Friday, May 7, 2010

पुन्य स्मरण एक महान आत्मा का ....

शस्य श्यामला बंग भूमि की गोद में एक और महा मानव ने जन्म लिया था आज ही के दिन .देवेन्द्र नाथ टैगोर के घर इनका जन्म हुआ .पिता के समान ही इनके सभी भाई और बहिन तथा स्वयं रवीन्द्र बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे . दर्शन ,काव्य ,कथा ,उपन्यास,तथा निबंध आदि अनेक विधाओं में कवि रवीन्द्र पारंगत थे .भारतीयों का माथा गर्व से उन्नत हो उठा जब साहित्य का पहला नोबल पुरस्कार गीतांजलि काव्य पर भारतीय रवीन्द्र को मिला .संगीत के लगाव के कारण संगीत की एक विधा आज रवीन्द्र संगीत के नाम से प्रसिध्द है ।
गांधी को महात्मा संबोधन देने का श्रेय कविवर को ही जाता है .एकला चलो रे नामक प्रसिध्द रचना भी गांधी को समर्पित है .अकेले पड़े गांधी को इस गीत से प्रेरणा मिली थी .समय समय पर देश की तत्कालीन स्थिति पर दोनों महामानवों की गंभीर चर्चा भी होती थी .दोनों एक दूसरे का कहीं मतभेद होने के बाद भी सम्मान करते थे ।
आज भारत और बंगला देश के राष्ट्रीय गान कवि की ही रचनाएँ हैं .इन गानों को सुनकर मन भाव विभोर हो जाता है . शिक्षा के क्षेत्र में आज शांति निकेतन जो विश्व भारती विश्वविध्यालय के नाम से जाना जाता है गुरुदेव की ही देन है .कठिन तपस्या और साधना के बल पर स्थापित शान्तिनिकेतन ने उत्कृष्ट विद्यार्थी ,कलाकार ,चित्रकार और महान अध्यापक की एक श्रंखला भारत को दी है ,प्रसिध्द विद्वान् अमर्त्य सेन का नामकरण भी शान्तिनिकेतन का ही है ।
आज उनकी जयन्ती है ,उनका व्यक्तित्व एवं कृतित्व सहसा स्मरण हो आता है .जहाँ निर्भयता हो ,संकीर्ण सोच की दीवारें न हों और गर्व उन्नत मस्तिष्क हो ,ऐसे राष्ट्र की कल्पना कवि गुरु ही कर सकते हैं ।
क्या हम उनके विचारों का भारत बना पाए या अब भी बना पाएंगे ?यदि ऐसा कर पाए तो उनके प्रति सच्ची श्रध्दांजलि होगी ।
उस महा मानव को आज शाब्दिक श्रध्दांजलि ,और श्रध्दा नमन .

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