Wednesday, March 18, 2009

दोषी कौन ?

आज की तेज भागती ,दौड़ती जिन्दगी में मौत कितनी सस्ती हो गई है, इसका उदाहरण हमें आए दिन होती दुर्घटनाएं देख कर मालूम होता है .गली ,चौराहों ,सडकों पर तेज भागते लोग ,तेज भागती गाडियां मौत को दावत देतीं हैं .सड़क पर पैदल चलता आदमी भी आज सुरक्षित नहीं है .यातायात के बहुत सारे नियम ,कानून बने हुए हैं ,पर उन्हें भी अंगूठा दिखाते लोग भागते जा रहे हैं .धनी मां ,बाप अवयस्क बच्चों को गाड़ी दिला कर सड़कों पर मनो मौत की दौड़ करवा रहे हैं .सड़कों पर सर्कस करते बच्चे हर जगह देखे जा सकते हैं .लाइसेंस नहीं ,सर पर हेलमेट नहीं और कलाबाजी दिखाते ,बच्चे अनो मौत को दावत देते हों ।
हेलमेट का नियम है ,चार पहिया वाहनों के लिए बेल्ट का प्रावधान है ,गाड़ियों की गति की सीमा भी है पर किसे परवाह है इसकी .मरते हैं हमीं , दुर्घटना ग्रस्त होते हैं हमी फ़िर भी लापरवाही ?
ताबड़तोड़ होती सड़क दुर्घटनाएं ,पर हम कोई सबक नहीं लेते .जागते नहीं ,अपने को नियंत्रित नहीं कर पाते . जब दुर्घटनाएं होती हैं ,तब कानूनों को गली दी जाती है ,थानों का घिराव किया जाता है ,अस्पताल तोड़ फोड़ का शिकार होते हैं .हमें अपनी गलती स्वीकार नहीं .बार बार मौत से खेलते हैं पर हममें को सुधार नहीं ।
सिलसिला मनो यूँ ही चलता रहेगा .हम नहीं सुधरेंगे ,हमने ठान रखा है .कानून कायदे शायद बनाये ही जाते हैं तोड़ने के लिए .फ़िर होने दीजिये मौत ,इतना हो हल्ला किसलिए .पुलिस दोषी क्यों ? कानून दोषी क्यों ?
दोषी तो हम हैं पर अपने दोष नजर अंदाज कर हमारी फितरत में नहीं ,दोषारोपण हमारी आदत है .मौत सस्ती जो हो गई है .हम नहीं तो हम किसे दोषी मानें ,दोषी आखिर कौन ?

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