Monday, February 23, 2009

आदिदेव महादेव

महाशिवरात्रि शिव का प्रगटीकरण इस धरा पर . त्रिदेवों में एक ,देवों ,दानवों में समान रूप से सम्मानित ..देवों पर जब जब संकट आया ,संकट मोचक बने महादेव .उदार ,सरल ह्रदय शिव सहज में प्रसन्न होकर वरदान दे देते ,भलेही बाद में उनपर संकट आया हो .भस्मासुर कथा सर्वविदित है .समुद्र मंथन में निकले हलाहल को अपने गले लगाकर नीलकंठ बन गए ,गंगा का वेग अपने सर रखा जिसके कारण ही गंगा धरती पर आ सकी .अवधूत,वैराग्य धारण किए हुए ,त्याज्य वस्तुओं को स्वीकार कर भोले नाथ बने .क्रोध आया तो तीसरा नेत्र खुला .और कामदेव भस्म .रति पर दया दिखाकर मानव में ही कामदेव को स्थापित कर दिया .ऐसे हैं शिव ।
आदिगुरू शंकराचार्य ने शिव स्तुति पर अनेक पद लिखे .रावण का शिव तांडव स्त्रोत रावण की शिव भक्ति का अनुपम उदाहरण है .

Saturday, February 14, 2009

न जाने क्यों ?

कल कार्यालय जाते समय सड़क पर चलते समय एक वाहन को मुड़ते और अपने रास्ते आते देख आगे बढ़ते हुए सहसा ही अस्फुट स्वर में मुंह से गाली निकल गई .ऐसा कई बार हुआ ,यह पहला अवसर नहीं था .विस मुंह से गाली निकलती नहीं है .जाने कहाँ से क्षणिक क्रोध आता है और मुंह से गाली निकल जाती है .सोचता हूँ जिनके मुंह से हमेशा गाली निकलती है ,क्या वे हमेशा क्रोध में रहते होंगे .क्या उनकी मनोस्थिति हमेशा बिगड़ी रहती होगी .जब हमें थोड़ी देर के गुस्से में ही हमारा मन विचलित हो जाता है .
दुःख भी होता है गाली देकर ,शायद अपनी असुरक्षा से घबडाकर हम अपना आपा खो बैठते हैं और यह घटना हो जाती है .जरा जरा सी बात पर गुस्सा कर हम सचमुच ही अपना अहित ही करते हैं .दुःख ,तनाव ,क्रोध को जन्म देकर हम सुखद क्षणों को खो देते हैं .जीवन की खुशियों को व्यर्थ ही गँवा देते हैं .घर ,परिवार ,दपतर,में व्यर्थ की उलझनें पैदा कर दुखों का पिटारा तैयार कर लेते हैं .छोटी छोटी बातों को लेकर ,अपने अहम् की तुष्टि के लिए पूरा वातावरण ग़मगीन बना देते हैं .आपसी विश्वास खो देते हैं .चंद इस तरह के लोग जिमेद्दार होते हैं इस तरह की घटनाओं के लिए .अपने को मसीहा मान कर अपने को पुजवाने के फेर में दूषित वातारण को जन्म देते हैं .ख़ुद परेशानियों से घिरे शायद दूसरो को परेशान देख खुश होते हैं ।
आखिर इन्हें क्या आनंद मिलता है .स्वयं उलझ कर दूसरों को भी उलझाते हैं ,न जाने क्यों ?

Wednesday, February 11, 2009

समाज के कोढ़

पत्नी ,चार बेटियाँ और तीन बेटों के साथ वह अपना जीवन यापन कर रहा था .स्वयं दिन में सत्तर ,अस्सी रूपये की मजदूरी और बड़े बेटे के द्वारा किए गए काम के एवज में रोज के कुछ रुपये ,यही आय का साधन था ।
खींचता रहा किसी तरह वह अपने परिवार की गाडी .मंहगाई के इस दौर में उसकी परिवार गाथा अद्भुत और दुखदाई है .परिवार का बोझ ढोना उसे भरी पड़ रहा था .तभी तो एक दिन वह अपनी पत्नी ,चारों बेटियों को जहर देता है ,हाँ बेटों को वह बख्श देता है ,जाने क्यों .जहर का असर न होते देख चाकू की मदद से उनका गला रेतता है वह और स्वयं पर भी चाकू का वार करता है आत्महत्या के लिए ।
दुखद घटना में दो बेटियाँ वहीं मर जाती हैं ,बाकी परिजन और वह स्वयं अस्पताल में दाखिल होते हैं .पत्नी का भी इंतकाल हो जाता है वह और दो बेटियाँ जीवन से संघर्ष कर अभी जिन्दा हैं ।
शफीक नाम है उसका जिसने यह भीषण और अमानुषिक कार्य किया .यह वीभत्स घटना भोपाल की है .बयान लिए जाने हैं शफीक के ,आत्म हत्या व हत्या का अपराधी तो वह है ही .वैसे शासन की तरफ़ से उसके परिवार को आर्थिक मदद दी गयी है ।
अशिक्षा ,गरीबी व बड़े परिवार ने एक और परिवार को बर्बाद कर दिया .उन बच्चों का क्या दोष .अपनी गलतियों से उन निर्दोषं जनों की बलि क्यों चाहता था वह ? बेटों को क्या सोच कर उसने बख्श दिया ?
इस तरह की दुखद घटनाएँ क्या समाज को आयना अभी भी नहीं दिखातीं .कब तक यह सब होता रहेगा ?हमारा आर्थिक विकास ,हमारी उन्नति के क्या मायने हैं जब मात्र गुजर बसर न कर पाने के कारण परिवार तबाह हो जाता है .यह इस तरह की घटनाओं की मात्र पुनरावृत्ति है ।
क्या समाज अब भी चेतेगा याकि अशिक्षा ,गरीबी और बड़ा परिवार समाज का कोढ़ ही साबित होती रहेगी ।
समाज की चुप्पी खल रही है .घटना हो जाने के बाद भी कोई प्रतिक्रिया नहीं .आख़िर कब तक यह सब ?

Wednesday, February 4, 2009

प्रकृति की पाठशाला

जैसे ही होती ही भोर .
नभ में पक्षियों का झुंड ,
अंगरेजी के वी आकार में ,
मानो विजयी मुद्रा में ,निकलता ,
लक्ष्य की ओर.
सहयोग ,श्रम और शान्ति का ,
कैसा अद्भुत उदाहरण ,देते
एक के बाद एक ,वे
अग्रिम स्थान लेते ।
शांत ,सम गति ,
अद्भुत इनकी मति
लक्ष्य को भेद ,सायं,
जब ये वापस होते ।
वही चाल , वही गति ,
बढ़ते चलते ,
बिना ले खोते ।
फ़िर ,सुबह शाम
यही सिलसिला चलता ।
लक्ष्य पाने का हौसला ,
इसी तरह पलता ।
प्रकृति के लीला रहस्य को
काश !हम समझते ।
इन जीव जंतुओं से ,
जीवन का पाठ पढ़ते ।
सहयोग ,श्रम और शान्ति
की दिशा में ,
एक पग और आगे ,
हम धरते ।

Tuesday, February 3, 2009

आखिर कब तक

आखिर कब तक ?
सत्य ,शिव और सुंदर
कसौटी पर परखे जायेंगे ।
ईसा ,सुकरात ,गाँधी ,
शूली से ,जहर के प्याले से और ,
गोलियों से कब तक नपता हम पाएंगे .
सत्ता रूपी सुर ,असुर ,
जनता रूपी दधीचि की ,
हड्डियों से बने अस्त्र को लेकर ,
कब तक लड़ते रहेंगे ।
और सत्ता मोह में अंधे ध्रतराष्ट्र,
कब तक देश को निचोड़ते रहेंगे ।
कब तक सीताओं की ,
अग्नि परीक्षा होती रहेगी ।
दहेज़ की बलिवेदी पर ।
आखिर कितनी बलि और चढेगी ।
द्रौपदी चीर हरण की कथा ,
कब तक चलती रहेगी ।
ईर्ष्या, द्वेष ,घृणा का अश्वत्थामा ,
कब तक भ्रूण हत्याएं करता रहेगा ।
मस्तक की मणि खोकर भी ,
हमारे रूप में व्याकुल भटकता रहेगा ।
आज कंस हैं ,दुर्योधन हैं ,दुशासन हैं ,
पर कृष्ण सा तारणहार नहीं है ।
स्थिति वहीं की वहीं है ।
क्या फ़िर जन्म लेंगे कृष्ण ,
अर्जुन को सुनायेंगे फ़िर गीता ।
भर जाएगा वह ,जो आज है रीता ।
या फ़िर ,
उनके आने की प्रतीक्षा हम करते रहेंगे ,
या स्वयं कृष्ण बन ,
एक नई सृष्टि रचेंगे ,
आख़िर कब तक ?