कल कार्यालय जाते समय सड़क पर चलते समय एक वाहन को मुड़ते और अपने रास्ते आते देख आगे बढ़ते हुए सहसा ही अस्फुट स्वर में मुंह से गाली निकल गई .ऐसा कई बार हुआ ,यह पहला अवसर नहीं था .विस मुंह से गाली निकलती नहीं है .जाने कहाँ से क्षणिक क्रोध आता है और मुंह से गाली निकल जाती है .सोचता हूँ जिनके मुंह से हमेशा गाली निकलती है ,क्या वे हमेशा क्रोध में रहते होंगे .क्या उनकी मनोस्थिति हमेशा बिगड़ी रहती होगी .जब हमें थोड़ी देर के गुस्से में ही हमारा मन विचलित हो जाता है .
दुःख भी होता है गाली देकर ,शायद अपनी असुरक्षा से घबडाकर हम अपना आपा खो बैठते हैं और यह घटना हो जाती है .जरा जरा सी बात पर गुस्सा कर हम सचमुच ही अपना अहित ही करते हैं .दुःख ,तनाव ,क्रोध को जन्म देकर हम सुखद क्षणों को खो देते हैं .जीवन की खुशियों को व्यर्थ ही गँवा देते हैं .घर ,परिवार ,दपतर,में व्यर्थ की उलझनें पैदा कर दुखों का पिटारा तैयार कर लेते हैं .छोटी छोटी बातों को लेकर ,अपने अहम् की तुष्टि के लिए पूरा वातावरण ग़मगीन बना देते हैं .आपसी विश्वास खो देते हैं .चंद इस तरह के लोग जिमेद्दार होते हैं इस तरह की घटनाओं के लिए .अपने को मसीहा मान कर अपने को पुजवाने के फेर में दूषित वातारण को जन्म देते हैं .ख़ुद परेशानियों से घिरे शायद दूसरो को परेशान देख खुश होते हैं ।
आखिर इन्हें क्या आनंद मिलता है .स्वयं उलझ कर दूसरों को भी उलझाते हैं ,न जाने क्यों ?
Saturday, February 14, 2009
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1 comment:
vilkul yatharth likh rahe hain sir.
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