हम करोड़ों जन की मातृ भाषा हिन्दी है .विपुल साहित्य हिन्दी का है .अपने साहित्य से प्रेम करें .उसे सम्मान दें.उसे अपने भावों ,विचारों से सम्रध्द करें .हम सब भारत वासियों का कर्तव्य बनताहै किहिन्दी जो हमारी राष्ट्र भाषा भी है का मान करें .यह हमारी माँ है .आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने कहा है कि अपनी माँ को निस्सहाय और निरुपाय अवस्था में छोड़कर जो दूसरे की माँ की सेवा करता है ,उसके समान कृतघ्नी और कोई नहीं ।
आज हिन्दी के प्रति हमारी उदासीनता हिन्दी के भविष्य पर प्रश्न चिह्न लगा रही है .खुशी है कि इंटर नेट के माध्यम से हिन्दी ब्लोग्स की सहायता द्वारा हिदी का विशाल वर्ग तैयार हो रहा है .हम सब मिल कर अपनी माँ हिन्दी की सेवा कर एक और मातृ ऋण से उरण हो सकेंगे .
हमारे अहिन्दी भाषी भी इस पुनीत कार्य में भागीदार बनें ऐसी अपेक्षा है .हिन्दी हम सब की है .सारे देश की है .राष्ट्र मंच से राष्ट्र का आह्वान ,राष्ट्र के नाम संदेश राष्ट्र भाषा हिन्दी में ही होता है .फ़िर भी यह कटु सत्य है कि आज हिन्दी भाषियों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार होता है .महाराष्ट्र इसका एक उदाहरण है .पढा लिखा वर्ग ,हिन्दी फिल्मों के नायक नायिका ,हमारे तथाकथित राज नेता हिन्दी की उपेक्षा करने में चूकते नहीं .जिनकी जीविका हिन्दी में चलती है ,जो जनता से वोट हिन्दी में मांगते हैं उनका व्यवहार हिन्दी के प्रति उचित नहीं है ।
आइये !अपनी भाषा हिन्दी को हम सब वह मुकाम दें जिसकी वह अधिकारिणी है .बिना किसी पूर्वाग्रह के ,बिना द्वेष के हम अपने भावों ,विचारों के बल पर हिन्दी को उसका अधिकार दें .घरों में नाम पटल ,कार्यालय में हिन्दी का प्रयोग ,अपने हस्ताक्षर ,बोल चाल में इसका प्रयोग हिन्दी विस्तार का पहला कदम होगा .आइये शुरूवाद करें .आपस में ज्यादा से ज्यादा जुडें.शुभस्य शीघ्रम .
Tuesday, November 18, 2008
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