समवेत स्वर में प्रेम के ,
गीत हम फ़िर गुनगुनाएं ।
द्वेष ,इर्ष्या ,क्रोध का तम्,
इस धरा से हम हटायें ।
प्रेम अपने को करो ,फ़िर ,
भर हथेली बाँट दो ।
बढ़ती हृदय की दूरियों को ,
निशचिंत होकर पाट दो ।
हर हृदय हो प्रेम मय,
ऐसी जुगत हम फ़िर बिठाएं ।
समवेत स्वर में .......
बढ़ चला है आज फ़िर ,
कंस और रावण का बल ।
आतंक और हिंसा के आगे ,
इंसानियत होती विकल।
राम ,कृष्ण बन कर स्वयं हम ,
प्रेम मंत्र की अलख जगाये ।
समवेत स्वर में.......
नानक ,कबीर ,गौतम ,गांधी की ,
भाई !यह धरती है ।
ममता ,करुना ,दया यहाँ ,
सदियों से पलती है ।
उनकी ही संतति हम सब ,
जन मानस को समझाएं ।
समवेत स्वर में ........
भेद भाव बिसरा कर ,
एक हमें होना होगा ।
विध्वंसक स्थिति के पहले ,
हमें सचेतन होना होगा ।
दिव्य अलौकिक प्रेम शक्ति ले ,
मानवता को आज बचाएँ ।
समवेत स्वर में प्रेम के ,
गीत हम फ़िर गुनगुनाएं ।
Saturday, November 15, 2008
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