आज की तेज ,भागदौड़ की जिन्दगी ,
के बीच गायब हो रही ,
मुस्कान को
आओ, आज ढूँढें।
प्रातः ,उदय होते सूरज की ,
किरणों के साथ ।
दाना चुगती चिडियों की
चहचहाहट के साथ ।
मुदित होते ,
खिलते गुलाब के साथ ।
एक मजबूर ,असहाय, निरक्षर के लिए ,
बढाकर अपने हाथ ।
ईर्ष्या ,द्वेष ,घृणा त्याग ,
सद्भाव की कर बात ।
खुशियाँ दें , ख़ुद मुस्कुराएं।
औरों को भी ,
इस शुभ प्रयास में ,
अपने साथ लायें ।
Wednesday, November 26, 2008
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3 comments:
वर्तमान पीडी और बच्चों के लिए शिक्षा प्रद /मानें तो बुजुर्गों को भी
plz remove this wordverification
ईर्ष्या ,द्वेष ,घृणा त्याग ,
सद्भाव की कर बात ।
खुशियाँ दें , ख़ुद मुस्कुराएं।
औरों को भी ,
इस शुभ प्रयास में ,
अपने साथ लायें ।
बहुत अच्छा लिखे हैं. धन्यवाद.
आपका
महेश
http://popularindia.blogspot.com
very good poem.
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