पंडित प्रदीप की रचना का यह एक पद है .इसमे ईश्वर को संबोधित करते हुए संसार की वर्तमान स्थिति का खाका खींचा गया है .सचमुच आज विश्व किस दिशा में जा रहा है ? आज से पचास वर्षपूर्व के भारत की स्थिति और आज कितना परिवर्तन आ गया है .सामाजिक ,राजनैतिक ,सांस्कृतिक हर पहलू में भारत बदला बदला लगता है .आदर्श ,नैतिकता ,शिष्टाचार मानो कल की बात हो गए हों .इनकी बात करने वाला मानों पिछड़ा कहलाये ।
नेहरू के समय की राजनीती और आज की राजनीती में कितना अन्तर .सिध्दांत की जगह आज अवसरवादिता ने ले लिया है .कल तक के दुश्मन आज एक हो रहे हैं .भ्रष्टाचार आज शिष्टाचार हो गया है .असामाजिक तत्व राजनीती में हावी हैं .धनबली ,बाहुबली आज राजनीती में सिरमौर हैं .अपराधी आज दिशा दे रहे हैं भारतीय राजनीती को ।
चुनाव पूर्व एक दूसरे को गलियां देते हैं ,फ़िर कुर्सी के लिए गलबहियां डाले घूमते हैं .वर्तमान में लोक सभा चुनाव का दौर चल रहा है .अब तक जो नहीं हुआ वह बी देखने को मिल रहा है .सभाओं मेंजुते चप्पल फिंकना आज आम बात हो गई है .एक दूसरे को जलील करना ,अपमानित करना राजनीती का अंग हो गया है ।
चुनाव परिणाम आयेंगे ,फ़िर जोड़ तोड़ की राजनीती शुरू होगी ,दुश्मन एक होंगे ,कुर्सी पकडेंगे .और फ़िर चलेगा राजनीती का पहिया ,भले ही डगमग हो .हम दुहाई देते रहेंगे भारतीय लोकतंत्र की .आदर्शों को अपना जीवन मानने वाला भारत आज कहाँ है ?कितना बदल गया है आज हमारा देश .कितने बदल गए हैं हम .क्या ऐसा ही चलता रहेगा .आशा है की बदलाव आयेगा और सकारात्मक बदलाव .हमारे देश की जनता ,आम जनता बदलेगी इस देश का बिगडा राजनैतिक इतिहास .उम्मीद है विश्वास है हमें .
Friday, May 1, 2009
Sunday, April 5, 2009
नारी शक्ति उपासना पर्व नवरात्री
नवरात्रि पर्व, माँ दुर्गा के नौ रूपों की उपासना का पर्व .नारी शक्ति की उपासना की जाती है इन नौ दिन में .भक्त जन माँ के रूप में देवी की उपासना करते हैं .व्रत रखते है ,उपवास रखते हैं आराधना करते हैं और अपने कुशल क्षेम की याचना करते हैं .देवताओं ने ही अपनी सहायता के लिए माँ का आव्हान किया था और देवी माँ ने उनकी सहायता कर असुरों को पराजित कर उन्हें अभय दान दिया था .कहते हैं भगवान राम ने भी रावन वध के लिए देवी आराधना की थी और वे रावन का वध कर सके ।
इस पर्व के सहारे हम नारी शक्ति की ही तो साधना करते हैं .शक्ति के बिना शिव शव के समान हैं .यह पर्व संदेश देता है नारी के सम्मान का ,उसकी छुपी शक्ति की आराधना का ।
क्या हम सचमुच नारी का सम्मान कर पाए हैं ? समाज ने उसे उसके उचित अधिकार दिए हैं ?नारी पर होते अत्याचार ,कन्या भ्रूण हत्याएं ,दहेज़ के लिए उनकी बलि सचमुच नारी शक्ति का अपमान ही है ।
हमारी देवी आराधना तभी सफल होगी जब हम नारी समाज को उसका उचित अधिकार देंगे .उसको सम्मान की द्रष्टि से देखेंगे .नव रात्रि पर्व को हम समर्पित करें नारी के लिए ,उसके सम्मान के लिए ,हमारा यही संकल्प सही देवी उपासना होगी .तभी माँ भगवती हम सब पर प्रसन्न होगीं .
इस पर्व के सहारे हम नारी शक्ति की ही तो साधना करते हैं .शक्ति के बिना शिव शव के समान हैं .यह पर्व संदेश देता है नारी के सम्मान का ,उसकी छुपी शक्ति की आराधना का ।
क्या हम सचमुच नारी का सम्मान कर पाए हैं ? समाज ने उसे उसके उचित अधिकार दिए हैं ?नारी पर होते अत्याचार ,कन्या भ्रूण हत्याएं ,दहेज़ के लिए उनकी बलि सचमुच नारी शक्ति का अपमान ही है ।
हमारी देवी आराधना तभी सफल होगी जब हम नारी समाज को उसका उचित अधिकार देंगे .उसको सम्मान की द्रष्टि से देखेंगे .नव रात्रि पर्व को हम समर्पित करें नारी के लिए ,उसके सम्मान के लिए ,हमारा यही संकल्प सही देवी उपासना होगी .तभी माँ भगवती हम सब पर प्रसन्न होगीं .
Friday, March 20, 2009
फूटेंगे नव अंकुर
ग्रीष्म काल आता,
धरती ताप से झुलसती ,
पेड़ पौधे तीखे घाम में ,
गरम ,गरम थपेडों से ,
मुरझाये ,झुलसाये लगते .
पात विहीन डालियों संग ,
मानो अपनी व्यथा कहते .
पशु ,पक्षी बेबस हो ,
ताप की पीड़ा सहते ।
आकुल व्याकुल जन ,
छांव ,पानी को तरसते ।
हाँ ,इस भीषण गरमी में ,
किसी को सुकून है ।
शिरीष का खड़ा पेड़ ,
केशरिया फूलों से लदा,
पर वह शांत और ,
मौन है ।
निरखता ,धरती की विपदा ,
पेड़ ,पौधों को मिलती सजा ,
हाँ ,
वह धीरज बंधाता है ।
एक आस जगाता है ।
टलेगा संकट
स्थिर थोड़े ही रहता है ।
देखो मुझे ,अपना दुःख कम करो .
भविष्य के सुखद सपनों को ,
अपनी आंखों में भरो ।
यह तपन ,यह तड़पन ,
जरूर कम होगी ।
इस भीषण गरमी से ही ,
आगे ,धरती की प्यास बुझेगी ।
बिना तपे सोना ,
कहीं खरा होता है ,
छाएंगे मेघ ,वर्षा होगी ।
तुम्हारी पीड़ा ,
अपने आँचल में भर लेगी ।
सारा दुःख ,सारा संकट ,
टल जाएगा ,
धरती हरी भरी हो जायेगी ।
फूटेंगे नव अंकुर ,
तपन की पीडा ,
वर्षा की बूंदों में ,
घुल जायेगी .
धरती ताप से झुलसती ,
पेड़ पौधे तीखे घाम में ,
गरम ,गरम थपेडों से ,
मुरझाये ,झुलसाये लगते .
पात विहीन डालियों संग ,
मानो अपनी व्यथा कहते .
पशु ,पक्षी बेबस हो ,
ताप की पीड़ा सहते ।
आकुल व्याकुल जन ,
छांव ,पानी को तरसते ।
हाँ ,इस भीषण गरमी में ,
किसी को सुकून है ।
शिरीष का खड़ा पेड़ ,
केशरिया फूलों से लदा,
पर वह शांत और ,
मौन है ।
निरखता ,धरती की विपदा ,
पेड़ ,पौधों को मिलती सजा ,
हाँ ,
वह धीरज बंधाता है ।
एक आस जगाता है ।
टलेगा संकट
स्थिर थोड़े ही रहता है ।
देखो मुझे ,अपना दुःख कम करो .
भविष्य के सुखद सपनों को ,
अपनी आंखों में भरो ।
यह तपन ,यह तड़पन ,
जरूर कम होगी ।
इस भीषण गरमी से ही ,
आगे ,धरती की प्यास बुझेगी ।
बिना तपे सोना ,
कहीं खरा होता है ,
छाएंगे मेघ ,वर्षा होगी ।
तुम्हारी पीड़ा ,
अपने आँचल में भर लेगी ।
सारा दुःख ,सारा संकट ,
टल जाएगा ,
धरती हरी भरी हो जायेगी ।
फूटेंगे नव अंकुर ,
तपन की पीडा ,
वर्षा की बूंदों में ,
घुल जायेगी .
Wednesday, March 18, 2009
दोषी कौन ?
आज की तेज भागती ,दौड़ती जिन्दगी में मौत कितनी सस्ती हो गई है, इसका उदाहरण हमें आए दिन होती दुर्घटनाएं देख कर मालूम होता है .गली ,चौराहों ,सडकों पर तेज भागते लोग ,तेज भागती गाडियां मौत को दावत देतीं हैं .सड़क पर पैदल चलता आदमी भी आज सुरक्षित नहीं है .यातायात के बहुत सारे नियम ,कानून बने हुए हैं ,पर उन्हें भी अंगूठा दिखाते लोग भागते जा रहे हैं .धनी मां ,बाप अवयस्क बच्चों को गाड़ी दिला कर सड़कों पर मनो मौत की दौड़ करवा रहे हैं .सड़कों पर सर्कस करते बच्चे हर जगह देखे जा सकते हैं .लाइसेंस नहीं ,सर पर हेलमेट नहीं और कलाबाजी दिखाते ,बच्चे अनो मौत को दावत देते हों ।
हेलमेट का नियम है ,चार पहिया वाहनों के लिए बेल्ट का प्रावधान है ,गाड़ियों की गति की सीमा भी है पर किसे परवाह है इसकी .मरते हैं हमीं , दुर्घटना ग्रस्त होते हैं हमी फ़िर भी लापरवाही ?
ताबड़तोड़ होती सड़क दुर्घटनाएं ,पर हम कोई सबक नहीं लेते .जागते नहीं ,अपने को नियंत्रित नहीं कर पाते . जब दुर्घटनाएं होती हैं ,तब कानूनों को गली दी जाती है ,थानों का घिराव किया जाता है ,अस्पताल तोड़ फोड़ का शिकार होते हैं .हमें अपनी गलती स्वीकार नहीं .बार बार मौत से खेलते हैं पर हममें को सुधार नहीं ।
सिलसिला मनो यूँ ही चलता रहेगा .हम नहीं सुधरेंगे ,हमने ठान रखा है .कानून कायदे शायद बनाये ही जाते हैं तोड़ने के लिए .फ़िर होने दीजिये मौत ,इतना हो हल्ला किसलिए .पुलिस दोषी क्यों ? कानून दोषी क्यों ?
दोषी तो हम हैं पर अपने दोष नजर अंदाज कर हमारी फितरत में नहीं ,दोषारोपण हमारी आदत है .मौत सस्ती जो हो गई है .हम नहीं तो हम किसे दोषी मानें ,दोषी आखिर कौन ?
हेलमेट का नियम है ,चार पहिया वाहनों के लिए बेल्ट का प्रावधान है ,गाड़ियों की गति की सीमा भी है पर किसे परवाह है इसकी .मरते हैं हमीं , दुर्घटना ग्रस्त होते हैं हमी फ़िर भी लापरवाही ?
ताबड़तोड़ होती सड़क दुर्घटनाएं ,पर हम कोई सबक नहीं लेते .जागते नहीं ,अपने को नियंत्रित नहीं कर पाते . जब दुर्घटनाएं होती हैं ,तब कानूनों को गली दी जाती है ,थानों का घिराव किया जाता है ,अस्पताल तोड़ फोड़ का शिकार होते हैं .हमें अपनी गलती स्वीकार नहीं .बार बार मौत से खेलते हैं पर हममें को सुधार नहीं ।
सिलसिला मनो यूँ ही चलता रहेगा .हम नहीं सुधरेंगे ,हमने ठान रखा है .कानून कायदे शायद बनाये ही जाते हैं तोड़ने के लिए .फ़िर होने दीजिये मौत ,इतना हो हल्ला किसलिए .पुलिस दोषी क्यों ? कानून दोषी क्यों ?
दोषी तो हम हैं पर अपने दोष नजर अंदाज कर हमारी फितरत में नहीं ,दोषारोपण हमारी आदत है .मौत सस्ती जो हो गई है .हम नहीं तो हम किसे दोषी मानें ,दोषी आखिर कौन ?
Sunday, March 1, 2009
शिरीष का पेड़
जब आती ग्रीष्म ऋतु,
धरती ताप से झुलसती ,
पेड़ पौधे तीखे घाम से ,
गरम गरम थपेडों से ,
मुरझाये लगते ।
पात विहीन डालियों संग ,
अपनी व्यथा कहते ।
पशु पक्षी बेबस हो ,
गरमी की मर सहते ।
आकुल व्याकुल जन ,
पानी ,छांव को तरसते ।
फ़िर भी भीषण गरमी में ,
किसी को शान्ति ,शुकून है ।
केशरिया फूलों से लदा ,
खड़ा शिरीष का पेड़ ,
पर वह भी मौन है ।
देखता है धरती की विपदा ,
पेड़ पौधों और मानवों की सजा ,
हाँ ,
वह धीरज बंधाता है ।
एक आस जगाता है ।
कहता ,टलेगा संकट ,
स्थिर ,थोड़े ही रहता है ।
देखो मुझे ,अपना गम दूर करो ।
भविष्य के सुखद सपनो को ,
अपनी आंखों में भरो ।
यह तपन ,यह तड़पन ,
जरूर कम होगी ।
आशा रखो ,
इस भीषण गरमी से ही ,
धरती की प्यास बुझेगी ।
छाएंगे मेघ ,वर्षा होगी ।
तुम्हारी पीड़ा ,वह ,
अपने आँचल में भर लेगी ।
सारा दुःख ,सारा संकट ,
टल जाएगा ।
धरती हरी भरी हो जायेगी ।
फूटेंगे नव अंकुर ,
तपन की पीड़ा ,
वर्षा की बूंदों में ,
घुल जायेगी .
धरती ताप से झुलसती ,
पेड़ पौधे तीखे घाम से ,
गरम गरम थपेडों से ,
मुरझाये लगते ।
पात विहीन डालियों संग ,
अपनी व्यथा कहते ।
पशु पक्षी बेबस हो ,
गरमी की मर सहते ।
आकुल व्याकुल जन ,
पानी ,छांव को तरसते ।
फ़िर भी भीषण गरमी में ,
किसी को शान्ति ,शुकून है ।
केशरिया फूलों से लदा ,
खड़ा शिरीष का पेड़ ,
पर वह भी मौन है ।
देखता है धरती की विपदा ,
पेड़ पौधों और मानवों की सजा ,
हाँ ,
वह धीरज बंधाता है ।
एक आस जगाता है ।
कहता ,टलेगा संकट ,
स्थिर ,थोड़े ही रहता है ।
देखो मुझे ,अपना गम दूर करो ।
भविष्य के सुखद सपनो को ,
अपनी आंखों में भरो ।
यह तपन ,यह तड़पन ,
जरूर कम होगी ।
आशा रखो ,
इस भीषण गरमी से ही ,
धरती की प्यास बुझेगी ।
छाएंगे मेघ ,वर्षा होगी ।
तुम्हारी पीड़ा ,वह ,
अपने आँचल में भर लेगी ।
सारा दुःख ,सारा संकट ,
टल जाएगा ।
धरती हरी भरी हो जायेगी ।
फूटेंगे नव अंकुर ,
तपन की पीड़ा ,
वर्षा की बूंदों में ,
घुल जायेगी .
Monday, February 23, 2009
आदिदेव महादेव
महाशिवरात्रि शिव का प्रगटीकरण इस धरा पर . त्रिदेवों में एक ,देवों ,दानवों में समान रूप से सम्मानित ..देवों पर जब जब संकट आया ,संकट मोचक बने महादेव .उदार ,सरल ह्रदय शिव सहज में प्रसन्न होकर वरदान दे देते ,भलेही बाद में उनपर संकट आया हो .भस्मासुर कथा सर्वविदित है .समुद्र मंथन में निकले हलाहल को अपने गले लगाकर नीलकंठ बन गए ,गंगा का वेग अपने सर रखा जिसके कारण ही गंगा धरती पर आ सकी .अवधूत,वैराग्य धारण किए हुए ,त्याज्य वस्तुओं को स्वीकार कर भोले नाथ बने .क्रोध आया तो तीसरा नेत्र खुला .और कामदेव भस्म .रति पर दया दिखाकर मानव में ही कामदेव को स्थापित कर दिया .ऐसे हैं शिव ।
आदिगुरू शंकराचार्य ने शिव स्तुति पर अनेक पद लिखे .रावण का शिव तांडव स्त्रोत रावण की शिव भक्ति का अनुपम उदाहरण है .
आदिगुरू शंकराचार्य ने शिव स्तुति पर अनेक पद लिखे .रावण का शिव तांडव स्त्रोत रावण की शिव भक्ति का अनुपम उदाहरण है .
Saturday, February 14, 2009
न जाने क्यों ?
कल कार्यालय जाते समय सड़क पर चलते समय एक वाहन को मुड़ते और अपने रास्ते आते देख आगे बढ़ते हुए सहसा ही अस्फुट स्वर में मुंह से गाली निकल गई .ऐसा कई बार हुआ ,यह पहला अवसर नहीं था .विस मुंह से गाली निकलती नहीं है .जाने कहाँ से क्षणिक क्रोध आता है और मुंह से गाली निकल जाती है .सोचता हूँ जिनके मुंह से हमेशा गाली निकलती है ,क्या वे हमेशा क्रोध में रहते होंगे .क्या उनकी मनोस्थिति हमेशा बिगड़ी रहती होगी .जब हमें थोड़ी देर के गुस्से में ही हमारा मन विचलित हो जाता है .
दुःख भी होता है गाली देकर ,शायद अपनी असुरक्षा से घबडाकर हम अपना आपा खो बैठते हैं और यह घटना हो जाती है .जरा जरा सी बात पर गुस्सा कर हम सचमुच ही अपना अहित ही करते हैं .दुःख ,तनाव ,क्रोध को जन्म देकर हम सुखद क्षणों को खो देते हैं .जीवन की खुशियों को व्यर्थ ही गँवा देते हैं .घर ,परिवार ,दपतर,में व्यर्थ की उलझनें पैदा कर दुखों का पिटारा तैयार कर लेते हैं .छोटी छोटी बातों को लेकर ,अपने अहम् की तुष्टि के लिए पूरा वातावरण ग़मगीन बना देते हैं .आपसी विश्वास खो देते हैं .चंद इस तरह के लोग जिमेद्दार होते हैं इस तरह की घटनाओं के लिए .अपने को मसीहा मान कर अपने को पुजवाने के फेर में दूषित वातारण को जन्म देते हैं .ख़ुद परेशानियों से घिरे शायद दूसरो को परेशान देख खुश होते हैं ।
आखिर इन्हें क्या आनंद मिलता है .स्वयं उलझ कर दूसरों को भी उलझाते हैं ,न जाने क्यों ?
दुःख भी होता है गाली देकर ,शायद अपनी असुरक्षा से घबडाकर हम अपना आपा खो बैठते हैं और यह घटना हो जाती है .जरा जरा सी बात पर गुस्सा कर हम सचमुच ही अपना अहित ही करते हैं .दुःख ,तनाव ,क्रोध को जन्म देकर हम सुखद क्षणों को खो देते हैं .जीवन की खुशियों को व्यर्थ ही गँवा देते हैं .घर ,परिवार ,दपतर,में व्यर्थ की उलझनें पैदा कर दुखों का पिटारा तैयार कर लेते हैं .छोटी छोटी बातों को लेकर ,अपने अहम् की तुष्टि के लिए पूरा वातावरण ग़मगीन बना देते हैं .आपसी विश्वास खो देते हैं .चंद इस तरह के लोग जिमेद्दार होते हैं इस तरह की घटनाओं के लिए .अपने को मसीहा मान कर अपने को पुजवाने के फेर में दूषित वातारण को जन्म देते हैं .ख़ुद परेशानियों से घिरे शायद दूसरो को परेशान देख खुश होते हैं ।
आखिर इन्हें क्या आनंद मिलता है .स्वयं उलझ कर दूसरों को भी उलझाते हैं ,न जाने क्यों ?
Wednesday, February 11, 2009
समाज के कोढ़
पत्नी ,चार बेटियाँ और तीन बेटों के साथ वह अपना जीवन यापन कर रहा था .स्वयं दिन में सत्तर ,अस्सी रूपये की मजदूरी और बड़े बेटे के द्वारा किए गए काम के एवज में रोज के कुछ रुपये ,यही आय का साधन था ।
खींचता रहा किसी तरह वह अपने परिवार की गाडी .मंहगाई के इस दौर में उसकी परिवार गाथा अद्भुत और दुखदाई है .परिवार का बोझ ढोना उसे भरी पड़ रहा था .तभी तो एक दिन वह अपनी पत्नी ,चारों बेटियों को जहर देता है ,हाँ बेटों को वह बख्श देता है ,जाने क्यों .जहर का असर न होते देख चाकू की मदद से उनका गला रेतता है वह और स्वयं पर भी चाकू का वार करता है आत्महत्या के लिए ।
दुखद घटना में दो बेटियाँ वहीं मर जाती हैं ,बाकी परिजन और वह स्वयं अस्पताल में दाखिल होते हैं .पत्नी का भी इंतकाल हो जाता है वह और दो बेटियाँ जीवन से संघर्ष कर अभी जिन्दा हैं ।
शफीक नाम है उसका जिसने यह भीषण और अमानुषिक कार्य किया .यह वीभत्स घटना भोपाल की है .बयान लिए जाने हैं शफीक के ,आत्म हत्या व हत्या का अपराधी तो वह है ही .वैसे शासन की तरफ़ से उसके परिवार को आर्थिक मदद दी गयी है ।
अशिक्षा ,गरीबी व बड़े परिवार ने एक और परिवार को बर्बाद कर दिया .उन बच्चों का क्या दोष .अपनी गलतियों से उन निर्दोषं जनों की बलि क्यों चाहता था वह ? बेटों को क्या सोच कर उसने बख्श दिया ?
इस तरह की दुखद घटनाएँ क्या समाज को आयना अभी भी नहीं दिखातीं .कब तक यह सब होता रहेगा ?हमारा आर्थिक विकास ,हमारी उन्नति के क्या मायने हैं जब मात्र गुजर बसर न कर पाने के कारण परिवार तबाह हो जाता है .यह इस तरह की घटनाओं की मात्र पुनरावृत्ति है ।
क्या समाज अब भी चेतेगा याकि अशिक्षा ,गरीबी और बड़ा परिवार समाज का कोढ़ ही साबित होती रहेगी ।
समाज की चुप्पी खल रही है .घटना हो जाने के बाद भी कोई प्रतिक्रिया नहीं .आख़िर कब तक यह सब ?
खींचता रहा किसी तरह वह अपने परिवार की गाडी .मंहगाई के इस दौर में उसकी परिवार गाथा अद्भुत और दुखदाई है .परिवार का बोझ ढोना उसे भरी पड़ रहा था .तभी तो एक दिन वह अपनी पत्नी ,चारों बेटियों को जहर देता है ,हाँ बेटों को वह बख्श देता है ,जाने क्यों .जहर का असर न होते देख चाकू की मदद से उनका गला रेतता है वह और स्वयं पर भी चाकू का वार करता है आत्महत्या के लिए ।
दुखद घटना में दो बेटियाँ वहीं मर जाती हैं ,बाकी परिजन और वह स्वयं अस्पताल में दाखिल होते हैं .पत्नी का भी इंतकाल हो जाता है वह और दो बेटियाँ जीवन से संघर्ष कर अभी जिन्दा हैं ।
शफीक नाम है उसका जिसने यह भीषण और अमानुषिक कार्य किया .यह वीभत्स घटना भोपाल की है .बयान लिए जाने हैं शफीक के ,आत्म हत्या व हत्या का अपराधी तो वह है ही .वैसे शासन की तरफ़ से उसके परिवार को आर्थिक मदद दी गयी है ।
अशिक्षा ,गरीबी व बड़े परिवार ने एक और परिवार को बर्बाद कर दिया .उन बच्चों का क्या दोष .अपनी गलतियों से उन निर्दोषं जनों की बलि क्यों चाहता था वह ? बेटों को क्या सोच कर उसने बख्श दिया ?
इस तरह की दुखद घटनाएँ क्या समाज को आयना अभी भी नहीं दिखातीं .कब तक यह सब होता रहेगा ?हमारा आर्थिक विकास ,हमारी उन्नति के क्या मायने हैं जब मात्र गुजर बसर न कर पाने के कारण परिवार तबाह हो जाता है .यह इस तरह की घटनाओं की मात्र पुनरावृत्ति है ।
क्या समाज अब भी चेतेगा याकि अशिक्षा ,गरीबी और बड़ा परिवार समाज का कोढ़ ही साबित होती रहेगी ।
समाज की चुप्पी खल रही है .घटना हो जाने के बाद भी कोई प्रतिक्रिया नहीं .आख़िर कब तक यह सब ?
Wednesday, February 4, 2009
प्रकृति की पाठशाला
जैसे ही होती ही भोर .
नभ में पक्षियों का झुंड ,
अंगरेजी के वी आकार में ,
मानो विजयी मुद्रा में ,निकलता ,
लक्ष्य की ओर.
सहयोग ,श्रम और शान्ति का ,
कैसा अद्भुत उदाहरण ,देते
एक के बाद एक ,वे
अग्रिम स्थान लेते ।
शांत ,सम गति ,
अद्भुत इनकी मति
लक्ष्य को भेद ,सायं,
जब ये वापस होते ।
वही चाल , वही गति ,
बढ़ते चलते ,
बिना ले खोते ।
फ़िर ,सुबह शाम
यही सिलसिला चलता ।
लक्ष्य पाने का हौसला ,
इसी तरह पलता ।
प्रकृति के लीला रहस्य को
काश !हम समझते ।
इन जीव जंतुओं से ,
जीवन का पाठ पढ़ते ।
सहयोग ,श्रम और शान्ति
की दिशा में ,
एक पग और आगे ,
हम धरते ।
नभ में पक्षियों का झुंड ,
अंगरेजी के वी आकार में ,
मानो विजयी मुद्रा में ,निकलता ,
लक्ष्य की ओर.
सहयोग ,श्रम और शान्ति का ,
कैसा अद्भुत उदाहरण ,देते
एक के बाद एक ,वे
अग्रिम स्थान लेते ।
शांत ,सम गति ,
अद्भुत इनकी मति
लक्ष्य को भेद ,सायं,
जब ये वापस होते ।
वही चाल , वही गति ,
बढ़ते चलते ,
बिना ले खोते ।
फ़िर ,सुबह शाम
यही सिलसिला चलता ।
लक्ष्य पाने का हौसला ,
इसी तरह पलता ।
प्रकृति के लीला रहस्य को
काश !हम समझते ।
इन जीव जंतुओं से ,
जीवन का पाठ पढ़ते ।
सहयोग ,श्रम और शान्ति
की दिशा में ,
एक पग और आगे ,
हम धरते ।
Tuesday, February 3, 2009
आखिर कब तक
आखिर कब तक ?
सत्य ,शिव और सुंदर
कसौटी पर परखे जायेंगे ।
ईसा ,सुकरात ,गाँधी ,
शूली से ,जहर के प्याले से और ,
गोलियों से कब तक नपता हम पाएंगे .
सत्ता रूपी सुर ,असुर ,
जनता रूपी दधीचि की ,
हड्डियों से बने अस्त्र को लेकर ,
कब तक लड़ते रहेंगे ।
और सत्ता मोह में अंधे ध्रतराष्ट्र,
कब तक देश को निचोड़ते रहेंगे ।
कब तक सीताओं की ,
अग्नि परीक्षा होती रहेगी ।
दहेज़ की बलिवेदी पर ।
आखिर कितनी बलि और चढेगी ।
द्रौपदी चीर हरण की कथा ,
कब तक चलती रहेगी ।
ईर्ष्या, द्वेष ,घृणा का अश्वत्थामा ,
कब तक भ्रूण हत्याएं करता रहेगा ।
मस्तक की मणि खोकर भी ,
हमारे रूप में व्याकुल भटकता रहेगा ।
आज कंस हैं ,दुर्योधन हैं ,दुशासन हैं ,
पर कृष्ण सा तारणहार नहीं है ।
स्थिति वहीं की वहीं है ।
क्या फ़िर जन्म लेंगे कृष्ण ,
अर्जुन को सुनायेंगे फ़िर गीता ।
भर जाएगा वह ,जो आज है रीता ।
या फ़िर ,
उनके आने की प्रतीक्षा हम करते रहेंगे ,
या स्वयं कृष्ण बन ,
एक नई सृष्टि रचेंगे ,
आख़िर कब तक ?
सत्य ,शिव और सुंदर
कसौटी पर परखे जायेंगे ।
ईसा ,सुकरात ,गाँधी ,
शूली से ,जहर के प्याले से और ,
गोलियों से कब तक नपता हम पाएंगे .
सत्ता रूपी सुर ,असुर ,
जनता रूपी दधीचि की ,
हड्डियों से बने अस्त्र को लेकर ,
कब तक लड़ते रहेंगे ।
और सत्ता मोह में अंधे ध्रतराष्ट्र,
कब तक देश को निचोड़ते रहेंगे ।
कब तक सीताओं की ,
अग्नि परीक्षा होती रहेगी ।
दहेज़ की बलिवेदी पर ।
आखिर कितनी बलि और चढेगी ।
द्रौपदी चीर हरण की कथा ,
कब तक चलती रहेगी ।
ईर्ष्या, द्वेष ,घृणा का अश्वत्थामा ,
कब तक भ्रूण हत्याएं करता रहेगा ।
मस्तक की मणि खोकर भी ,
हमारे रूप में व्याकुल भटकता रहेगा ।
आज कंस हैं ,दुर्योधन हैं ,दुशासन हैं ,
पर कृष्ण सा तारणहार नहीं है ।
स्थिति वहीं की वहीं है ।
क्या फ़िर जन्म लेंगे कृष्ण ,
अर्जुन को सुनायेंगे फ़िर गीता ।
भर जाएगा वह ,जो आज है रीता ।
या फ़िर ,
उनके आने की प्रतीक्षा हम करते रहेंगे ,
या स्वयं कृष्ण बन ,
एक नई सृष्टि रचेंगे ,
आख़िर कब तक ?
Thursday, January 29, 2009
ये छिद्रान्वेषी
गीता में कहा है - अपने द्वारा अपना उध्दार करे ,अपने को अधोपतित न करे ,क्योंकि मनुष्य आप ही अपना मित्र है तथा आप ही अपना शत्रु है ।
पर हम दूसरों पर ज्यादा ध्यान देते हैं .छिद्रान्वेषण करते हैं दूसरों का .हम अपने को शायद ही कभी देखते होंगे .घर परिवार ,बाहर ,कार्यालय ये सभी स्थान गपयाने ,व्यर्थ की बात करने के अड्डे बन चुके हैं .पना समय हम यों बेकार गंवाते हैं .वह ऐसा है ,वैसा है .देश की हालत ख़राब है ,बड़ा भ्रष्टाचार फैला हुआ है ,लूट ,गुंडागर्दी फ़ैल रही है यही इनकी बातों के विषय होते हैं .हम क्या हैं ,हम कितने ईमानदार ,अपने काम के प्रति कितने जिम्मेदार हैं .देश की बिगड़ती स्थिति के लिए हम कितने जिम्मेदार हैं ,इसके लिए हम क्या कर सकते हैं इस पर हमें नहीं सोचना .गिलास कितना भरा है इस पर हम नहीं सोचेंगे , गिलास कितना खाली है यहीं हमारा ध्यान जाता है .कर्तव्य से हमारा वास्ता कम ,हमें तो अपने अधिकारों की ही चिंता है ।
यह प्रवृत्ति बदले ,दूसरों का छिद्रान्वेषण हम बंद करें यही हमारे लिए उचित होगा .हम दूसरों की तरह नहीं हो सकते .हम ,हम हैं यह समझें ,अपने को सही राह पर चलाकर ही हम अपना सुधार कर सकते हैं ,
यही हमारे हितमें होगा .अपना दर्पण स्वयं बनें ,अपने गिरेबान में झांकें .अपना हित साधें ,भला बुरा समझें और अपना उध्दार करें .
पर हम दूसरों पर ज्यादा ध्यान देते हैं .छिद्रान्वेषण करते हैं दूसरों का .हम अपने को शायद ही कभी देखते होंगे .घर परिवार ,बाहर ,कार्यालय ये सभी स्थान गपयाने ,व्यर्थ की बात करने के अड्डे बन चुके हैं .पना समय हम यों बेकार गंवाते हैं .वह ऐसा है ,वैसा है .देश की हालत ख़राब है ,बड़ा भ्रष्टाचार फैला हुआ है ,लूट ,गुंडागर्दी फ़ैल रही है यही इनकी बातों के विषय होते हैं .हम क्या हैं ,हम कितने ईमानदार ,अपने काम के प्रति कितने जिम्मेदार हैं .देश की बिगड़ती स्थिति के लिए हम कितने जिम्मेदार हैं ,इसके लिए हम क्या कर सकते हैं इस पर हमें नहीं सोचना .गिलास कितना भरा है इस पर हम नहीं सोचेंगे , गिलास कितना खाली है यहीं हमारा ध्यान जाता है .कर्तव्य से हमारा वास्ता कम ,हमें तो अपने अधिकारों की ही चिंता है ।
यह प्रवृत्ति बदले ,दूसरों का छिद्रान्वेषण हम बंद करें यही हमारे लिए उचित होगा .हम दूसरों की तरह नहीं हो सकते .हम ,हम हैं यह समझें ,अपने को सही राह पर चलाकर ही हम अपना सुधार कर सकते हैं ,
यही हमारे हितमें होगा .अपना दर्पण स्वयं बनें ,अपने गिरेबान में झांकें .अपना हित साधें ,भला बुरा समझें और अपना उध्दार करें .
Monday, January 26, 2009
आज हमारा गणतंत्र ६० वें वर्ष में प्रवेश कर गया है .भारतीय गणतंत्र प्रौढ़ हो गया है .भारतीय संविधान में अनेक संशोधन हो चुके हैं अमेरिकी संविधान से भी ज्यादा .पश्चिमी अवधारणाओं का बोझ लिए चलता हमारा संविधान देश के अनुरूप न होने से कई कमियां भी झेल रहा है .समय समय पर उसमें सुधार प्रक्रिया भी चलती रहती है .और भी सुधार की गुंजाईश आज भी बनी हुई है .संप्रभुता प्राप्त राष्ट्र को अपने ही देश में चुनौती मिलती रहती है ,विलगाव की .अलगाव वादी शक्तियां सर उठाती रहती हैं .जाति , भाषा ,धर्मं ,क्षेत्रीयता जैसे नाग अपना फन उठा फुफकारते रहते हैं .यह बात अलग है की उनकी फुफकार को खास प्रभाव नहीं छोड़ पाती ।
हाँ ,जन तंत्र में तंत्र तो है पर आज जन गायब है .सिर्फ़ चुनाव के समय ही जन दिखाई देते हैं मत के रूप में ,इसके बाद तो जन गायब हो जाता है .कहाँ रह जाता है जनता का ,जनता के लिए ,जनता के द्वारा शासन का जनतंत्रीय रूप .मानो जनता ठगी जाती है ।
भ्रष्टाचार ,भाई भतीजा वाद ,आतंकवाद ,राजनीती में धन बल ,बाहुबल का बढ़ता प्रयोग ,असामाजिक लोगों का प्रभुत्व गणतंत्र में बहुत खटकता है .नेहरू ,जयप्रकाश ,गुलजारी लाल नंदा और लाल बहादुर जैसे महान नेताओं की कमी आज खलती है .कहने को तो गणतंत्र पर कुंवर ,युवराज ,महाराजा जैसे संबोधन जनतंत्र में चुभते हाँ .स्वतंत्र भारत का बदला स्वरुप मनमानी की झलक दिखाता है .बाजार वाद ने जहाँ देश को व्यवसाय और तकनीक में नई दिशाएं दी हैं वहीं भ्रष्ट नेताओं ,हर्षद मेह्ताओं ,तेलगी और सत्यम के राजुओं को भी जन्म दिया है जो रातों रात अमीर बनना चाहते थे .आज ईमानदारी ,नैतिकता को अंगूठा दिखाया जा रहा है .यह बात खलती है । कर्ज करो घी पियो की प्रवृति बढ़ रही है ,परिणाम अमेरिका तो भुगत रहा है ,काश हम बचे रहें ।
तमाम खामियों के बाद भी हमारा गणतंत्र फल फूल रहा है ,यह एक सुखद आश्चर्य है .कामना है कि हमारा गणतंत्र अमर रहे .एक नई सोच ,नया विचार इस देश में जागे जिससे इस गणतंत्र को बल मिले .
हाँ ,जन तंत्र में तंत्र तो है पर आज जन गायब है .सिर्फ़ चुनाव के समय ही जन दिखाई देते हैं मत के रूप में ,इसके बाद तो जन गायब हो जाता है .कहाँ रह जाता है जनता का ,जनता के लिए ,जनता के द्वारा शासन का जनतंत्रीय रूप .मानो जनता ठगी जाती है ।
भ्रष्टाचार ,भाई भतीजा वाद ,आतंकवाद ,राजनीती में धन बल ,बाहुबल का बढ़ता प्रयोग ,असामाजिक लोगों का प्रभुत्व गणतंत्र में बहुत खटकता है .नेहरू ,जयप्रकाश ,गुलजारी लाल नंदा और लाल बहादुर जैसे महान नेताओं की कमी आज खलती है .कहने को तो गणतंत्र पर कुंवर ,युवराज ,महाराजा जैसे संबोधन जनतंत्र में चुभते हाँ .स्वतंत्र भारत का बदला स्वरुप मनमानी की झलक दिखाता है .बाजार वाद ने जहाँ देश को व्यवसाय और तकनीक में नई दिशाएं दी हैं वहीं भ्रष्ट नेताओं ,हर्षद मेह्ताओं ,तेलगी और सत्यम के राजुओं को भी जन्म दिया है जो रातों रात अमीर बनना चाहते थे .आज ईमानदारी ,नैतिकता को अंगूठा दिखाया जा रहा है .यह बात खलती है । कर्ज करो घी पियो की प्रवृति बढ़ रही है ,परिणाम अमेरिका तो भुगत रहा है ,काश हम बचे रहें ।
तमाम खामियों के बाद भी हमारा गणतंत्र फल फूल रहा है ,यह एक सुखद आश्चर्य है .कामना है कि हमारा गणतंत्र अमर रहे .एक नई सोच ,नया विचार इस देश में जागे जिससे इस गणतंत्र को बल मिले .
Saturday, January 24, 2009
अमर सेनानी नेता जी सुभाष
२३ जनवरी उस महापुरुष का जन्म दिन है जिसने भारत माता के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया .सुख सुविधाओं का त्याग कर काँटों का ताज पहन कर नेता जी ने सारा जीवन देश की स्वतंत्रता के संघर्ष में होम कर दिया .इंडियन सिविल सर्विस की परीक्षा उत्तीर्ण कर उसे भी राष्ट्र के लिए ठोकर मार दिया ।
देश में चलती कांग्रेस की नीतियों को ढुलमुल जानकर देश से बाहर जाकर कुछ करने का उन्होंने ठाना . और वे निकल पड़े काबुल के रास्ते जर्मनी ,इटली ,जापान की ओर .हिटलर ,मुसोलनी के साथ मिलकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को आगे ले जाने के लिए सहयोग मांगने .अपेक्षित सफलता न मिलने पर उन्होंने जापान का रुख किया .और फ़िर बनी आजाद हिंद फौज .जापान के साथ कूच किया भारत की ओर ।
सफलता कितनी मिली यह बात और है लेकिन वहां उन्हें जो जन सहयोग मिला वह बेमिसाल है .तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूँगा का आव्हान करने वाले नेता जी को पर्याप्त सहायता मिली .और अंग्रेजों के साथ युद्ध में भी वे काफी हद्द तक कामयाब भी हुए .अफ़सोस की उनके जीते जी भारत आजाद न हो सका ,फ़िर भी देश के लिए उनका जज्बा बेजोड़ था ।
अंग्रेजों को लोहे के चने चबवाने वाले इस महापुरुष का अन्तकाल भी विवादों के घेरे में रहा .आज भी भारत सरकार उनकी म्रत्यु के रहस्य पर मौन साधे हुए है ।
सचमुच आज नेता जी सुभाष जैसे व्यक्तित्व की देश को आवश्यकता है .अदम्य देशभक्ति ,इच्छाशक्ति ,अनुशासन प्रियता उनके स्वाभाविक गुण थे .देश के इस महान सपूत की याद में सर आदर से झुक जाता है .कोटि कोटि नमन उस भारत मन के अमर सपूत को ।
जयहिंद
देश में चलती कांग्रेस की नीतियों को ढुलमुल जानकर देश से बाहर जाकर कुछ करने का उन्होंने ठाना . और वे निकल पड़े काबुल के रास्ते जर्मनी ,इटली ,जापान की ओर .हिटलर ,मुसोलनी के साथ मिलकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को आगे ले जाने के लिए सहयोग मांगने .अपेक्षित सफलता न मिलने पर उन्होंने जापान का रुख किया .और फ़िर बनी आजाद हिंद फौज .जापान के साथ कूच किया भारत की ओर ।
सफलता कितनी मिली यह बात और है लेकिन वहां उन्हें जो जन सहयोग मिला वह बेमिसाल है .तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूँगा का आव्हान करने वाले नेता जी को पर्याप्त सहायता मिली .और अंग्रेजों के साथ युद्ध में भी वे काफी हद्द तक कामयाब भी हुए .अफ़सोस की उनके जीते जी भारत आजाद न हो सका ,फ़िर भी देश के लिए उनका जज्बा बेजोड़ था ।
अंग्रेजों को लोहे के चने चबवाने वाले इस महापुरुष का अन्तकाल भी विवादों के घेरे में रहा .आज भी भारत सरकार उनकी म्रत्यु के रहस्य पर मौन साधे हुए है ।
सचमुच आज नेता जी सुभाष जैसे व्यक्तित्व की देश को आवश्यकता है .अदम्य देशभक्ति ,इच्छाशक्ति ,अनुशासन प्रियता उनके स्वाभाविक गुण थे .देश के इस महान सपूत की याद में सर आदर से झुक जाता है .कोटि कोटि नमन उस भारत मन के अमर सपूत को ।
जयहिंद
Saturday, January 17, 2009
जीवन के ५८ बसंत
जीवन के ५८ बसंत बीत चुके .५९ वां प्रारम्भ हो गया है .ईश्वर की असीम कृपा एवं स्वजनों की सद भावनाओं के कारण उपलब्ध्दियाँ अनेक रहीं .मन चाह मिला .पत्नी ,बच्चों के संग जीवन खुशहाल रहा .तीन बेटियाँ अपने अपने घरों को सजा संवार रहीं हैं .एक अभी हमारे साथ रह अपने भविष्य के सपने संजो रही है .वह अभी सारे आकाश को ही अपनी अंजुरी में बंद करने को व्याकुल है .उसकी भी महत्वाकांक्षा पूरी हो ,यही हमारी कामना है । दांपत्य जीवन हमारा सुखमय बीता .सफल जीवन में अन्यों की तरह हमारी धर्मपत्नी की भी हमारे जीवन में प्रमुख भूमिका रही .सुघढ़ गृहणी ,व्यवहार कुशलता के लिए वे ख्यात रहीं .उनका हमारा गृहस्थ जीवन का ३५ वां वर्ष अभी पूरा हुआ है .उनके साथ का हमें गर्व है .गृहस्थी को पूर्णता देने में उनका बड़ा हाथ है .हमें सँभालने में भी उनका बहुत बड़ा हाथ रहा ,इसमें दो मत नहीं ।
बच्चे निरंतर संपर्क में रहते हैं .खुशी होती है उनसे बातचीत कर .खूब बतियाते हैं हम लोग .तीज त्यौहार पर यद् तो आती है सबकी पर मन मसोस कर रह जन पड़ता है .बड़ी बेटी की बेटी अक्सर याद आती है . उसके बात करने का ढंग ,उसके हाव भावःमनको छू जाते रहे हैं ।
घर ,परिवार ,बाहरऔर कार्यस्थल में भी आदर ,स्नेह और प्यार बहुत मिला .इच्छा थी अध्ययन ,अध्यापन के क्षेत्र में जाने की पर अपना चाहा कितना पूरा होता है !हाँ ,अध्ययन ,मनन आज भी भरपूर होता रहता है .सब कुछ तो मिला जीवन में .नहीं मिला कुछ, तो उसका भी दुख नहीं ।
बाबा की कृपा से आगे भी शुभ ,शुभ ही होगा ,विश्वास है ।
सद इच्छाएं सभी के लिए ,शुभ कामनाएं सभी के लिए ।
सब सुखी हों ,सब निरोगी हों ,सब शुभ शुभ देखें ,कोई दुखी न हो यही आकांक्षा है .
बच्चे निरंतर संपर्क में रहते हैं .खुशी होती है उनसे बातचीत कर .खूब बतियाते हैं हम लोग .तीज त्यौहार पर यद् तो आती है सबकी पर मन मसोस कर रह जन पड़ता है .बड़ी बेटी की बेटी अक्सर याद आती है . उसके बात करने का ढंग ,उसके हाव भावःमनको छू जाते रहे हैं ।
घर ,परिवार ,बाहरऔर कार्यस्थल में भी आदर ,स्नेह और प्यार बहुत मिला .इच्छा थी अध्ययन ,अध्यापन के क्षेत्र में जाने की पर अपना चाहा कितना पूरा होता है !हाँ ,अध्ययन ,मनन आज भी भरपूर होता रहता है .सब कुछ तो मिला जीवन में .नहीं मिला कुछ, तो उसका भी दुख नहीं ।
बाबा की कृपा से आगे भी शुभ ,शुभ ही होगा ,विश्वास है ।
सद इच्छाएं सभी के लिए ,शुभ कामनाएं सभी के लिए ।
सब सुखी हों ,सब निरोगी हों ,सब शुभ शुभ देखें ,कोई दुखी न हो यही आकांक्षा है .
Wednesday, January 14, 2009
अद्भुत सुघटना! जन्म दिन
जन्म दिन ! साल की एक अद्भुत सुघटना है .अपने एक निबंध में बाबू गुलाब राय ने आत्म विश्लेषण करते हुए लिखा है कि मैं अपना जन्म दिन नहीं मनाता .कारण बताते हुए वे कहते हैं कि हर आने वाला जन्म दिन हमारी उम्र घटने का संदेशा देता है .आख़िर इसमें क्या विशेषता है।
बाबूजी भले ही जन्म दिन न मनाने के पक्षधर हों पर सचमुच में जन्म दिन खुशियों का एक त्यौहार है .जन्म दिन स्वयम और अपनों के बीच खुशियाँ बाँटने का दिन है.स्वजन जब बधाइयाँ देते हैं ,कुछ क्षणों के लिए वे अपनी मुस्कान बिखेरते हैं ,हमारे बीच उपस्थित होते हैं मन प्रफुल्लित हो जाता है.दूर बस रहे हमारे बच्चे जब बधाई देते हैं तो मानो वे हमारे नजदीक होते हैं .यही खुशी हमें हमारा जन्म दिन देता है.इसी बहाने हमारे साथ साथ सामने वाले भी मुस्कान बिखेरते हैं ।
तो फ़िर क्यों न मनाएं हम जन्म दिन .बांटें लोगों के संग खुशियाँ .यही हमारे लिए पर्याप्त है.
बाबूजी भले ही जन्म दिन न मनाने के पक्षधर हों पर सचमुच में जन्म दिन खुशियों का एक त्यौहार है .जन्म दिन स्वयम और अपनों के बीच खुशियाँ बाँटने का दिन है.स्वजन जब बधाइयाँ देते हैं ,कुछ क्षणों के लिए वे अपनी मुस्कान बिखेरते हैं ,हमारे बीच उपस्थित होते हैं मन प्रफुल्लित हो जाता है.दूर बस रहे हमारे बच्चे जब बधाई देते हैं तो मानो वे हमारे नजदीक होते हैं .यही खुशी हमें हमारा जन्म दिन देता है.इसी बहाने हमारे साथ साथ सामने वाले भी मुस्कान बिखेरते हैं ।
तो फ़िर क्यों न मनाएं हम जन्म दिन .बांटें लोगों के संग खुशियाँ .यही हमारे लिए पर्याप्त है.
Sunday, January 4, 2009
भारत में प्रजातंत्र
प्रजातंत्र फल फूल रहा है हमारे देश में .बहुत सीमा तक वह सफल भी है .कभी कभी लगता है कि अशिक्षा की वजह से भी लोकतंत्र का सफल कार्यान्वयन हमारे देश में नहीं हो पा रहा है . दुःख होता है जब निरक्षर इस देश में मंत्री या मुख्य मंत्री बन जाता है .तब शासन ,प्रशासन वह कैसे चलाएगा ,यह एक प्रश्न बन जाता है .जाहिर है कि सत्ता सञ्चालन का सूत्रधार कोई और बन जाता है .मंत्री ,मुख्यमंत्री मात्र उसकी कठपुतली रहते हैं .कैसा मजाक है कि एक चपरासी के पद के लिए भी शिक्षित होना अनिवार्य है लेकिन देश या प्रदेश की बागडोर सँभालने वाले के लिए शिक्षा की अनिवार्यता नहीं .उम्र की कोई सीमा नहीं .उसके कार्य पर जनता के लिएकोई जवाबदेही नहीं .उसे वापस लाने का जनता को कोई अधिकार नहीं .वह जनता का सेवक नहीं बल्कि मानो शासक हो जाता है ।
क्या यह स्थिति बदलेगी ? विधायक या सांसद के लिए कोई शैक्षणिक योग्यता निर्धारित होगी .उम्र सीमा तय होगी .जाति धर्मं क्षेत्र से परे भारतीय राजनीति होगी .प्रश्न भविष्य के गर्भ में हैं .काश ,ऐसा हो ताकि भारत का प्रजातंत्र अन्य लोकतान्त्रिक देशों जैसा हो सके .पढ़े लिखे योग्य व्यक्ति शासन संभालें तभी देश का हित होगा ।
क्या यह स्थिति बदलेगी ? विधायक या सांसद के लिए कोई शैक्षणिक योग्यता निर्धारित होगी .उम्र सीमा तय होगी .जाति धर्मं क्षेत्र से परे भारतीय राजनीति होगी .प्रश्न भविष्य के गर्भ में हैं .काश ,ऐसा हो ताकि भारत का प्रजातंत्र अन्य लोकतान्त्रिक देशों जैसा हो सके .पढ़े लिखे योग्य व्यक्ति शासन संभालें तभी देश का हित होगा ।
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