Saturday, May 22, 2010

क्यों नहीं भारतीय होने का गर्व .....

हिन्दू ,सिक्ख ,जैन ,बौध्द ,मुस्लिम ,ईसाई और पारसी होने का हमें गर्व है ,पर भारतीय होने का कोई गर्व नहीं .कोई कोई धर्मावलम्बी तो देश के ऊपर अपने धर्म को स्थान देते हैं .क्या बिना देश के किसी का धर्म या वह स्वयं जिन्दा रह सकता है ?
आज हर कोई धर्म का ध्वज लिए घूम रहा है .स्वयंभू मठाधीश ,नेता धर्म के नाम पर मनमानी कर रहे हैं ,लोगों को बरगला रहे हैं .हमारे राजनेता भी इसमें पीछे नहीं हैं .एक बड़ा दोष उनका भी है .वोटों की राजनीति के कारण वे भी धार्मिक विवादों को हवा दे रहे हैं .अल्पसंख्यक के नाम पर भी गंदी राजनीति से हमारे नेता गण बाज नहीं आते .आज देश के विकास ,देश की प्रगति और देश के उत्थान से ज्यादा राजनीतिकों को अपने वोट बैंक की चिंता है .जाति ,धर्म के नाम से देश की राजनीति चल रही है ।
आखिर कब तक यह सब चलता रहेगा ?विश्व राजनीति में भी आज हमारा कोई हितैषी नहीं है .पड़ोसी देश नेपाल ,चीन ,बंगला देश भी हमारे सगे नहीं हो पाए ,पाकिस्तान की तो बात ही और है .अमेरिका को तो बस अपने स्वार्थ कीही चिंता है ।
कुल मिलाकर आज की विषम परिस्थिति को देखते हुए हमें अपने संकीर्ण स्वार्थ को त्याग कर ,जाति धर्म की राजनीति से परे कुछ अलग सोचना होगा .देश धर्म ही सर्वोपरि हो ,यही हमारा उद्देश्य हो ,एकता हमारा नारा हो ।
धर्म और जाति के स्थान पर हमें भारतीय होने का गर्व पहले हो .हमारा देश होगा तो हम होंगे ,हमारा धर्म और हमारी जाति होगी .हममें से प्रत्येक भारतीय को भारतीय होने का गर्व होना चाहिए .

Saturday, May 15, 2010

भारतीय संस्कृति का पावन पवित्र दिन

.अक्षय.तृतीया भारतीय संस्कृति का धार्मिक ,सामाजिक दृष्टि से एक विशेष दिन है .सृष्टि के चार युगों में से एक त्रेता युग का प्रारंभ इसी दिन से माना जाता है .नर नारायण ,परशुराम ,हयग्रीव् का यह जन्म दिन है .मांगलिक .कार्यों यथा विवाह आदि के लिए यह दिन बहुत शुभ माना जाता है .भगवान विष्णु और भगवती लक्ष्मी का पूजन और उपासना का आज के दिन विशेष महत्त्व है ।
आज देश में बहुतायत में विवाह कार्य सनातन धर्मी संपन्न करेंगे .भगवान परशुराम का जन्म दिन हर्ष ,उल्लास से मनाया जायेगा .हाँ ,कहीं कहीं बाल विवाह भी संपन्न होंगे ,कानूनी .रोक के बाद भी .आज भी बाल विवाह देश के लिए सोचनीय और दुखद हैं .यह स्थिति बदलना चाहिए .क्यों न आज के दिन यह संकल्प लिया जाये और बाल विवाह के प्रति कड़ा रुख अपनाया जाये ।
आज के दिन उस .मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम को भी स्मरण करें जिनका जन्म त्रेतायुग में ही हुआ और जिनका आदर्श आज भी जीवंत है .भगवान परशुराम जिन्होंने अधर्म और अत्याचार के लिए क्षत्रिय बाना .धारण कर दुरात्माओं का .संघार किया वे भी हमारे लिए स्मरणीय हैं ।
.भावी पीढी उनके आदर्शों ,उनके कार्यों का अध्ययन करे ,मनन करे और अपनी संस्कृति से परिचित हो ,ऐसी अपेक्षा है .इस पावन और पवित्र पर्व पर हार्दिक शुभ कामनाएं और पवित्र भावों के साथ ..

Friday, May 7, 2010

पुन्य स्मरण एक महान आत्मा का ....

शस्य श्यामला बंग भूमि की गोद में एक और महा मानव ने जन्म लिया था आज ही के दिन .देवेन्द्र नाथ टैगोर के घर इनका जन्म हुआ .पिता के समान ही इनके सभी भाई और बहिन तथा स्वयं रवीन्द्र बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे . दर्शन ,काव्य ,कथा ,उपन्यास,तथा निबंध आदि अनेक विधाओं में कवि रवीन्द्र पारंगत थे .भारतीयों का माथा गर्व से उन्नत हो उठा जब साहित्य का पहला नोबल पुरस्कार गीतांजलि काव्य पर भारतीय रवीन्द्र को मिला .संगीत के लगाव के कारण संगीत की एक विधा आज रवीन्द्र संगीत के नाम से प्रसिध्द है ।
गांधी को महात्मा संबोधन देने का श्रेय कविवर को ही जाता है .एकला चलो रे नामक प्रसिध्द रचना भी गांधी को समर्पित है .अकेले पड़े गांधी को इस गीत से प्रेरणा मिली थी .समय समय पर देश की तत्कालीन स्थिति पर दोनों महामानवों की गंभीर चर्चा भी होती थी .दोनों एक दूसरे का कहीं मतभेद होने के बाद भी सम्मान करते थे ।
आज भारत और बंगला देश के राष्ट्रीय गान कवि की ही रचनाएँ हैं .इन गानों को सुनकर मन भाव विभोर हो जाता है . शिक्षा के क्षेत्र में आज शांति निकेतन जो विश्व भारती विश्वविध्यालय के नाम से जाना जाता है गुरुदेव की ही देन है .कठिन तपस्या और साधना के बल पर स्थापित शान्तिनिकेतन ने उत्कृष्ट विद्यार्थी ,कलाकार ,चित्रकार और महान अध्यापक की एक श्रंखला भारत को दी है ,प्रसिध्द विद्वान् अमर्त्य सेन का नामकरण भी शान्तिनिकेतन का ही है ।
आज उनकी जयन्ती है ,उनका व्यक्तित्व एवं कृतित्व सहसा स्मरण हो आता है .जहाँ निर्भयता हो ,संकीर्ण सोच की दीवारें न हों और गर्व उन्नत मस्तिष्क हो ,ऐसे राष्ट्र की कल्पना कवि गुरु ही कर सकते हैं ।
क्या हम उनके विचारों का भारत बना पाए या अब भी बना पाएंगे ?यदि ऐसा कर पाए तो उनके प्रति सच्ची श्रध्दांजलि होगी ।
उस महा मानव को आज शाब्दिक श्रध्दांजलि ,और श्रध्दा नमन .

Wednesday, May 5, 2010

कर्ज मुक्ति का संतोष .....

आज जब पूरी दुनियां के साथ साथ हमारे देश में भी चार्वाक का सिध्दांत कर्ज लो घी पियो चल रहा है तो कर्ज आसानी से मिल रहा है और लोग ले रहे हैं .चादर के अनुसार पैर पसारने की बात बेमानी साबित हो रही है .आकंठ डूबे हुए हैं लोग कर्ज से .बाजार वाद ने उनके चेहरे से शिकन भी हटा दी है .नई पीढी तो और आगे है ।
खैर हम तो पुरानी पीढी के है ,सेवा निवृत्ति नजदीक है कर्ज समाप्ति की ओर हमारा ध्यान है .एक लम्बी कर्ज राशि हमने चुकाया है ,संतोष और शांति मिल रही है . हाँ इस कर्ज से हमारा बहुत भला हुआ है .कर्ज मुक्ति से लगा मानों बोझ हल्का हो गया है .आज ही बैंक में जमा अपने मूल पेपर मिले तो संतोष दूना हो गया ।
कर्ज मिलते समय जो खुशी मिली ,कर्ज मुक्ति से भी बड़ा संतोष मिला .सेवा निवृत्ति के बाद के आर्थिक बोझ से कुछ छुटकारा तो मिला ,इसका सुख और शांति है .संतोषी जीव को उसका मनमाफिक तो मिल ही गया .

Tuesday, May 4, 2010

पथ धर्म और न्याय का .....

आज जब हमारे जीवन में अर्थ और काम का प्रभाव बढ़ रहा है ,राजतन्त्र ,न्यायतंत्र एवं हमारे सारे व्यवहार में ये हावी हो रहे हैं ,तो चिंता होती है .बढ़ते अपराध ,टूटते सम्बन्ध ,दूषित होती समाज व्यवस्था हमें कहाँ ले जायेगी .बाजारवाद जब हम पर हावी हो रहा है तो चिंता और भी गहरी हो जाती है ।
समाज में आज धर्म ,नैतिकता ,आदर्शों की बात बकवास समझी जाती है .रूढ़ धर्म के परिप्रेक्ष में राजनीति को भी आज धर्म से परहेज है .सत्य ,प्रेम ,करुना ,दया ,सद्व्यवहार जो अवश्य करने योग्य हैं ,एक इन्सान को अपने व्यवहार में धारण करने योग्य हैं ,यही धर्म की परिभाषा है .एक मात्र मानव धर्म ही धर्म है .मानव से बड़ा कुछ भी नहीं .यह बात महाभारत जैसे ग्रन्थ में भी कही गई है .इसे न तब समझा गया और महाभारत हो गया दो परिवारों के बीच .आज भी इसे नहीं समझा जा रहा है .अर्थ और काम के पीछे दुनियां भाग रही है .नैतिकता बेमानी हो गई है .झूठ ,भ्रष्टाचार ,बेईमानी आज के बाजारवाद के अंग बनकर शिष्टाचार हो गए हैं ।
आज कोई गांधी ,बुध्द ,ईसा को नहीं सुनता ,अनुसरण नहीं करता .धर्म से राजनीति कतरा रही है ,अजीब सी स्थिति है आज ।
याद करें महाभारत के अंत में रुंधे गले से महर्षि वेदव्यास ने क्या कहा था -मैं दोनों हाथ उठाकर रोते हुए कहता घूम रहा हूँ ,मगर कोई मेरी बात नहीं सुनता .मैं कहता फिर रहा हूँ -अरे तुम लोग अर्थ ,काम किसी के पीछे दौड़ो ,उसके साथ धर्म को शामिल करना मत भूलो .धर्म तथा न्याय के पथ पर अगर तुम लोग चलते रहोगे ,तब धन समृध्दी भी बढ़ेगी ,इच्छाएं भी पूर्ण होंगी .इसके बावजूद लोग धन तथा काम के पीछे ही भागते हैं ,धर्म की सेवा नहीं करते ।
यही बात बुध्द ,ईसा,गांधी ने भी कहा था लेकिन उनकी क्या सुनी गई ,शायद नहीं .युग युग से ऐसा ही होता आया है और विनाश की तैयारी हुई है .भविष्य भी ऐसे ही संकेत दे रहा है .आज कहीं कोई सुरक्षित नहीं है .लोग अर्थ ,काम के लिए पागल हैं ।
ईश्वर,से प्रार्थना है कि,हमें सद्बुध्दी दे ,एक और महाभारत से बचाए .तब धर्म और न्याय के लिए कृष्ण थे ,आज कोई नहीं दिखाई देता ,शायद प्रकट होआकांक्षा यही है ,प्रार्थना यही है .उनहोंने कहा भी है ,धर्म की रक्षा के लिए मैं हर युग में अवतार लेता हूँ . शुभ की इच्छा है ,कुछ शुभ घटे यही प्रार्थना है .

Sunday, May 2, 2010

एक और कबीर ......

है वह मस्जिद ,नाम है उसका द्वारिका माई.उसमें निवास करने वाला व्यक्ति यह कहे कि द्वारका माई की सीढियां जो चढ़ेगा उसका भला ही भला होगा .है न विचित्र बात .लेकिन यह सच है .मस्जिद है महाराष्ट्र के शिर्डी नामक स्थान में और वह व्यक्ति है साईं बाबा जिसने लगभग जीवन के साठ पैंसठ वर्ष इस मस्जिद में बिताये .उनकी साधना स्थली यही द्वारका माई मस्जिद थी .युवावस्था से लेकर वृध्दावस्था तक अपना सारा जीवन एक फ़कीर के रूप में बाबा ने यहीं गुजारा था .
एक अनाम व्यक्ति जिसके नाम ,जाति कुल गोत्र का पता नहीं ,अपने एक भक्त के द्वारा साईं के संबोधन से साईं बाबा के नाम से जाना गया .उन्नीसवीं सदीमध्य से लेकर बीसवीं सदी के प्रारंभ तक उनका जीवन कल रहा .जीवन के अंतिम वर्षों में उनको बहुत प्रसिध्दी मिली . शिर्डी को सरे देश में पहचान मिली ।
साईं बाबा को आज यदि कबीर का ही अवतार माना जाये तो शायद अत्युक्ति नहीं होगी .कबीर से मिलता जुलता व्यक्तित्व था उनका .कबीर का जन्म उनका वंश ,उनका पालन पोषण आदि की जानकारी तो है पर बाबा के बारे में यह भी आज तक अजाना है .पर कबीर जैसा विद्रोही ,फक्कड़ाना,स्वभाव बाबा का भी था .साईं बाबा स्वयं कहते ,मैं कोई कन्फुन्क्वा नहीं जो दीक्षा दूं .आज उनका कोई पंथ नहीं ,कोई शिष्य परंपरा नहीं .कबीर के नाम से तो भला एक कबीर पंथ ही चलता है .बाबा ने व्रत ,उपवास पर कभी बल नहीं दिया .अपने इष्ट अनुसार वे लोगों को नाम जप पूजा अर्चना करने की सदा सलाह दी ।
हिन्दू ,मुस्लिम ,छोटे ,बड़े सभी उनके लिए सामान थे .कभी भेद भाव नहीं किया उन्होंने.कबीर की ही तरह ,भक्तों को वे मार्ग दिखाते ,कभी गलतियों के लिए फटकारते ,कभी कभी तो भक्त उनके द्वारा पिट भी जाते पर उन्हें बुरा न लगता ,वे इसे भी बाबा का आशीर्वाद मान लेते . आज की तरह वे भाषण या प्रवचन नहीं देते थे पर नेक सलाह ,नेक समझ जरूर देते अपने भक्तों को .आज यही बातें बाबा के वचनों के रूप में पढी समझी जाती हैं ।
युग बीता ,बाबा को समाधी लिए लगभग नब्बे वर्ष पूरे हुए पर आज भी बाबा लाखों ,करोड़ों भक्तो के साथ हैं ,उनकी समाधी उन्हें मार्गदर्शन देती है .हम स्वयं उनकी कृपा का अनुभव करते हैं .पूरे परिवार पर साईं बाबा की अपार कृपा है .बस उनके प्रति श्रध्दा चाहिए और हमें धैर्य ,उनकी कृपा प्राप्त हेतु .दो चीजें श्रध्दा और सबूरी ।
आज साईं कृपा से शिर्डी सम्रध्द और चमक ,दमक से भरपूर है ,व्यावसायिक रूप हो चूका है उसका पर हम आज भी उनका वही फकीराना स्वरुप देख सकते हैं ,श्रध्दा ,सबूरी के बल पर ।
महिमा अपार है उनकी ,लीला अपार है उनकी .दर्शन कीजिये और उनकी कृपा का अनुभव कीजिये ।
ॐ साईं राम ...