Saturday, October 15, 2011

is ki chhavi muskai thi.

दुःख की घड़ियों में यह बगिया ,मेरे मन में आई थी,
दुःख की घड़ियों में ही मैंने ,इसकी जड़ बैठाई थी !
दुःख की झड़ियों ने ही इस को ,उगते बढ़ते देखा था ,
कल ही पहले पहल निशा में ,इसकी छवि मुस्काई थी !!----- बच्चन
यही तो है दुःख का राज,तन मन को हिलाने के बाद ,एक शुकून देता है,समझ देता है,जीवन को एक नई दिशा देता है.नई सुबह का सन्देश देता है.यही तो कहते हैं इन पंक्तियों के माध्यम से कविवर हरिवंश राय बच्चन .सचमुच दुःख जाते जाते कितना सुख दे जाता है.

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