हमारी भाव सरिता पहले,गुरु चरन स्पर्श करे।
उनके भाव्, उनका आशीष,ह्रदय मे धरे।
फिर कल कल छल छल ,हमारे जीवन मे बहे।
जीवन का सार हमसे आपसे,सदा कहती रहे।
आओ हम मिल जुल कर् ,अपने सुख दुख बाटें
विचार कि बोनी कर,खुशियो की फसले काटे।
अपने पुरखो के कर्म,धर्म् को जीवन मे अपने लाये।
शस्य श्याम्ला अपनी धरती,इसको स्वर्ग बनाये ।
यह् धरती माँ बेटे इसके,आपसमे हम भाई।
फिर क्यो हम् पर जमी हुई,भेद् भाव की काई।
अपनी भाव् सरिता मे भाई,आओ करे स्नान्।
त्यागे आज् द्वेश् भाव् हम्,प्रेम दया का कर् ले ध्यान्।
भाव् सरिता मे स्वागत् है,करे अनुग्रह् मुझे आप्।
अपने भावो कि अन्जलि से,हर् ले जीवन का सन्ताप्।
आपके भावो कि भीख मांगता हू।
जन कल्यान् की सीख़ चाहता हूँ
सादर प्रणाम।
Saturday, November 22, 2008
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