Tuesday, November 1, 2011

टीम अन्ना

टीम अन्ना अभी मुश्किल में है,आरोप ,प्रत्यारोप जारी है.सत्ता और उसके चारण हर संभव टीम को दबाने में लगे हुए हैं.यह आन्दोलन किसी भी हाल में जारी रहना चाहिए .विपदाएं आयेंगी ,आखिर सत्ता की ताकत बहुत होती है .फिर भी आन्दोलन सफल होगा यह आशा तो करना ही चाहिए.

Monday, October 31, 2011

विज्ञापन की भयावहता .

बाजारवाद के इस युग में किस तरह विज्ञापन का संसार फ़ैल रहा है और कैसे मानव मूल्यों का क्षरण कर रहा है ,इस पर सोचना ,विचार करना हर प्रबुध्द नागरिक का कर्तव्य हो जाता है .कितना खतरनाक है विज्ञापन,इसकी झलक मुझे प्रसिध्द तमिल उपन्यासकार अखिलन के ज्ञानपीठ पुरस्कृत उपन्यास चित्रप्रिया हिंदी शीर्षक में मिली।
उपन्यास का नायक अन्नामलाई दुःख भरी हंसी से कहता है-हमारे देश में इस समय एक ऐसी आसुरी शक्ति तेजी से फैलती जा रही है.,जो एक हजार मंदिर ,दस हजार मस्जिद और एक लाख तिरुक्कुरल जैसे नीति ग्रंथों को एक ही बार में डुबो सकती है.उस शक्ति का एक रूप है ये विज्ञापन .यह ठीक है की हमारा काम सदाचार का उपदेश देना नहीं है परन्तु हमें नाना यंत्रों का प्रयोग कर अपने संस्कार और परम्पराओं का विनाश भी नहीं करना चाहिए।
उपन्यास १९७५ को पुरस्कृत हुआ था यानि की उसकी रचना पूर्व की रही होगी.आज से लगभग चार -पांच दशक पहले विज्ञापन का इतना प्रभाव तो नहीं ही था .क्या लेखक ने विज्ञापन की भयावहता की भविष्य वाणी की थी?आज फलीभूत हो रही है वह .सचमुच विज्ञापन का युग हमसे बहुत कुछ छीन रहा है ,वर्तमान के साथ भविष्य भी .क्या हम सचेत होंगे या इस प्रवाह में बह जायेंगे ? आज हमें इस पर चिंतन मनन करना होगा .सुखद भविष्य तभी हमारा होगा .

Saturday, October 15, 2011

is ki chhavi muskai thi.

दुःख की घड़ियों में यह बगिया ,मेरे मन में आई थी,
दुःख की घड़ियों में ही मैंने ,इसकी जड़ बैठाई थी !
दुःख की झड़ियों ने ही इस को ,उगते बढ़ते देखा था ,
कल ही पहले पहल निशा में ,इसकी छवि मुस्काई थी !!----- बच्चन
यही तो है दुःख का राज,तन मन को हिलाने के बाद ,एक शुकून देता है,समझ देता है,जीवन को एक नई दिशा देता है.नई सुबह का सन्देश देता है.यही तो कहते हैं इन पंक्तियों के माध्यम से कविवर हरिवंश राय बच्चन .सचमुच दुःख जाते जाते कितना सुख दे जाता है.

Saturday, May 22, 2010

क्यों नहीं भारतीय होने का गर्व .....

हिन्दू ,सिक्ख ,जैन ,बौध्द ,मुस्लिम ,ईसाई और पारसी होने का हमें गर्व है ,पर भारतीय होने का कोई गर्व नहीं .कोई कोई धर्मावलम्बी तो देश के ऊपर अपने धर्म को स्थान देते हैं .क्या बिना देश के किसी का धर्म या वह स्वयं जिन्दा रह सकता है ?
आज हर कोई धर्म का ध्वज लिए घूम रहा है .स्वयंभू मठाधीश ,नेता धर्म के नाम पर मनमानी कर रहे हैं ,लोगों को बरगला रहे हैं .हमारे राजनेता भी इसमें पीछे नहीं हैं .एक बड़ा दोष उनका भी है .वोटों की राजनीति के कारण वे भी धार्मिक विवादों को हवा दे रहे हैं .अल्पसंख्यक के नाम पर भी गंदी राजनीति से हमारे नेता गण बाज नहीं आते .आज देश के विकास ,देश की प्रगति और देश के उत्थान से ज्यादा राजनीतिकों को अपने वोट बैंक की चिंता है .जाति ,धर्म के नाम से देश की राजनीति चल रही है ।
आखिर कब तक यह सब चलता रहेगा ?विश्व राजनीति में भी आज हमारा कोई हितैषी नहीं है .पड़ोसी देश नेपाल ,चीन ,बंगला देश भी हमारे सगे नहीं हो पाए ,पाकिस्तान की तो बात ही और है .अमेरिका को तो बस अपने स्वार्थ कीही चिंता है ।
कुल मिलाकर आज की विषम परिस्थिति को देखते हुए हमें अपने संकीर्ण स्वार्थ को त्याग कर ,जाति धर्म की राजनीति से परे कुछ अलग सोचना होगा .देश धर्म ही सर्वोपरि हो ,यही हमारा उद्देश्य हो ,एकता हमारा नारा हो ।
धर्म और जाति के स्थान पर हमें भारतीय होने का गर्व पहले हो .हमारा देश होगा तो हम होंगे ,हमारा धर्म और हमारी जाति होगी .हममें से प्रत्येक भारतीय को भारतीय होने का गर्व होना चाहिए .

Saturday, May 15, 2010

भारतीय संस्कृति का पावन पवित्र दिन

.अक्षय.तृतीया भारतीय संस्कृति का धार्मिक ,सामाजिक दृष्टि से एक विशेष दिन है .सृष्टि के चार युगों में से एक त्रेता युग का प्रारंभ इसी दिन से माना जाता है .नर नारायण ,परशुराम ,हयग्रीव् का यह जन्म दिन है .मांगलिक .कार्यों यथा विवाह आदि के लिए यह दिन बहुत शुभ माना जाता है .भगवान विष्णु और भगवती लक्ष्मी का पूजन और उपासना का आज के दिन विशेष महत्त्व है ।
आज देश में बहुतायत में विवाह कार्य सनातन धर्मी संपन्न करेंगे .भगवान परशुराम का जन्म दिन हर्ष ,उल्लास से मनाया जायेगा .हाँ ,कहीं कहीं बाल विवाह भी संपन्न होंगे ,कानूनी .रोक के बाद भी .आज भी बाल विवाह देश के लिए सोचनीय और दुखद हैं .यह स्थिति बदलना चाहिए .क्यों न आज के दिन यह संकल्प लिया जाये और बाल विवाह के प्रति कड़ा रुख अपनाया जाये ।
आज के दिन उस .मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम को भी स्मरण करें जिनका जन्म त्रेतायुग में ही हुआ और जिनका आदर्श आज भी जीवंत है .भगवान परशुराम जिन्होंने अधर्म और अत्याचार के लिए क्षत्रिय बाना .धारण कर दुरात्माओं का .संघार किया वे भी हमारे लिए स्मरणीय हैं ।
.भावी पीढी उनके आदर्शों ,उनके कार्यों का अध्ययन करे ,मनन करे और अपनी संस्कृति से परिचित हो ,ऐसी अपेक्षा है .इस पावन और पवित्र पर्व पर हार्दिक शुभ कामनाएं और पवित्र भावों के साथ ..

Friday, May 7, 2010

पुन्य स्मरण एक महान आत्मा का ....

शस्य श्यामला बंग भूमि की गोद में एक और महा मानव ने जन्म लिया था आज ही के दिन .देवेन्द्र नाथ टैगोर के घर इनका जन्म हुआ .पिता के समान ही इनके सभी भाई और बहिन तथा स्वयं रवीन्द्र बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे . दर्शन ,काव्य ,कथा ,उपन्यास,तथा निबंध आदि अनेक विधाओं में कवि रवीन्द्र पारंगत थे .भारतीयों का माथा गर्व से उन्नत हो उठा जब साहित्य का पहला नोबल पुरस्कार गीतांजलि काव्य पर भारतीय रवीन्द्र को मिला .संगीत के लगाव के कारण संगीत की एक विधा आज रवीन्द्र संगीत के नाम से प्रसिध्द है ।
गांधी को महात्मा संबोधन देने का श्रेय कविवर को ही जाता है .एकला चलो रे नामक प्रसिध्द रचना भी गांधी को समर्पित है .अकेले पड़े गांधी को इस गीत से प्रेरणा मिली थी .समय समय पर देश की तत्कालीन स्थिति पर दोनों महामानवों की गंभीर चर्चा भी होती थी .दोनों एक दूसरे का कहीं मतभेद होने के बाद भी सम्मान करते थे ।
आज भारत और बंगला देश के राष्ट्रीय गान कवि की ही रचनाएँ हैं .इन गानों को सुनकर मन भाव विभोर हो जाता है . शिक्षा के क्षेत्र में आज शांति निकेतन जो विश्व भारती विश्वविध्यालय के नाम से जाना जाता है गुरुदेव की ही देन है .कठिन तपस्या और साधना के बल पर स्थापित शान्तिनिकेतन ने उत्कृष्ट विद्यार्थी ,कलाकार ,चित्रकार और महान अध्यापक की एक श्रंखला भारत को दी है ,प्रसिध्द विद्वान् अमर्त्य सेन का नामकरण भी शान्तिनिकेतन का ही है ।
आज उनकी जयन्ती है ,उनका व्यक्तित्व एवं कृतित्व सहसा स्मरण हो आता है .जहाँ निर्भयता हो ,संकीर्ण सोच की दीवारें न हों और गर्व उन्नत मस्तिष्क हो ,ऐसे राष्ट्र की कल्पना कवि गुरु ही कर सकते हैं ।
क्या हम उनके विचारों का भारत बना पाए या अब भी बना पाएंगे ?यदि ऐसा कर पाए तो उनके प्रति सच्ची श्रध्दांजलि होगी ।
उस महा मानव को आज शाब्दिक श्रध्दांजलि ,और श्रध्दा नमन .