Saturday, November 29, 2008

और मुंबई फ़िर बची .

एक बार फ़िर मुंबई पर दहशत गर्दों ने निशाना साधा था ,मुंबई की शान ताज होटल इस बार निशाने पर रहा .जांबाज वीरों ने आखिर आतंकियों के मंसूबों पर फ़िर पानी फेर दिया .उन शहीदों को हमारा शत शत नमन । यह आतंकी हमला मुंबई पर नहीं यह देश पर हमला था .देश के कर्णधारो अब तो चेतो ।
अपने सुरक्षा घेरे से बाहर निकलो .अपनी क्षुद्र और अवसरवादी राजनीति त्यागो .बहुत हो गया आतंवादियों
का पोषण .जाती धर्म से ऊपर उठो ,देशको बचाओ .नहीं तो तुम्हे क्षमा नहीं किया जाएगा .
नेस्तनाबूत करो आतंक वादियों को । हमारा गुप्तचर विभाग निकम्मा साबित हुआ ,लगाम सासों उस पर।
शहीदों को मुआवजा दे कर ही अपने कर्तव्य की इतिश्री मत समझो .सख्त कानून बनाओ.आतंकवादियों का कोई धर्म और मजहब नहीं होता .आतंक आतंक ही होता है .
आखिर कब तक निर्दोषों का खून बहेगा .जागो ,चेतो मेरे देश के जिम्मेदार नेताओ ।
अपना कर्तव्य निबाहो .भाषण बाजीसे कुछ नहीं होगा .

Wednesday, November 26, 2008

शुभ प्रयास

आज की तेज ,भागदौड़ की जिन्दगी ,
के बीच गायब हो रही ,
मुस्कान को
आओ, आज ढूँढें।
प्रातः ,उदय होते सूरज की ,
किरणों के साथ ।
दाना चुगती चिडियों की
चहचहाहट के साथ ।
मुदित होते ,
खिलते गुलाब के साथ ।
एक मजबूर ,असहाय, निरक्षर के लिए ,
बढाकर अपने हाथ ।
ईर्ष्या ,द्वेष ,घृणा त्याग ,
सद्भाव की कर बात ।
खुशियाँ दें , ख़ुद मुस्कुराएं।
औरों को भी ,
इस शुभ प्रयास में ,
अपने साथ लायें ।

Tuesday, November 25, 2008

" निराला "की वह

निराला की वह -
आज भी तोड़ती पत्थर ,
इलाहाबाद के पथ पर ही नहीं ,
सारे भारत भू पर।
फोर लेन,सिक्स लेन -
सड़कों का काम हो ,या ,
गगन चुम्बी भवनों का निर्माण हो ।
सब में तलाशती वह अपनी भूमिका ।
मनो ,विकास के नक्शे पर चलाती तूलिका ।
चलती वह पाँव पाँव ,
टूटी ,फूटी झोपड़ी उसकी छाँव ।
बस ,ढूनती वह काम -
अपने गुजारेके लिए ,
अलमस्त ,सुबह से शाम तक ,
पत्थरों पर हथौड़े चलाती,लक
ईंट,गारा सर रखती ,
चलती जाती बेफिक्र हो ,
जीवन की रफ़्तार के संग ।
प्रगति की राह सड़कों पर ।
विकास के नक्शे भवनों में बनते ,
दुनिया आज और बड़ी होती ।
लेकिन बेफिक्र वह -
उसकी चिंता तो आज भी
रोटी होती ।
हाँ ,वह नींव का वह पत्थर है ।
गाँव ,शहर जिस पर निर्भर है .
आख़िर है तो नींव ही ,
ढँक दी जायेगी ।
प्रगति और विकास का श्रेय ,
किसी और को दे जायेगी ।
किसी और को दे जायेगी .

Saturday, November 22, 2008

भावों की अंजलि

हमारी भाव सरिता पहले,गुरु चरन स्पर्श करे।
उनके भाव्, उनका आशीष,ह्रदय मे धरे।
फिर कल कल छल छल ,हमारे जीवन मे बहे।
जीवन का सार हमसे आपसे,सदा कहती रहे।
आओ हम मिल जुल कर् ,अपने सुख दुख बाटें
विचार कि बोनी कर,खुशियो की फसले काटे।
अपने पुरखो के कर्म,धर्म् को जीवन मे अपने लाये।
शस्य श्याम्ला अपनी धरती,इसको स्वर्ग बनाये ।
यह् धरती माँ बेटे इसके,आपसमे हम भाई।
फिर क्यो हम् पर जमी हुई,भेद् भाव की काई।
अपनी भाव् सरिता मे भाई,आओ करे स्नान्।
त्यागे आज् द्वेश् भाव् हम्,प्रेम दया का कर् ले ध्यान्।
भाव् सरिता मे स्वागत् है,करे अनुग्रह् मुझे आप्।
अपने भावो कि अन्जलि से,हर् ले जीवन का सन्ताप्।
आपके भावो कि भीख मांगता हू।
जन कल्यान् की सीख़ चाहता हूँ


सादर प्रणाम

हमको जीवन जीना है

जीवन है तो सुख है ,दुःख है ,
आते हैं बारी बारी ।
हंस कर जी लें ,रोकर जीलें,
जीवन है तो जीना है ।
आपद और निरापद के क्षण ,
आयेंगे और जायेंगे ,
स्वीकार करें या ठुकरा दें,
फ़िर भी जीवन जीना है ।
गरल घुले यदि जीवन में तो ,
बारी आयेगी अमृत की ,
मेल भले हम बिठा न पायें ,
तो भी जीवन जीना है ।
मर कर जी लें
जी कर मर लें
यह ऊहां पोह भले हो मन में ,
संघर्ष करें या करें पलायन
जीवन हमको जीना है ।
डर कर झेलें विसंगतियों को ,
या साहस से करें सामना ,
माना जीवन अबूझ पहेली ,
फ़िर भी जीवन तो जीना है ।
चाहे बोझ इसे माने हम ,
या कपास सा हल्का ,
अपनी सलीब तो आख़िर में ,
हमें स्वयं उठाना है ।
सिक्के जैसे जीवन के भी ,
धुप छाँव दो पहलू हैं ,
हँसना रोना ,सुख और दुःख ,
जीवन में जड़े नगीना हैं ।
जाने ,समझें और कदम रखें ,
भाई !हंस हंस कर जीना है ।
हमको जीवन जीना है ।
सार्थक जीवन जीना है .



Tuesday, November 18, 2008

हिन्दी हमारी मातृ भाषा

हम करोड़ों जन की मातृ भाषा हिन्दी है .विपुल साहित्य हिन्दी का है .अपने साहित्य से प्रेम करें .उसे सम्मान दें.उसे अपने भावों ,विचारों से सम्रध्द करें .हम सब भारत वासियों का कर्तव्य बनताहै किहिन्दी जो हमारी राष्ट्र भाषा भी है का मान करें .यह हमारी माँ है .आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने कहा है कि अपनी माँ को निस्सहाय और निरुपाय अवस्था में छोड़कर जो दूसरे की माँ की सेवा करता है ,उसके समान कृतघ्नी और कोई नहीं ।
आज हिन्दी के प्रति हमारी उदासीनता हिन्दी के भविष्य पर प्रश्न चिह्न लगा रही है .खुशी है कि इंटर नेट के माध्यम से हिन्दी ब्लोग्स की सहायता द्वारा हिदी का विशाल वर्ग तैयार हो रहा है .हम सब मिल कर अपनी माँ हिन्दी की सेवा कर एक और मातृ ऋण से उरण हो सकेंगे .
हमारे अहिन्दी भाषी भी इस पुनीत कार्य में भागीदार बनें ऐसी अपेक्षा है .हिन्दी हम सब की है .सारे देश की है .राष्ट्र मंच से राष्ट्र का आह्वान ,राष्ट्र के नाम संदेश राष्ट्र भाषा हिन्दी में ही होता है .फ़िर भी यह कटु सत्य है कि आज हिन्दी भाषियों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार होता है .महाराष्ट्र इसका एक उदाहरण है .पढा लिखा वर्ग ,हिन्दी फिल्मों के नायक नायिका ,हमारे तथाकथित राज नेता हिन्दी की उपेक्षा करने में चूकते नहीं .जिनकी जीविका हिन्दी में चलती है ,जो जनता से वोट हिन्दी में मांगते हैं उनका व्यवहार हिन्दी के प्रति उचित नहीं है ।
आइये !अपनी भाषा हिन्दी को हम सब वह मुकाम दें जिसकी वह अधिकारिणी है .बिना किसी पूर्वाग्रह के ,बिना द्वेष के हम अपने भावों ,विचारों के बल पर हिन्दी को उसका अधिकार दें .घरों में नाम पटल ,कार्यालय में हिन्दी का प्रयोग ,अपने हस्ताक्षर ,बोल चाल में इसका प्रयोग हिन्दी विस्तार का पहला कदम होगा .आइये शुरूवाद करें .आपस में ज्यादा से ज्यादा जुडें.शुभस्य शीघ्रम .

Monday, November 17, 2008

गाँधी की प्रासांगिकता

२ अक्टूबर को एक दैनिक पत्र के उपरोक्त शीर्षक में लोगों की प्रतिक्रिया दी गईथी .एक पाठक का उत्तर बड़ा दिलचस्प था .आज गांधी और उनके विचार अपना कर हम पिछड़ जायेंगे .शायद उपभोक्ता वादी ,बाजार वादी संस्कृति में गांधी मूल्य,सिध्दांत जोशाश्वत हैं .उन्हें अपना कर हम सचमुच पिछड़ जाएँ .आज कीसंस्कृति झूठ कपट बईमानी व भ्रष्टाचार पर ही टिकी हुई है .रातों रात लोग अमीर बनना चाहते हैं .यही बाजार वाद की नई संस्कृति है ।दूसरी ओर यह भी सत्य है कि नैतिक मूल्य ही किसी व्यक्ति या राष्ट्र के प्राण होते हैं .वर्षों पहले जब अमेरिका भीषण मंदी के दौर से गुजर रहा था.भूख ,तकलीफ और पीडा से कराह रही अमेरिकी जनता को राष्ट्र के नाम संदेश में फ्रेंकलिन रूजवेल्ट ने कहा था -ईश्वरका शुक्र है कि हमारी मुश्किलें सिर्फ़ भौतिक और सांसारिक ही हैं । गांधी द्वारा संजोये नैतिक मूल्य कोई एक रात की उपज नहीं थे .उनके पूरे जीवन की तपस्या और साधना का परिणाम थे.इन्हीं मूल्यों को लेकर गांधी जी ने अपना सारा जीवन जीया .आज गांधी -विचार ज्यादा प्रासंगिक हैं .हिंसा ,आतंक ,बेईमानी व भ्रष्टाचार के इस दौर की तोड़ यदि आज कहीं है तो वह है सत्य ,प्रेम ,करुना ,दया और समन्वय के भाव में .यही नैतिक मूल्य हैं और यही धर्मंहै..इन्हीं मूल्यों ने बुध्द,ईसा और मोहम्मद को महामानव बनाया ।इन्हीं सिध्दातों के साथ गांधी ने ब्रिटिश सत्ता का मुकाबला किया .यही नैतिक मूल्य उनके अस्त्र थे.झूठ कपट बेईमानी का राज्य महात्मा ने अपने नैतिक मूल्यों से ही ध्वस्त किया था .इन्हीं नैतिक मूल्यों ने हमारी सभ्यता और संस्कृति को विदेशी आक्रान्ताओं से बचाया .हमारे राष्ट्र को सुरक्षित रखा ।यदि नैतिक मूल्य अपना कर हम थोडा पिछड़ भी जाएँ तो क्या हुआ .अपना अस्तित्व तो बनाए रख सकेंगे .ज्यादा पाने के लिए थोडा तो खोना ही पडेगा .लेकिन तब हम एक नया राष्ट्र बनायेंगे जो शांत,सुद्रढ़ और आदर्श वादी होगा ।आज मानवता बिखर रही है .जरूरत है उसे संभालने की .प्रेम,करुना,भाई चारा अपना कर हम उसे मजबूत आधार दे सकते हैं .निश्चित ही गांधी और उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं .आज की विषम परिस्थितियों में उन्हें संजोना उन्हें अपनाना ही राष्ट्र के लिए सुखद होगा.गांधी आज ही नहीं सदा प्रासंगिक रहेंगे .
हमरि भाव सरिता पहले,गुरु चरन स्परश करे।उनके भाव्, उनका आशिश्,ह्रदय मे धरे।फिर कल कल चल चल्,हमारे जिवन मे बहे।जिवन का सार हमसे आपसे,सदा कहति रहे।आओ हम मिल जुल कर् ,अपने सुख दुख बाटेसद विचार कि बोनि कर, खुशियो कि फसले काटे।अपने पुरखो के कर्म,धर्म् को जिवन मे अपने लाये।शस्य श्याम्ला अपनि धरति,इसको स्वर्ग बनाये ।यह् धरति मा बेटे इसके,आपस् मे हम भाई।फिर क्यो हम् पर जमि हुई,भेद् भाव कि काई।अपनि भाव् सरिता मे भाई,आओ करे स्नान्।त्यागे आज् द्वेश् भाव् हम्,प्रेम दया का कर् ले ध्यान्।भाव् सरिता मे स्वागत् है,करे अनुग्रह् मुझ्हे आप्।अपने भावो कि अन्जलि से,हर् ले जिवन् का सन्ताप्।आपके भावो कि भिख् मागता हु।जन कल्यान् कि सिख् चाहता हु।सादर प्रनाम।

मेरे देश का युवा

मेरे देश का युवा शंकर !
सनातन धर्म की ,
पुनर्स्थापना के लिए ,
दिग्विजय करता है ।
विभिन्न पंथ ,विभिन्न मतों में ,
समन्वय स्थापित कर ,
राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोता है ।
युवा संन्यासी विवेकानंद !
अपनी माटी का धर्म ,इसकी संस्कृति की ,
महानता का उदघोष ,
सुदूर पश्चिम में करता है ।
सिध्दार्थ !
दृढ और कठिन साधना से ,
सम्बोधि प्राप्त कर ,
बुध्द बनता है ।
आजाद ,भगत सिंह ,सुभाष जैसा युवा ,
अपनी भारत माता के लिए
अपने प्राण न्यौछावर करता है ।
युवा शक्ति !
तुम्हारी वीर गाथा से ,हमारा ,
ह्रदय श्रध्दा से भरता है ।
मेरे देश का युवा ,
दृढ ,शक्तिशाली ,मेधावान है ,
उसके ज्ञान ,कौशल का डंका ,
देश विदेश में ,
पिट रहा है ।
देखो !देश की कीर्ति का ,
ध्वज कैसा फहर रहा है ।
मत करो ,उस भोले मन को ,
दिग्भ्रमित ,
उसकी शक्ति ,उसके अदम्य साहस को ,
कुत्सित राजनीति में मत घसीटो ।
हिंसा ,घृणा ,आतंक की लाठी ,
उसको माध्यम बना ,
मत पीतो।
उसकी ऊर्जा ,उसकी सृजनशीलता ,
का मजाक मत उडाओ ।
बहुत हो चुका अब तक ,
अब तो हरकतों से बाज आओ ।
उड़ने दो उसे स्वतंत्र ,
अपने कल्पना लोक में ,
कुछ नया रचेगा ।
कुछ नया सृजन करेगा ।
अपनी उमंग में ,
संसार को देगा नया कुछ ।
फ़िर जन्मने दो ,
गांधी ,सुभाष को ,
इस धरा पर ,
मानवता का संदेश ,
फ़िर उदघोषित होगा ।
भ्रमित युवा का
मोह भंग होगा ।
राष्ट्र का नव निर्माण ,
उसका अगला कदम होगा ।
जिसमें आम जन ,
शांत ,खुशहाल ,सम्रध्द होगा .

Saturday, November 15, 2008

गीत हम फ़िर गुनगुनाएं .

समवेत स्वर में प्रेम के ,
गीत हम फ़िर गुनगुनाएं ।
द्वेष ,इर्ष्या ,क्रोध का तम्,
इस धरा से हम हटायें ।
प्रेम अपने को करो ,फ़िर ,
भर हथेली बाँट दो ।
बढ़ती हृदय की दूरियों को ,
निशचिंत होकर पाट दो ।
हर हृदय हो प्रेम मय,
ऐसी जुगत हम फ़िर बिठाएं ।
समवेत स्वर में .......
बढ़ चला है आज फ़िर ,
कंस और रावण का बल ।
आतंक और हिंसा के आगे ,
इंसानियत होती विकल।
राम ,कृष्ण बन कर स्वयं हम ,
प्रेम मंत्र की अलख जगाये ।
समवेत स्वर में.......
नानक ,कबीर ,गौतम ,गांधी की ,
भाई !यह धरती है ।
ममता ,करुना ,दया यहाँ ,
सदियों से पलती है ।
उनकी ही संतति हम सब ,
जन मानस को समझाएं ।
समवेत स्वर में ........
भेद भाव बिसरा कर ,
एक हमें होना होगा ।
विध्वंसक स्थिति के पहले ,
हमें सचेतन होना होगा ।
दिव्य अलौकिक प्रेम शक्ति ले ,
मानवता को आज बचाएँ ।
समवेत स्वर में प्रेम के ,
गीत हम फ़िर गुनगुनाएं ।