Monday, November 17, 2008
हमरि भाव सरिता पहले,गुरु चरन स्परश करे।उनके भाव्, उनका आशिश्,ह्रदय मे धरे।फिर कल कल चल चल्,हमारे जिवन मे बहे।जिवन का सार हमसे आपसे,सदा कहति रहे।आओ हम मिल जुल कर् ,अपने सुख दुख बाटेसद विचार कि बोनि कर, खुशियो कि फसले काटे।अपने पुरखो के कर्म,धर्म् को जिवन मे अपने लाये।शस्य श्याम्ला अपनि धरति,इसको स्वर्ग बनाये ।यह् धरति मा बेटे इसके,आपस् मे हम भाई।फिर क्यो हम् पर जमि हुई,भेद् भाव कि काई।अपनि भाव् सरिता मे भाई,आओ करे स्नान्।त्यागे आज् द्वेश् भाव् हम्,प्रेम दया का कर् ले ध्यान्।भाव् सरिता मे स्वागत् है,करे अनुग्रह् मुझ्हे आप्।अपने भावो कि अन्जलि से,हर् ले जिवन् का सन्ताप्।आपके भावो कि भिख् मागता हु।जन कल्यान् कि सिख् चाहता हु।सादर प्रनाम।
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