Monday, November 17, 2008

गाँधी की प्रासांगिकता

२ अक्टूबर को एक दैनिक पत्र के उपरोक्त शीर्षक में लोगों की प्रतिक्रिया दी गईथी .एक पाठक का उत्तर बड़ा दिलचस्प था .आज गांधी और उनके विचार अपना कर हम पिछड़ जायेंगे .शायद उपभोक्ता वादी ,बाजार वादी संस्कृति में गांधी मूल्य,सिध्दांत जोशाश्वत हैं .उन्हें अपना कर हम सचमुच पिछड़ जाएँ .आज कीसंस्कृति झूठ कपट बईमानी व भ्रष्टाचार पर ही टिकी हुई है .रातों रात लोग अमीर बनना चाहते हैं .यही बाजार वाद की नई संस्कृति है ।दूसरी ओर यह भी सत्य है कि नैतिक मूल्य ही किसी व्यक्ति या राष्ट्र के प्राण होते हैं .वर्षों पहले जब अमेरिका भीषण मंदी के दौर से गुजर रहा था.भूख ,तकलीफ और पीडा से कराह रही अमेरिकी जनता को राष्ट्र के नाम संदेश में फ्रेंकलिन रूजवेल्ट ने कहा था -ईश्वरका शुक्र है कि हमारी मुश्किलें सिर्फ़ भौतिक और सांसारिक ही हैं । गांधी द्वारा संजोये नैतिक मूल्य कोई एक रात की उपज नहीं थे .उनके पूरे जीवन की तपस्या और साधना का परिणाम थे.इन्हीं मूल्यों को लेकर गांधी जी ने अपना सारा जीवन जीया .आज गांधी -विचार ज्यादा प्रासंगिक हैं .हिंसा ,आतंक ,बेईमानी व भ्रष्टाचार के इस दौर की तोड़ यदि आज कहीं है तो वह है सत्य ,प्रेम ,करुना ,दया और समन्वय के भाव में .यही नैतिक मूल्य हैं और यही धर्मंहै..इन्हीं मूल्यों ने बुध्द,ईसा और मोहम्मद को महामानव बनाया ।इन्हीं सिध्दातों के साथ गांधी ने ब्रिटिश सत्ता का मुकाबला किया .यही नैतिक मूल्य उनके अस्त्र थे.झूठ कपट बेईमानी का राज्य महात्मा ने अपने नैतिक मूल्यों से ही ध्वस्त किया था .इन्हीं नैतिक मूल्यों ने हमारी सभ्यता और संस्कृति को विदेशी आक्रान्ताओं से बचाया .हमारे राष्ट्र को सुरक्षित रखा ।यदि नैतिक मूल्य अपना कर हम थोडा पिछड़ भी जाएँ तो क्या हुआ .अपना अस्तित्व तो बनाए रख सकेंगे .ज्यादा पाने के लिए थोडा तो खोना ही पडेगा .लेकिन तब हम एक नया राष्ट्र बनायेंगे जो शांत,सुद्रढ़ और आदर्श वादी होगा ।आज मानवता बिखर रही है .जरूरत है उसे संभालने की .प्रेम,करुना,भाई चारा अपना कर हम उसे मजबूत आधार दे सकते हैं .निश्चित ही गांधी और उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं .आज की विषम परिस्थितियों में उन्हें संजोना उन्हें अपनाना ही राष्ट्र के लिए सुखद होगा.गांधी आज ही नहीं सदा प्रासंगिक रहेंगे .

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