Saturday, May 22, 2010

क्यों नहीं भारतीय होने का गर्व .....

हिन्दू ,सिक्ख ,जैन ,बौध्द ,मुस्लिम ,ईसाई और पारसी होने का हमें गर्व है ,पर भारतीय होने का कोई गर्व नहीं .कोई कोई धर्मावलम्बी तो देश के ऊपर अपने धर्म को स्थान देते हैं .क्या बिना देश के किसी का धर्म या वह स्वयं जिन्दा रह सकता है ?
आज हर कोई धर्म का ध्वज लिए घूम रहा है .स्वयंभू मठाधीश ,नेता धर्म के नाम पर मनमानी कर रहे हैं ,लोगों को बरगला रहे हैं .हमारे राजनेता भी इसमें पीछे नहीं हैं .एक बड़ा दोष उनका भी है .वोटों की राजनीति के कारण वे भी धार्मिक विवादों को हवा दे रहे हैं .अल्पसंख्यक के नाम पर भी गंदी राजनीति से हमारे नेता गण बाज नहीं आते .आज देश के विकास ,देश की प्रगति और देश के उत्थान से ज्यादा राजनीतिकों को अपने वोट बैंक की चिंता है .जाति ,धर्म के नाम से देश की राजनीति चल रही है ।
आखिर कब तक यह सब चलता रहेगा ?विश्व राजनीति में भी आज हमारा कोई हितैषी नहीं है .पड़ोसी देश नेपाल ,चीन ,बंगला देश भी हमारे सगे नहीं हो पाए ,पाकिस्तान की तो बात ही और है .अमेरिका को तो बस अपने स्वार्थ कीही चिंता है ।
कुल मिलाकर आज की विषम परिस्थिति को देखते हुए हमें अपने संकीर्ण स्वार्थ को त्याग कर ,जाति धर्म की राजनीति से परे कुछ अलग सोचना होगा .देश धर्म ही सर्वोपरि हो ,यही हमारा उद्देश्य हो ,एकता हमारा नारा हो ।
धर्म और जाति के स्थान पर हमें भारतीय होने का गर्व पहले हो .हमारा देश होगा तो हम होंगे ,हमारा धर्म और हमारी जाति होगी .हममें से प्रत्येक भारतीय को भारतीय होने का गर्व होना चाहिए .

Saturday, May 15, 2010

भारतीय संस्कृति का पावन पवित्र दिन

.अक्षय.तृतीया भारतीय संस्कृति का धार्मिक ,सामाजिक दृष्टि से एक विशेष दिन है .सृष्टि के चार युगों में से एक त्रेता युग का प्रारंभ इसी दिन से माना जाता है .नर नारायण ,परशुराम ,हयग्रीव् का यह जन्म दिन है .मांगलिक .कार्यों यथा विवाह आदि के लिए यह दिन बहुत शुभ माना जाता है .भगवान विष्णु और भगवती लक्ष्मी का पूजन और उपासना का आज के दिन विशेष महत्त्व है ।
आज देश में बहुतायत में विवाह कार्य सनातन धर्मी संपन्न करेंगे .भगवान परशुराम का जन्म दिन हर्ष ,उल्लास से मनाया जायेगा .हाँ ,कहीं कहीं बाल विवाह भी संपन्न होंगे ,कानूनी .रोक के बाद भी .आज भी बाल विवाह देश के लिए सोचनीय और दुखद हैं .यह स्थिति बदलना चाहिए .क्यों न आज के दिन यह संकल्प लिया जाये और बाल विवाह के प्रति कड़ा रुख अपनाया जाये ।
आज के दिन उस .मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम को भी स्मरण करें जिनका जन्म त्रेतायुग में ही हुआ और जिनका आदर्श आज भी जीवंत है .भगवान परशुराम जिन्होंने अधर्म और अत्याचार के लिए क्षत्रिय बाना .धारण कर दुरात्माओं का .संघार किया वे भी हमारे लिए स्मरणीय हैं ।
.भावी पीढी उनके आदर्शों ,उनके कार्यों का अध्ययन करे ,मनन करे और अपनी संस्कृति से परिचित हो ,ऐसी अपेक्षा है .इस पावन और पवित्र पर्व पर हार्दिक शुभ कामनाएं और पवित्र भावों के साथ ..

Friday, May 7, 2010

पुन्य स्मरण एक महान आत्मा का ....

शस्य श्यामला बंग भूमि की गोद में एक और महा मानव ने जन्म लिया था आज ही के दिन .देवेन्द्र नाथ टैगोर के घर इनका जन्म हुआ .पिता के समान ही इनके सभी भाई और बहिन तथा स्वयं रवीन्द्र बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे . दर्शन ,काव्य ,कथा ,उपन्यास,तथा निबंध आदि अनेक विधाओं में कवि रवीन्द्र पारंगत थे .भारतीयों का माथा गर्व से उन्नत हो उठा जब साहित्य का पहला नोबल पुरस्कार गीतांजलि काव्य पर भारतीय रवीन्द्र को मिला .संगीत के लगाव के कारण संगीत की एक विधा आज रवीन्द्र संगीत के नाम से प्रसिध्द है ।
गांधी को महात्मा संबोधन देने का श्रेय कविवर को ही जाता है .एकला चलो रे नामक प्रसिध्द रचना भी गांधी को समर्पित है .अकेले पड़े गांधी को इस गीत से प्रेरणा मिली थी .समय समय पर देश की तत्कालीन स्थिति पर दोनों महामानवों की गंभीर चर्चा भी होती थी .दोनों एक दूसरे का कहीं मतभेद होने के बाद भी सम्मान करते थे ।
आज भारत और बंगला देश के राष्ट्रीय गान कवि की ही रचनाएँ हैं .इन गानों को सुनकर मन भाव विभोर हो जाता है . शिक्षा के क्षेत्र में आज शांति निकेतन जो विश्व भारती विश्वविध्यालय के नाम से जाना जाता है गुरुदेव की ही देन है .कठिन तपस्या और साधना के बल पर स्थापित शान्तिनिकेतन ने उत्कृष्ट विद्यार्थी ,कलाकार ,चित्रकार और महान अध्यापक की एक श्रंखला भारत को दी है ,प्रसिध्द विद्वान् अमर्त्य सेन का नामकरण भी शान्तिनिकेतन का ही है ।
आज उनकी जयन्ती है ,उनका व्यक्तित्व एवं कृतित्व सहसा स्मरण हो आता है .जहाँ निर्भयता हो ,संकीर्ण सोच की दीवारें न हों और गर्व उन्नत मस्तिष्क हो ,ऐसे राष्ट्र की कल्पना कवि गुरु ही कर सकते हैं ।
क्या हम उनके विचारों का भारत बना पाए या अब भी बना पाएंगे ?यदि ऐसा कर पाए तो उनके प्रति सच्ची श्रध्दांजलि होगी ।
उस महा मानव को आज शाब्दिक श्रध्दांजलि ,और श्रध्दा नमन .

Wednesday, May 5, 2010

कर्ज मुक्ति का संतोष .....

आज जब पूरी दुनियां के साथ साथ हमारे देश में भी चार्वाक का सिध्दांत कर्ज लो घी पियो चल रहा है तो कर्ज आसानी से मिल रहा है और लोग ले रहे हैं .चादर के अनुसार पैर पसारने की बात बेमानी साबित हो रही है .आकंठ डूबे हुए हैं लोग कर्ज से .बाजार वाद ने उनके चेहरे से शिकन भी हटा दी है .नई पीढी तो और आगे है ।
खैर हम तो पुरानी पीढी के है ,सेवा निवृत्ति नजदीक है कर्ज समाप्ति की ओर हमारा ध्यान है .एक लम्बी कर्ज राशि हमने चुकाया है ,संतोष और शांति मिल रही है . हाँ इस कर्ज से हमारा बहुत भला हुआ है .कर्ज मुक्ति से लगा मानों बोझ हल्का हो गया है .आज ही बैंक में जमा अपने मूल पेपर मिले तो संतोष दूना हो गया ।
कर्ज मिलते समय जो खुशी मिली ,कर्ज मुक्ति से भी बड़ा संतोष मिला .सेवा निवृत्ति के बाद के आर्थिक बोझ से कुछ छुटकारा तो मिला ,इसका सुख और शांति है .संतोषी जीव को उसका मनमाफिक तो मिल ही गया .

Tuesday, May 4, 2010

पथ धर्म और न्याय का .....

आज जब हमारे जीवन में अर्थ और काम का प्रभाव बढ़ रहा है ,राजतन्त्र ,न्यायतंत्र एवं हमारे सारे व्यवहार में ये हावी हो रहे हैं ,तो चिंता होती है .बढ़ते अपराध ,टूटते सम्बन्ध ,दूषित होती समाज व्यवस्था हमें कहाँ ले जायेगी .बाजारवाद जब हम पर हावी हो रहा है तो चिंता और भी गहरी हो जाती है ।
समाज में आज धर्म ,नैतिकता ,आदर्शों की बात बकवास समझी जाती है .रूढ़ धर्म के परिप्रेक्ष में राजनीति को भी आज धर्म से परहेज है .सत्य ,प्रेम ,करुना ,दया ,सद्व्यवहार जो अवश्य करने योग्य हैं ,एक इन्सान को अपने व्यवहार में धारण करने योग्य हैं ,यही धर्म की परिभाषा है .एक मात्र मानव धर्म ही धर्म है .मानव से बड़ा कुछ भी नहीं .यह बात महाभारत जैसे ग्रन्थ में भी कही गई है .इसे न तब समझा गया और महाभारत हो गया दो परिवारों के बीच .आज भी इसे नहीं समझा जा रहा है .अर्थ और काम के पीछे दुनियां भाग रही है .नैतिकता बेमानी हो गई है .झूठ ,भ्रष्टाचार ,बेईमानी आज के बाजारवाद के अंग बनकर शिष्टाचार हो गए हैं ।
आज कोई गांधी ,बुध्द ,ईसा को नहीं सुनता ,अनुसरण नहीं करता .धर्म से राजनीति कतरा रही है ,अजीब सी स्थिति है आज ।
याद करें महाभारत के अंत में रुंधे गले से महर्षि वेदव्यास ने क्या कहा था -मैं दोनों हाथ उठाकर रोते हुए कहता घूम रहा हूँ ,मगर कोई मेरी बात नहीं सुनता .मैं कहता फिर रहा हूँ -अरे तुम लोग अर्थ ,काम किसी के पीछे दौड़ो ,उसके साथ धर्म को शामिल करना मत भूलो .धर्म तथा न्याय के पथ पर अगर तुम लोग चलते रहोगे ,तब धन समृध्दी भी बढ़ेगी ,इच्छाएं भी पूर्ण होंगी .इसके बावजूद लोग धन तथा काम के पीछे ही भागते हैं ,धर्म की सेवा नहीं करते ।
यही बात बुध्द ,ईसा,गांधी ने भी कहा था लेकिन उनकी क्या सुनी गई ,शायद नहीं .युग युग से ऐसा ही होता आया है और विनाश की तैयारी हुई है .भविष्य भी ऐसे ही संकेत दे रहा है .आज कहीं कोई सुरक्षित नहीं है .लोग अर्थ ,काम के लिए पागल हैं ।
ईश्वर,से प्रार्थना है कि,हमें सद्बुध्दी दे ,एक और महाभारत से बचाए .तब धर्म और न्याय के लिए कृष्ण थे ,आज कोई नहीं दिखाई देता ,शायद प्रकट होआकांक्षा यही है ,प्रार्थना यही है .उनहोंने कहा भी है ,धर्म की रक्षा के लिए मैं हर युग में अवतार लेता हूँ . शुभ की इच्छा है ,कुछ शुभ घटे यही प्रार्थना है .

Sunday, May 2, 2010

एक और कबीर ......

है वह मस्जिद ,नाम है उसका द्वारिका माई.उसमें निवास करने वाला व्यक्ति यह कहे कि द्वारका माई की सीढियां जो चढ़ेगा उसका भला ही भला होगा .है न विचित्र बात .लेकिन यह सच है .मस्जिद है महाराष्ट्र के शिर्डी नामक स्थान में और वह व्यक्ति है साईं बाबा जिसने लगभग जीवन के साठ पैंसठ वर्ष इस मस्जिद में बिताये .उनकी साधना स्थली यही द्वारका माई मस्जिद थी .युवावस्था से लेकर वृध्दावस्था तक अपना सारा जीवन एक फ़कीर के रूप में बाबा ने यहीं गुजारा था .
एक अनाम व्यक्ति जिसके नाम ,जाति कुल गोत्र का पता नहीं ,अपने एक भक्त के द्वारा साईं के संबोधन से साईं बाबा के नाम से जाना गया .उन्नीसवीं सदीमध्य से लेकर बीसवीं सदी के प्रारंभ तक उनका जीवन कल रहा .जीवन के अंतिम वर्षों में उनको बहुत प्रसिध्दी मिली . शिर्डी को सरे देश में पहचान मिली ।
साईं बाबा को आज यदि कबीर का ही अवतार माना जाये तो शायद अत्युक्ति नहीं होगी .कबीर से मिलता जुलता व्यक्तित्व था उनका .कबीर का जन्म उनका वंश ,उनका पालन पोषण आदि की जानकारी तो है पर बाबा के बारे में यह भी आज तक अजाना है .पर कबीर जैसा विद्रोही ,फक्कड़ाना,स्वभाव बाबा का भी था .साईं बाबा स्वयं कहते ,मैं कोई कन्फुन्क्वा नहीं जो दीक्षा दूं .आज उनका कोई पंथ नहीं ,कोई शिष्य परंपरा नहीं .कबीर के नाम से तो भला एक कबीर पंथ ही चलता है .बाबा ने व्रत ,उपवास पर कभी बल नहीं दिया .अपने इष्ट अनुसार वे लोगों को नाम जप पूजा अर्चना करने की सदा सलाह दी ।
हिन्दू ,मुस्लिम ,छोटे ,बड़े सभी उनके लिए सामान थे .कभी भेद भाव नहीं किया उन्होंने.कबीर की ही तरह ,भक्तों को वे मार्ग दिखाते ,कभी गलतियों के लिए फटकारते ,कभी कभी तो भक्त उनके द्वारा पिट भी जाते पर उन्हें बुरा न लगता ,वे इसे भी बाबा का आशीर्वाद मान लेते . आज की तरह वे भाषण या प्रवचन नहीं देते थे पर नेक सलाह ,नेक समझ जरूर देते अपने भक्तों को .आज यही बातें बाबा के वचनों के रूप में पढी समझी जाती हैं ।
युग बीता ,बाबा को समाधी लिए लगभग नब्बे वर्ष पूरे हुए पर आज भी बाबा लाखों ,करोड़ों भक्तो के साथ हैं ,उनकी समाधी उन्हें मार्गदर्शन देती है .हम स्वयं उनकी कृपा का अनुभव करते हैं .पूरे परिवार पर साईं बाबा की अपार कृपा है .बस उनके प्रति श्रध्दा चाहिए और हमें धैर्य ,उनकी कृपा प्राप्त हेतु .दो चीजें श्रध्दा और सबूरी ।
आज साईं कृपा से शिर्डी सम्रध्द और चमक ,दमक से भरपूर है ,व्यावसायिक रूप हो चूका है उसका पर हम आज भी उनका वही फकीराना स्वरुप देख सकते हैं ,श्रध्दा ,सबूरी के बल पर ।
महिमा अपार है उनकी ,लीला अपार है उनकी .दर्शन कीजिये और उनकी कृपा का अनुभव कीजिये ।
ॐ साईं राम ...

Friday, April 30, 2010

अपने बारे में.........

कोई महानता नहीं ,कोई विद्वता नहीं ,न कोई प्रसिध्द परिवार से सम्बन्ध .साधारण परिवार में जन्म ,हाँ कुछ संस्कार जरूर मिले .अपने मात पिता और गुरुजनों का आभारी हूँ इसके लिए ।
सरल ,सहज ,आडम्बर विहीन जीवन जीने में विश्वास रहा .सुरुचि पूर्ण भोजन एवं रुचिकर चर्चा एवं साहित्य से निकटता .धर्म ,दर्शन ,आध्यात्म एवं मानव मूल्यों पर आधारित साहित्य पहली पसंद .व्यर्थ की बहस ,विवाद से परहेज .स्वभाव अनुरूप विषयों पर संवाद पर प्रसन्नता ।
यथा संभव प्रसन्नचित एवं आनंदित रहना .अंतर्मुखी होने के कारण मिलने जुलने एवं लोगों से निकटता बनाने में संकोच .मन अनुरूप न हो तो थोडा क्रोध ,थोड़ी उद्विग्नता .संवेदनशीलता एवं भावुकता स्वभाव में ज्यादा .न काहू से दोस्ती न काहू से बैर ,का सिध्दांत ले अपने में मग्न ।
अब ब्लॉगर साथी है ,जिससे अपनी भोगी ,अपनी कही अनकही बाँट रहा हूँ .इसके माध्यम से सुधि जनों से ध्यान की अपेक्षा रखता हूँ .प्रेरणा ,सुझाव और आशीर्वचन का अभिलाषी हूँ ।
शेष फिर .......

Wednesday, April 28, 2010

मन को भाती पंक्तियाँ .....

१ ......भगवान बुध्द ने कहा है - "यदि तुम ईर्ष्या ,द्वेष ,घृणा ,निराशा एवं क्रोध के भावों से भरे रहोगे ,तो जीवन की समस्त अद्भुद्ताओं के साक्षात्कार से वंचित रहोगे ।"
पढ़िए और जीवन में आगे बढिए .जीवन का आनंद लीजिये ।
२ .......कविवर रवींद्र वाणी - " देश की माटी ,देश का जल ,
हवा देश की ,देश के फल ,
सरस बनें प्रभु सरस बनें ।
देश के घर ,देश के घाट ,
देश के वन ,देश के बाट ,
सरल बनें प्रभु सरल बनें ।
देश के तन ,देश के मन ,
देश के घर के भाई बहन ,
विमल बनें प्रभु विमल बनें ."

गुनगुनाइए यह प्रार्थना और अपने भारतको तदनुसार देखिये .

Sunday, April 25, 2010

स्मृति शेष है.....

हम लोग भोपाल साथ साथ आये ,साथ साथ प्रशिक्षण लिया एवं भेल संस्थान में साथ साथ सेवा में आये .अच्छा सम्बन्ध रहा इतने दिनों ,लगभग चालीस साल ।
एक इमानदार ,साहसी ,कर्मठ एवं मिलनसार संक्षेप में यही परिचय है उसका .शुरू में हम लोगों का नजदीकी सम्बन्ध रहा ,बाद में विभाग परिवर्तन के बाद यदा कदा ही मिलना जुलना रहा ,मिलते तो गले मिलकर ।
दो दिन पूर्व उसका देहावसान हुआ .उसके साथ बिताये क्षण आज याद आ रहे हैं .उसके सेवा निवृत्ति के भी अभी लगभग दो वर्ष थे .कब किसका बुलावा आ जाये ,कहा नहीं जा सकता ।
अब तो उसकी स्मृतियाँ शेष हैं .प्रभु से प्रार्थना है ,उसकी आत्मा को शुभ गति दे,उसे शांति मिले .

Wednesday, April 21, 2010

धरती रहेगी ,हम रहेंगे ....

h२२ अप्रेल पृथ्वी दिवस पर -
धरती की कराह.
रही अनसुनी सी ,
किसे है परवाह ।
कटते पेड़ ,उजड़ते जंगल ,
टूटते ,ढहते पहाड़ ,यंत्रों से ,
मानो होता दंगल।
प्रदूषित होते ,समुद्र और नदियाँ ।
बढते कदम विकास के ,
मनाई जाती खुशियाँ ।
माटी,पानी ,हवा में ,
निरंतर घुलता जहर ।
सांस लेना हो रहा दूभर ।
गाँव हो या शहर ।
प्रकृति का चेहरा भी ,
आज है बदला ।
सूखा अकाल और न जाने ,
क्या उसका स्वरूप हो अगला ।
बहुत हो चुका,
बाजारवाद का खेल ।
बचाएं प्रकृति ,बचाएं धरती ,
अब तो करें इनसे मेल ।
धरती की पीड़ा को ,
अब तो समझें ।
उसे चुनौती देकर ,
अपने जीवन ,अपने भविष्य से ,
न उलझें ।
धरती की सुरक्षा ,
हमारा मूल मन्त्र बने ।
माँ है हमारी यह ,
यह भाव मन में सने ।
आइये इसे हरा भरा करें ।
विनाश से इसे बचाएं ।
पेड़ लगाकर ,प्रदूषण हटाकर ,
मानव अस्तित्व को ,
सुखद और खुश हाल बनायें ।
धरती रहेगी ,हम रहेंगे ,
सन्देश जन ,जन को बताएं .

Tuesday, April 20, 2010

जब आवे संतोष धन .....

किसी कवि ने लिखा है - गो धन गज धन ,बाजि धन ,और रतन धन खान ।
जब आवे संतोष धन ,सब धन धूरि समान ॥ आज जब लोगों के पास बहुत कुछ है ,वह संपन्न ,साधन युक्त है पर वह खुश और संतुष्ट नहीं दिखाई पड़ता .निरंतर दूना ,चौगना करने के फेर में अपनी सुख शांति खो रहा है .महत्वाकांक्षा तो होना चाहिए पर अपनी चादर को देख कर .आज बाजार वाद ने हमारी सोच ही बदल दी है .कर्ज लेकर घी पियो ,इस तरह की प्रवृत्ति बढ़ रही है ।
हमने अपने माता पिता को देखा है ,सदा संतुष्टि का भाव लिए .साधारण परिवार था हमारा .थोड़ी सी आय में उन्होंने सुचारू रूप से गृहस्थी चलाई .शायद उनके गुणों का प्रभाव हम पर हुआ .यथास्थिति हमने व्यवहार किया .जैसी आय वैसा खर्च ,जीवन में यही सिद्धांत बना कर रखा .हमारे पड़ोसियों के पास क्या है ,न सोच कर अपनी उपलब्धियों पर संतोष करते रहे ।
कभी अमिताभ बच्चन ने भी अपने पिता की कही पंक्तियाँ याद किया था - अपने मन की हो जाये तो ठीक ,न हो तो और अच्छा .कितनी संतुष्टि का भाव है .उनके पिता श्री हरिवंश राय बच्चन ने जीवन में बहुत संघर्ष किया था स्वयं अमिताभ की भी जीवन गाथा संघर्ष से भरी हुई है .अपने पिता से अमिताभ ने बहुत कुछ सीखा है ,और वे बखान भी करते रहते हैं ।
पुरानी कहावत है - संतोषी सदा सुखी ।
अपनी सामर्थ्य भर कमाया ,उसका आनंद से उपभोग किया .जरूरी चीजों के लिए थोडा उधार भी किया ,आज इससे उबरने की स्थिति है .अपनी उपलब्धि पर संतोष है ,खुशी है और गर्व भी .ईश्वर ने बहुत कुछ दिया शक्ति से ज्यादा और दिया संतोष का भाव .सचमुच यदि हमें संतोष का महत्त्व समझ आ जाये तो सारा धन धूल के समान हो जाये . गुरुजनों एवं माता ,पिता के आशीर्वाद से हमें बहुत कुछ मिला ,शक्ति से ज्यादा ,यह हमें संतोष देता है ।
सचमुच ,जब आवे संतोष धन सब धन धूरि समान सार्थक पंक्तियाँ हैं ,जीवन की मार्गदर्शक हैं .प्रेरणा स्त्रोत हैं .
जब अवे संतोष धन

Sunday, April 18, 2010

आदमी को आदमी के प्यार से बांधो .

विद्यार्थी जीवन में हमारे विद्यालय का वातावरण बहुत कुछ साहित्यिक और सांस्कृतिक था .कितने कार्यक्रम हमारे विद्यालय में होते थे ,याद कर आज भी उस पर गर्व होता है .विद्यालय ने सचमुच हमें एक अच्छा विद्यार्थी बनाया .साहित्यिक माहौल वाले अपने विद्यालय की दीवार में लिखी एक कविता आज भी मुझे याद है जिसमे प्रेम की महिमा गायी गई है ।
पूर्णिमा के चाँद को ,ज्वार से बांधो।
सांप को बीन की झंकार से बांधो ।
बांधना गर आदमी को चाहते हो ,
तो आदमी को आदमी के प्यार से बांधो ।
गांधी विचार धारा से प्रेरित हमारे विद्यालय ने हमें बहुत कुछ दिया .धैर्य ,अनुशासन ,आदर सम्मान के भाव और प्रेम हमारे विद्यालय की ही हमको देन है . मानव मूल्यों की पहचान हमें उसी ने दिया .कबीर ,तुलसी ,मीरा ,नानक आदि को हमने भली भांति आत्मसात किया .विद्यालय एवं उसके गुरुजन सचमुच में हमारे लिए आदर्श रहे ,उसका प्रभाव आज तक हमारे मन में है .
मैं आभारी हूँ अपने विद्यालय एवं अपने गुरुजन का ,जो कुछ बन सका या कुछ अच्छा कर सका .

Friday, April 16, 2010

खुशियों का खजाना

दूसरों की तरह मुझे भी खुशियों की चाहत है .ढूंढता रहता हूँ ,कहाँ से मिले खुशियाँ .कभी सुबह के उदय होते सूर्य को देखता हूँ ,कभी चिड़ियों के चहचहाने को सुनता हूँ ,बगीचे के पेड़ों में खिले फूलों को निरखता हूँ ,मन खुश हो जाता है .कार्यालय में पहुँच कर सबको प्रेम से मिलता हूँ ,नमस्कार होती है ,लोगों की मुस्कान से मन प्रसन्न हो जाता है.अपने काम को उत्साह और मन से करता हूँ ,खुशी मिलती है .दोपहर का भोजन अनुराग से करता हूँ ,तृप्ति मिलती है .घर लौटकर अपने परिवार जनों के साथ खुशियाँ बाँट ता हूँ .शाम की बेला में भ्रमण में निकलता हूँ ।
वापस आकर एक और खुशी के खजाने को ढूंढ लेता हूँ ,साहित्य के अध्ययन में मानो मुझे खुशियों का खजाना मिल जाता है .एक नींद में सुबह हो जाती है ।
यही हैं खुशियाँ .अपने आसपास आसानी से उपलब्ध है खुशियाँ .कभी कभी अतीत के संघर्ष पर अपनी विजय पर हर्षित हो लेता हूँ ,नौकरी के दौरान अपनी उपलब्धियों को देख कर बड़ी खुशी मिलती है .सबका स्नेह दुलार ,सम्मान ,प्यार पाकर गौरव होता है .कभी कुछ लिख कर खुश हो लेता हूँ .जब उसे दुसरे पढ़ते हैं ,सराहना मिलती है ,खुशी दूनी हो जाती है .सदा खुश रहने का प्रयास करता हूँ ,यथा संभव चिंताओं को दूर रखने का प्रयास करता हूँ ।
मीठे बोल ,स्नेह ,प्रेम ,लोगों का सम्मान ,प्रकृति दर्शन मुझे अपार खुशियाँ देते हैं .खुशियाँ दें खुशियाँ लें इस सिध्दांत पर मैं भरोसा करता हूँ .हर कहीं खुशियाँ तलाशता रहता हूँ .जीवन खुशियों भरा है यह विश्वास सा हो गया है .हम सब खुश रहें ,खुशियाँ बांटें इन्हीं आशाओं के साथ .

Wednesday, April 14, 2010

नाम की पहचान

वर्षों पहले जब मैं भोपाल आया था ,टी .टी .नगर के पूरे नाम से परिचित न होने के कारण इसे टाटा नगर समझता था .ग्लानि हुई यह जानकर कि यह तात्या टोपे नगर है .तब से आज तक इस सक्षिप्ती कारण का जाल तेजी से फैला है .एम् .पी नगर ,एम् .वी एम् .,एम् एल बी ,सी एम् ,जे .के .रोड आदि हर जगह संक्षिप्त नामों का सिलसिला चलन में है .नगर ,सस्थाएं ,नाम ,उपनाम जिस उद्देश्य को लेकर रखे जाते हैं वह उद्देश्य ही समाप्त हो गया है मानो .महाराणा प्रताप ,तात्या टोपे ,महारानी लक्ष्मी बाई ,मोती लाल ,महात्मा गांधी ,नेहरू जैसे आदर्श ,माननीय प्रसिध्द व्यक्तियों के आदर्शों को मानो इस संक्षिप्तीकरण ने निगल लिया है .आज सब कुछ उलट पलट है ।
क्या हम एक सद्प्रयास यह नहीं कर सकते कि यथासंभव इससे बचें और दूसरों को भी इसकी सलाह दें .अपना नाम भी यथा संभव विस्तार से उपयोग करें .महा पुरुषों का भी पूरा नाम ही उच्चारित करें .अंगरेजी कारण का भूत आखिर कब तक हम पर हावी रहेगा ।
नामों को सार्थक बनायें .नयी पीढी को एक सन्देश दें .अपनी संस्कृति ,अपनी परंपरा का सम्मान बढ़ाएं ।
कहिये आप तैयार हैं ? मेरा विनम्र अनुरोध स्वीकारेंगे ?
तो फिर आज से ,अभी से तैयार हो जाइये ,शुरू कर दीजिये नामों का विस्तार .नामकरण का उद्देश्य पूरा होगा .महापुरुषों की आत्माएं हमें आशीष देंगी .युवा पीढी उनसे परिचित होगी ,उन्हें जानने समझने को उत्सुक होगी .और यही उद्देश्य था नामकरण का .तब हमारे नाम की सही पहचान होगी .

Tuesday, April 13, 2010

वैशाखी पर्व शस्य श्यामला पंजाब की भूमि का मौज मस्ती वाला पर्व है .लहलहाती फसल देख पंजाबी किसान झूम उठता है ,पैर थिरकने लगते हैं ,भांगड़ा में वह मस्त हो जाता है .वीर बहादुर यह कौम सदियों से अपने साहस,शौर्य और बलिदान के लिए जानी जाती है .
मुग़ल और ब्रिटिश शासन के दौरान संघर्ष के इनके अनेक किस्से प्रचलित हैं .वैशाखी पर्व का यह दिन इसलिए भी याद किया जाता है कि आज के ही दिन १९१९ में ब्रिटिश शासन के एक प्रतिनिधि द्वारा जलियांवाला बाग में लोमहर्षक कांड रचा गया था .एक जलसे में शामिल सैकड़ों निहत्थे लोगों को क्रूर नराधम जनरल डायर ने इसी जगह पर भूनवा डाला था . विश्व इतिहास में शायद ही ऐसी नृशंस हत्या का उदाहरण मिले .ब्रिटिश शासन का न्याय तो देखिये .उसे सम्मानित किया गया था इस कार्यवाही के लिए .वह जिन्दा रहा बिना पश्चाताप के ,लगभग छह साल .आखिरी तक वह यह कहता रहा कि मुझे नहीं मालूम कि मैंने सही किया या गलत .आखिर कुदरत ने उसे सजा दी ,वह अपना आख़िरी समय लकवा ग्रस्त रहकर ही बिताया ।
कितने लोग आज उन शहीदों को याद करते हैं ,क्या उनकी कुर्बानी हम भूल गए ? वर्षों बाद उनकी स्मृति में स्मारक बनाया गया उस बाग में .इस दिन वहां अमर शहीदों को श्रध्दांजलि दी जाती है .कैसे आज हम उस स्वतंत्रता संग्राम को भूले जा रहे हैं जिससे हमें आजादी मिली ।
प्रसिध्द लेखिका और पत्रकार मनोरमा दीवान ने लिखा है कि देश की आजादी पर पंडित नेहरू द्वारा संसद भवन पर फहराया गया तिरंगा झंडा ऐसा गायब हुआ कि आज तक नहीं मिल पाया .आश्चर्य होता है उनके द्वारा यह जानकर कि आजाद भारत में सार्वजनिक तौर पर १९५६ तक ब्रिटिश शासन के अन्याय ,उनके अत्याचार ,उनके अमानुषिक कृत्यों पर वक्तव्य की मनाही थी ।
आज भी ब्रिटिश काल के प्रतीक चिन्हों को हम ढोएजा रहे हैं .हमारे शहीद हमसे भूले भुल्वाये जा रहे हैं .हमारा संविधान भी क्या वास्तव में स्वदेशी है ?सोचना पड़ रहा है ।
एक पीड़ा सी उठ रही है आज के दिन ,इसी लिए लिखने बैठ गया कि आप के साथ बाँट लूं इसे .शायद अपनी सोच का कोई साथी मिल जाये . उन शहीदों के प्रति विनम्र श्रध्दांजलि .

Monday, April 12, 2010

हाँ अब बेटियां जन्म लेंगी

और बेटी ने जन्म लिया ,
बजी थालियाँ ,ढोलक की थापियाँ ।
घर परिवार को मिली बहुत बहुत बधाइयाँ ।
खिलती ,खिलखिलाती ,
बेटी बढ़ती गई ,
उम्र दर उम्र ,
परिवार के सहयोग ,स्नेह से
वह बहुत आगे बढी।
शिक्षा के उच्च पायदान चढी ।
भारतीय पुलिस सेवा में ,
वह दूसरी किरण बेदी बनी ।
वह आज उच्च पद पर है .
परिवार जनों का स्नेहित कर
उसके सर पर है ।
वह उसका घर आज सम्मानित है ।
माँ,अपनी साधना ,अपनी उपलब्धि ,
पर हर्षित है ।
आसपास जब माँ की नजर ,
पूतों वाली माँओं पर पड़ती।
एक टीस मन में उभरती ।
देखती उन्हें निर्वासित ।
विधवा या वृध्दाश्रम में स्थापित ।
शब्द फूटते होंठों से ,
इन माँओं के बेटों से तो
बेटियां भली ।
कम से कम ये तो ,
न जातीं छलीं।
काश अब बेटियों का ,
जन्म घर समाज में ,
बोझ न बने ।
बेटे बेटियां बराबर में ,
परिवार स्नेह रस में सनें ।
हाँ ,अब बेटियां जन्म लेंगी ।
नहीं होंगी भ्रूण हत्याएं ,
वे सकुशल जन्मेगी ।
इस समाज ,इस देश को ।
और किरण बेदी ,और कल्पना चावला ,
अवश्य देंगी ,अवश्य देंगी .

Saturday, April 10, 2010

आस्थाओं पर प्रहार क्यों ?

आज कल आये दिन यह देखा जाता है कि धर्मों पर उलटे सीधे आक्षेप लगाये जाते हैं .हमारे आराध्य ,देवी देवताओं एवं प्रतीकों पर अनावश्यक टिप्पणी करना मानो शगल सा हो गया है . राम ,कृष्ण ,गणेश एवं अन्य हिन्दू देवी देवताओं पर निरंतर अभद्र टिप्पणी की जा रहीं हैं .ब्रिटिश काल में तो यह सब होता ही था लेकिन स्वतन्त्र भारत में भी यह सब जारी है.धर्म निरपेक्षता की आड़ में भी यह सब चल रहा है .कभी राम सीता को भाई बहिन बताना ,कभी द्रौपदी के चरित्र पर उंगली उठाना ,कभी ऍम .ऍफ़ .हुसेन जैसे विवादास्पद चित्रकारों द्वारा अश्लील चित्र हमारे आराध्यों के बनाना आखिर किस बात का संकेत है ?
कुछ समय पूर्व दक्षिण की कोई अभिनेत्री खुशबू के लिव इन रिलेशन के बयान पर सुप्रीम कोर्ट के माननीय न्यायाधीशों की कृष्ण राधा के संबंधों पर की गई टिप्पणी दुखद है .ये अंगरेजी पढ़े लिखे तथाकथित बुध्दिजीवीयों द्वारा की जा रही ये टिप्पणियाँ इनके मानसिक दिवालियापन की ही शायद उदाहरण हैं ।भारतीय दर्शन ,रामायण ,महाभारत का शायद इनको सतही ज्ञान हो या शायद वह भी नहीं .पश्चिम को ये बहुत जानते हों पर भारत को नहीं .एम् .ऍफ़ .हुसेन जैसे विकृत मानसिकता के चित्रकारों की पैरवी तो भारत सरकार करती ही है पर तसलीमा नसरीन को भारत में सुरक्षा भी नहीं मिलती है और सलमान रश्दी की रचनाओं पर पाबंदी लगती है .यह कैसा सर्व धर्म सद्भाव और कैसी धर्म निरपेक्षता ?
भगवान इन्हें सद्बुध्दि दे यही प्रार्थना है ताकि देश बचा रहे .

Sunday, March 14, 2010

बाजारवाद की उपज ये ढोंगी बाबा

हाल ही में बहुत से ढोंगी बाबाओं की पोल खुली है .धर्म के नाम से ,संतों के नाम से ,ईश्वर के नाम से अंध श्रध्दालु भोले भक्तों को ठगने वाले ये इच्छाधारी बाबा ,नित्यानंद बाबा ,कृपालु जी महाराज जैसे बाजारवाद की उपज तथाकथित पाखंडी बाबाओं की जितनी भी भर्त्सना की जाये वह भी कम है .रातों रात लखपति ,करोड़ पति बन कर ,सुख सुविधा बढाकर ,भोग विलासमय जीवन जी रहे हैं .यही स्थिति हमारे तथाकथित शंकराचार्यों की है .शाही रहन सहन अपनाकर आखिर ये हिन्दू समाज का क्या भला कर रहे हैं ?
बाजारवाद ने मानो सारी नैतिकता को ताक पर रख दिया है . नेता ,अधिकारी के साथ साथ बाबा लोग भी अपना धंधा चला रहे हैं ।
क्या कानून इन पकडे गए लोगों को उचित सजा देगा ? इन सब की मिलीभगत की क्या पोल खुल खुलेगी ?यह अभी देखना है .या फिर स्थिति ढ़ाक के तीन पात ही होगी .फिर उनका धंधा चल निकलेगा .

Monday, March 8, 2010

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर भारतीय समाज में महिला की स्थिति क्या है ,एक कन्या के जन्म पर घर का वातावरण कैसा हो जाता है और एक मां जो पहले एक नारी है उसकी मनोदिशा अपनी कन्या के प्रति जन्म देने के लिए कैसी रहती है .ऐसे अनेक प्रश्न सामने आते हैं और अंत में सकारात्मक रुख अपनाकर वह समाज ,परिवार का रुख अपनी ओर करने का बीड़ा उठाते हुए आशावान हो जाती है ,यही है इस कविता का उद्देश्य ।
इसे पढ़ें और शुभ आशीर्वाद दें ,यही आप सब सुधी जन से अपेक्षा के साथ.............
हाँ , बेटी ! तुझे मैं जन्म दूंगी ।
जानती हूँ , तेरे जन्म पर ,
नहीं बजेंगी थालियाँ ।
गूंजेंगी नहीं घर में ,
ढोलक की थापियाँ ।
सास ,ससुर अन्य घर वालों के ,
चेहरे लटके होंगे।
मेरे पति याने तुम्हारे पिताभी
साथ ,साथ उनके,
कहीं भटके होंगे ।
मैं जानती हूँ ,
घर में छाई होगी उदासी ,
खुशियों के बदले ,मानो ,
मिल रही हो फांसी ।
फिर भी मैं ,
तुझे जन्म दूंगी ।
अपने अधूरे अरमान ,
तुझसे पूरा करूंगी ।
किरण बेदी , कल्पना चावला का ,
स्वप्न मैंने भी देखा ।
परिस्थिति वश ,स्वप्न पर ,
खिंची एक आड़ी रेखा ।
हाँ , तब से अब तक ,
बहुत आत्म बल संजोया है ।
धीरज का संबल ले इच्छाओं को ,
आज तुम में पिरोया है ।
जन्म लेगी तू अवश्य ,
इस धरती पर आयेगी ।
घर की स्थितियां भी बदलेंगी ।
तेरे जन्म तक मना लूंगी सबको ,
आशा है घर परिवार का ,
स्नेह प्रेम तू जरूर पायेगी ।
तेरा जन्म , मेरा निश्चय है ,
रंग उसमें अवश्य भरूँगी ।
हाँ ,बेटी ! कुछ भी हो ,
तेरी भ्रूण हत्या मैं ,
नहीं करूंगी ,नहीं करूंगी ।
हाँ,तुझे जन्म दूंगी ,
मैं तुझे जन्म दूंगी .




Sunday, February 28, 2010

बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक होली

त्यौहारों के देश भारत में सदियों से होली पर्व हर्ष और उल्लास से मनाया जाता है .रंग गुलाल से लेकर कीचड पानी सभी कुछ होली में काम आता है .पुरातन कथा में होलिका का दाह और प्रह्लाद की रक्षा प्रतीक है बुराई पर अच्छाई की विजय का .बच्चे बूढ़े ,नारियां सभी भेद भाव भूल मगन हो जाते हैं होली के रंग में .गरीब अमीर सभी गले मिलते हैं ,तिलक लगाते हैं ,सब भेद भाव बिसरा कर एक हो जाते हैं होली के दिन .सारा देश मानो एक हो जाता है ।
देश की एकता के लिए ,मजबूती के लिए ,होली पर्व एक सौगात है हम भारतीयों के लिए .एक दूसरे के लिए जियें ,प्रेम और भाईचारे का सम्बन्ध एक दूजे संग हो ,यही सन्देश तो हमें देता है होली का पर्व .काश ,हम इस पर्व की महत्ता को भली भांति समझें ,सार्थक हो यह पर्व ।
यही इच्छा आकांक्षा है इस पर्व के साथ .