचोड़ते रहेंगे ।
कब तक सीताओं की ,
अग्नि परीक्षा होती रहेगी ।
दहेज़ की बलिवेदी पर ।
आखिर कितनी बलि और चढेगी ।
द्रौपदी चीर हरण की कथा ,
कब तक चलती रहेगी ।
ईर्ष्या, द्वेष ,घृणा का अश्वत्थामा ,
कब तक भ्रूण हत्याएं करता रहेगा ।
मस्तक की मणि खोकर भी ,
हमारे रूप में व्याकुल भटकता रहेगा ।
आज कंस हैं ,दुर्योधन हैं ,दुशासन हैं ,
पर कृष्ण सा तारणहार नहीं है ।
स्थिति वहीं की वहीं है ।
क्या फ़िर जन्म लेंगे कृष्ण ,
अर्जुन को सुनायेंगे फ़िर गीता ।
भर जाएगा वह ,जो आज है रीता ।
या फ़िर ,
उनके आने की प्रतीक्षा हम करते रहेंगे ,
या स्वयं कृष्ण बन ,
एक नई सृष्टि रचेंगे ,
आख़िर कब तक ?
Tuesday, February 3, 2009
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1 comment:
a well written verse.
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