Wednesday, December 31, 2008

नव वर्ष की शुभ कामनाएं

नव वर्ष की शुभ कामनाएं,
हार्दिक बधाई ।
आईये! करें ईश्वर से प्रार्थना ,कि,
अतीत की अशुभ घटनाओं की ,
अब न पड़े परछाईं ।
घर ,परिवार ,गाँव ,शहर ,
खुशहाल हो ।
चतुर्दिक शान्ति ,नई संभावनाओं से ,
देश मालामाल हो ।
प्रेम ,भाईचारा ,विश्वास ,
हमारे मन में जगे ।
एक नई आशा ले ,
हम बढ़ें आगे ।
निपटें जल, ऊर्जा के संकट से ,
बचाकर पानी ,बिजली ।
नबवर्ष में यह बात ,
मन में बिठाने की रही ।
एक नई ऊर्जा ,एक नई शक्ति का ,
हममें संचार हो ।
नव वर्ष का यही ,
हम सब को उपहार हो ।
साथ रहें ,साथ बढ़ें ,
देश का नव ,
इतिहास गढें.

Sunday, December 28, 2008

यह उदासी

कभी कभी मन अवसाद ग्रस्त हो जाता है .मन किसी काम में नहीं लगता.एक अजीब सी उदासी मनोमस्तिष्क में भर जाती है .अजीब से विचार आते रहते हैं.बहुत दिन बाद लिखना हो रहा है.ऐसा लगता है मानो जबरदस्ती लिख रहा हूँ .विचारों का तारतम्य भी नहीं मिल पा रहा है. आख़िर क्यों होता है ऐसा?
सोचता हूँ और सोचता रह जाता हूँ.

Saturday, December 20, 2008

अधिकार और कर्तव्य

अधिकार और कर्तव्य के बीच जब कभी द्वंद होता है तो ज्यादातर अधिकार कर्तव्य पर हावी रहता है .अधिकार लेना है और कर्तव्य देना.घर ,परिवार हो या कार्यालय हर जगह अधिकार की ही बात चलती है.घर में बेटा बहु पत्नी ,कार्यालय में कर्मचारी सब को अधिकार चाहिए .असहयोग ,धरना प्रदर्शन ,बंद जैसे कार्यक्रमों के साथ हम मैदान में कूद पड़ते हैं.इससे किसको परेशानी ,असुविधा हो रही है ,हमें इससे मतलब नहीं.हमारी मांग पूरी होना चाहिए.अपने लाभ से बढ़कर हमारे लिए और कुछ नहीं.क्या हम अधिकार के साथ साथ अपने कर्तव्य का ध्यान नहीं रख सकते ?देना क्या लेने से सम्बन्ध नहीं रख सकता .आख़िर हम हमेशा याचक ही क्यों बने रहें कभी दाताभी तो बन कर देखें.पीछे पीछे ही नहीं कभी आगे भी तो चलकर देखें.यही हमारे और राष्ट्र के लिए अच्छा होगा.अधिकार तो याद रखें पर कर्तव्य को भी भूलें नहीं.

Tuesday, December 16, 2008

भू मंडलीय शिक्षा

आज जब हम अपने देश में निरक्षरता की समस्या से जूझ रहे हैं ,तभी हमें अपने देश में ग्लोबल शिक्षा जैसा नाम सुनने को मिल रहा है.इसके लिए तैयारियां चल रही हैं .एक बहुत बड़े वर्ग को पीछे छोड़ हम भला कैसे वैश्विक उन्नत शिक्षा के लिए आगे बढ़ें। क्या समर्थ लोगों के आगे हम उन करोड़ों को नजर अंदाज कर दें जो आज भी नाम की जगह अपना अंगूठा लगा रहे हैं.सर्वप्रथम तो हमें अपने इन भाइयों को साक्षर बनाना होगा.उन्हें शिक्षा का महत्व समझाना होगा .यदि भारत का जन सामान्य ऐसे ही अशिक्षित रहा तो इससे हमारा विकास अधूरा ही रहेगा .आज जरूरत है इन्हें साथ लेकर आगे बढ़ने की.यह वह वर्ग है जिसका लोकतंत्र को आगे बढ़ने में अहम् योगदान है .उसकी उपेक्षा हमें महँगी पड़ेगी .अस्तु ,आइये !आज हम उन्हें साथ लें और लोकतंत्र के इन सक्षम लोगों को सामान्य शिक्षा से लेकर उन्नत या ग्लोबल शिक्षा में अपना भागीदार बनायें.

Sunday, December 14, 2008

निरक्षरता का अभिशाप

माँ! तुम उत्तर प्रदेश के ठेठ गाँव की थीं .पिताजी यद्यपि कानपुर जैसे शहर के थे.पढ़े लिखे भी थे.विवाह के बाद तुम पिताजी के साथ मध्य प्रदेश के एक गाँव में आकर बसेरा बनाया.तुम निरक्षर थीं। आज से लगभग सात आठ दशक पूर्व शिक्षा का प्रसार नाम को था।
अपने आसपास जब कुछ शिक्षित महिलाओं को तुलसी रामायण ,हनुमान चालीसा या अन्य सरल कथा साहित्य पढ़ते देखतीं तो तुम्हारे मन में भी हूक उठती पढने की .तब तुमने भी पढने का बीडा उठाया। अपना शिक्षक ढूँढा और अक्षर ज्ञान प्राप्त किया .अंततः हिन्दी साहित्य पढ़ना प्रारम्भ किया .समाचार पत्र ,किस्से कहानियाँ ,पत्र आदि पढ़ना तुम्हें आ गया ।
माँ!कितना समय बीत गया आज हम कंप्यूटर युग में जी रहे हैं.फ़िर ही आज हमारे देश में साक्षरता की कमी है .एक बहुत बड़ा वर्ग आज भी अपना हस्ताक्षर नहीं कर सकता .उसे सिर्फ़ अंगूठा लगा कर ही संतोष कर लेना पड़ता है .दुनिया आगे बहुत आगे बढ़ रही है .हमारे यहाँ शिक्षित लोगों की कमी खल रही है .शासकीय योजनायें बहुत हैं पर कहाँ तक इनका लाभ जन समाज उठा पाया है .क्यों नहीं इमानदारी से इस पर विचार होता।
क्यों नहीं निरक्षर जनों में तुम्हारे सामान पढ़ने की ललक जागती.

Tuesday, December 9, 2008

विधान सभा चुनाव

कुछ राज्यों में अभी चुनाव हुए और उनके परिणाम भी सामने आए.मतदान का बढ़ा प्रतिशत लोकतंत्र के लिए शुभ संदेश देता है.चुनाव परिणाम इस बात का संकेत है कि सकारात्मक कार्य ही विजय दिलाने में समर्थ हैं.जिस दल नेविकास के काम किए ,लोगों की समस्या सुलझाई उसे जीत मिली.अब समय कोरी लफ्फाजी का नहीं ,भाषण बाजी का नहीं.राजनैतिक ड्रामें से सरकार नहीं बनेंगी अब.म.प्र.और छ.ग.में पूर्ण बहुमत प्राप्त दल ने जनता के विश्वास को काम कर जीता है तभी वह सत्ता पर काबिज हो सकी .शीला दिक्षित का फ़िर से सत्ता पर आना उनके कार्य का ही परिणाम है. राजस्थान में शायद महारानी गफलत में रहीं और खेत रहीं।
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ में कांग्रेस के दो पूर्व मुख्य मंत्रियों ने कांग्रेस का इन प्रदेशों में सचमुच बंटाधार किया है. अपने बड़बोले पॅन के कारण इन लोगों ने कांग्रेस को बहुत नुकसान पहुँचाया है.फ़िर न जाने क्यों हाई कमान इन पर मेहरबान है.खैर यह दल का मामला है .उनकी वो जाने.वर्तमान चुनाव निष्पक्ष हुए ,चुनाव आयोग की सख्ती के कारण.दलों को विजय मिली उनके कार्य के कारण .यही सचमुच का प्रजातंत्र है .बलिहारी प्रजातंत्र की .

Saturday, December 6, 2008

आख़िर ऐसा क्यों

आजादी के पहले के और आजादी के बाद के काल खंड पर जब नज़र पड़ती है तब सहसा यह प्रश्न मन में उभरता है कि आख़िर इतना कुछ कैसे बदल गया.व्यक्ति ,समाज सब बदला बदला लगता है.विहंगम द्रष्टि डालें तो देखने में आता है कि आजादी के पहले व्यक्ति और समाज में शुचिता ,मर्यादा ,नैतिकता ,ईमानदारी जैसे गुण विद्यमान थे ,चाहे वह आम हो या खास.अपने मूल्यों के लिए ,अपने या राष्ट्र -स्वाभिमान के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर करने को तत्पर रहता था.उस समय कितने योग्य और निपुण व्यक्ति हमारे बीच थे.हर विधा के महान रत्न तब भारत की शोभा बढ़ा रहे थे.विवेकानंद से लेकर अरविन्द ,गांधी ,सुभाष ,भगतसिंह जैसे व्यक्तित्व से यह देश भरा हुआ था .जो राष्ट्र के लिए समर्पित थे .अपना सर्वस्व देश के लिए लुटा दिया ।
और आज ,हम देखते हैं कि बिना रीढ़ के लोग देश चला रहे हैं .ढूँढिये ऐसा एक भी व्यक्तित्व जो उनका सानी हो.शायद नहीं .निराशा होती है देख कर कि आज देश अनाथ सा हो गया है .दिशा विहीन .चारों ओर अफरा तफरी मची हुई है .बेईमानी ,लूट ,भ्रष्टाचार ,अनैतिकता हमारा हथियार बन चुकी है.देश की किसी को चिंता नहीं.ऊपर सत्तासीन लोग अपने स्वार्थ में मग्न हैं .भ्रष्ट राजनीति देश पर हावी है.देश का धन इनकी गांठ में बंधा है .लूट खसोट में लगे ये कर्णधार देश को क्या दिशा देंगे .स्थिति सचमुच चिंता जनक है .देश पर आतंक के साए घहरा रहे हैं.और हम मूक तमाशा देख रहे हैं . कर्तव्य बोध मानेखो गया है. चुनौती पर चुनौती पर हमारे शासक ध्रतराष्ट्र अंधे बने हुए हैं.जाने कब उनकी आँख का आपरेशन होगा.लेकिन तब तक बहुत समय निकल चुका होगा .क्या हमारे तथाकथित नेता गण जागेंगे ,उन्हें अपना कर्तव्यबोध होगा.याद रखिये तुम्हारी चूक के लिए इतिहास तुम्हे माफ़ नहीं करेगा ,इसका हिसाब तुम्हे देना पड़ेगा .याद करो अपने पुरखों को और उचित कदम उठाकर अपना कर्तव्य पूरा करो.यह देश तुम्हारी बपौती नहीं यह हम सबका है.तुम मात्र इसके चौकीदार हो मालिक नहीं .अपना कर्तव्य ईमानदारी से निबाहो.देश का कुछ भला हो.आप सुधरें नहीं तो शायद जनता ही तुम्हें सुधारेगी।
आशा है कि राजनेताओं को सद्बुध्दिआयेगी और देश का भला हो पायेगा .जयहिंद.

Thursday, December 4, 2008

विवाह की प्रथम वर्षगांठ पर शुभ कामनाएं

शुभ विवाह की पहली वर्षगांठ ,
हर्ष उल्लास से मनाएं।
दांपत्य जीवन में सदा ,
खुशियों की बहार लायें ।
सुख मय,मधुमय जीवन हो ,
स्वीकारें ,हमारी अनंत शुभ कामनाएं।
ईश्वर से है यही प्रार्थना ,
दुःख ,बाधा से तुम्हे बचाएं।
बहुत बहुत शुभ और मंगल कामनाएं।
शुभाकांक्षी - पापा,मम्मी और मिनी.

Wednesday, December 3, 2008

लोहा गरम है

अभी लोहा गरम है ,यही समय है हथौडा चलाने का । भारतीय जन मानस एवं अन्तर राष्ट्रीय समुदाय आतंकवादी हमले के विरुध्द भारत के साथ हो गया है यदि किसी देश के खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं आतंकवादियों से रिश्ते के तो यह समय है उस देश के विरुध्द कार्यवाही करने का .निश्चित ही यह संदेह पाकिस्तान पर होता है .इसके प्रमाण भी भारत के पास हैं .भारत सरकार इस पर ठोस कदम उठाये.यद्यपि इसके संकेत मिल रहे हैं.आज दृढ इच्छा शक्ति की जरूरत है .पाक से अपने संबंधों का वह विश्लेषण करे.कूटनीतिक ,सामरिक कदम उठाकर वह भारतीय जन समुदाय का विश्वास प्राप्त कर सकता है.पाक के विरुध्द युध्द की घोषणा भी समय के अनुकूल होगी ।
देर आए दुरुस्त आए के अनुसार कड़े क़दमों की सरकार से अपेक्षा है .मेरी बेटी लिखते समय कह रही है कियुध्द से कितने जन धन की हानिहोगी .यह भी सच है लेकिन अन्तिम विकल्प के रूप में शायद युध्द ही हल होगा ।
आतंकी ठिकानों को नेस्तनाबूत करना हमारा पहला लक्ष्य होगा ।
करोड़ों ,करोड़ों भारत वासी की नजरें टिकी हुई हैं भारत सरकार पर इस आशा के साथ कि भविष्य में वह आतंक के दारुण नरसंघार से हमें मुक्ति दिलायेगी.भारत सरकार की यह अग्नि परीक्षा है,उसे तपकर बाहर निकलना है या आग में ध्वस्त हो जानाहै .आशा है हमारी सरकार शीघ्र ही अपने लक्ष को प्राप्त कर लेगी और आतंक वादी दानव से हमारा छुटकारा हो सकेगा .जनता आपके हर कदम पर आपके साथ है .महानुभावो ,अब ऐसा कुछ कर दिखाओ कि जिससे वर्त्तमान ही नहीं बल्कि भविष्य भी खुश ,निडर हो सके .आतंक वाद मुक्त मेरा देश हो,यही ईश्वर से प्रार्थना है और मेरे देश का नेतृत्व अपने लक्ष्य पर सफल हो.

Tuesday, December 2, 2008

वह रात

आज से चौबीस वर्ष पहले की वह रात भोपाल के लिए अविस्मरणीय है.गैस त्राशदी की वह घटना याद करते ही मन काँप उठता है .दो और तीन दिसम्बर की रात जब लोग नींद या अर्ध्द निद्रा में थे भोपाल बदहवाशी में जाग रहा था .किसी को कुछ मालूम नहीं कि क्या हुआ पर वह यहाँ वहां भाग रहा था .बस उसे यही ख़बर मिली कि कहीं कुछ हुआ है.शायद कोई सिलेंडर फटा ,कोई दंगा हुआ या ऐसा ही कुछ और ।
अपने परिवार के साथ लोग भाग रहे थे यहाँ वहां .रात का समय भोपाल में मानों दिन निकला हुआ था .हम भी अपने परिवार के साथ घर छोड़ अनजान से भाग निकले.सड़क में मानो मेला लगा था .दूर मन्दिर में हमने आश्रय लिया .यहाँ हमें गैस रिसने की जानकारी मिली .विषैली गैस मिक यूनियन कार्बाइड से रिसी थी.इसने भोपाल में हजारों जान ली ,कई परिवारों को पीढियों का रोग दे दिया .आज भी भोपाल उस गैस की त्राशदी भोग रहा है ।
आधा अधूरा इलाज ,आधा अधूरा मुआवजा यह गैस पीडितों का सच है .यूनियन कार्बाइड कंपनी के खिलाफ कार्यवाही आज भी अधूरी है .तत्कालीन चेयरमैन आज भी क़ानून के कठघरे से बाहर है .यह हमारी न्याय व्यवस्था पर एक प्रश्न चिह्न है।
उस समय शासन प्रशाशन पंगु हो गया था.लोगों को कोई सूचना ,कोई जानकारी नहीं .इसके अभाव में भी त्राशदी और बढ़ी.यह त्राशदी किसी मानवीय आतंक से कम नहीं थी .इस गैस ने भोपाल को मानो श्मशान बना दिया था ।
गैस त्राशदी की बरषी पर शहीद हुए हजारों लोगों को श्रध्दांजली देते हुए यह प्रार्थना करें कि दुबारा इस तरह की घटना न हो .गैस पीडितों को न्याय मिले ऐसी अपेक्षा है.

Saturday, November 29, 2008

और मुंबई फ़िर बची .

एक बार फ़िर मुंबई पर दहशत गर्दों ने निशाना साधा था ,मुंबई की शान ताज होटल इस बार निशाने पर रहा .जांबाज वीरों ने आखिर आतंकियों के मंसूबों पर फ़िर पानी फेर दिया .उन शहीदों को हमारा शत शत नमन । यह आतंकी हमला मुंबई पर नहीं यह देश पर हमला था .देश के कर्णधारो अब तो चेतो ।
अपने सुरक्षा घेरे से बाहर निकलो .अपनी क्षुद्र और अवसरवादी राजनीति त्यागो .बहुत हो गया आतंवादियों
का पोषण .जाती धर्म से ऊपर उठो ,देशको बचाओ .नहीं तो तुम्हे क्षमा नहीं किया जाएगा .
नेस्तनाबूत करो आतंक वादियों को । हमारा गुप्तचर विभाग निकम्मा साबित हुआ ,लगाम सासों उस पर।
शहीदों को मुआवजा दे कर ही अपने कर्तव्य की इतिश्री मत समझो .सख्त कानून बनाओ.आतंकवादियों का कोई धर्म और मजहब नहीं होता .आतंक आतंक ही होता है .
आखिर कब तक निर्दोषों का खून बहेगा .जागो ,चेतो मेरे देश के जिम्मेदार नेताओ ।
अपना कर्तव्य निबाहो .भाषण बाजीसे कुछ नहीं होगा .

Wednesday, November 26, 2008

शुभ प्रयास

आज की तेज ,भागदौड़ की जिन्दगी ,
के बीच गायब हो रही ,
मुस्कान को
आओ, आज ढूँढें।
प्रातः ,उदय होते सूरज की ,
किरणों के साथ ।
दाना चुगती चिडियों की
चहचहाहट के साथ ।
मुदित होते ,
खिलते गुलाब के साथ ।
एक मजबूर ,असहाय, निरक्षर के लिए ,
बढाकर अपने हाथ ।
ईर्ष्या ,द्वेष ,घृणा त्याग ,
सद्भाव की कर बात ।
खुशियाँ दें , ख़ुद मुस्कुराएं।
औरों को भी ,
इस शुभ प्रयास में ,
अपने साथ लायें ।

Tuesday, November 25, 2008

" निराला "की वह

निराला की वह -
आज भी तोड़ती पत्थर ,
इलाहाबाद के पथ पर ही नहीं ,
सारे भारत भू पर।
फोर लेन,सिक्स लेन -
सड़कों का काम हो ,या ,
गगन चुम्बी भवनों का निर्माण हो ।
सब में तलाशती वह अपनी भूमिका ।
मनो ,विकास के नक्शे पर चलाती तूलिका ।
चलती वह पाँव पाँव ,
टूटी ,फूटी झोपड़ी उसकी छाँव ।
बस ,ढूनती वह काम -
अपने गुजारेके लिए ,
अलमस्त ,सुबह से शाम तक ,
पत्थरों पर हथौड़े चलाती,लक
ईंट,गारा सर रखती ,
चलती जाती बेफिक्र हो ,
जीवन की रफ़्तार के संग ।
प्रगति की राह सड़कों पर ।
विकास के नक्शे भवनों में बनते ,
दुनिया आज और बड़ी होती ।
लेकिन बेफिक्र वह -
उसकी चिंता तो आज भी
रोटी होती ।
हाँ ,वह नींव का वह पत्थर है ।
गाँव ,शहर जिस पर निर्भर है .
आख़िर है तो नींव ही ,
ढँक दी जायेगी ।
प्रगति और विकास का श्रेय ,
किसी और को दे जायेगी ।
किसी और को दे जायेगी .

Saturday, November 22, 2008

भावों की अंजलि

हमारी भाव सरिता पहले,गुरु चरन स्पर्श करे।
उनके भाव्, उनका आशीष,ह्रदय मे धरे।
फिर कल कल छल छल ,हमारे जीवन मे बहे।
जीवन का सार हमसे आपसे,सदा कहती रहे।
आओ हम मिल जुल कर् ,अपने सुख दुख बाटें
विचार कि बोनी कर,खुशियो की फसले काटे।
अपने पुरखो के कर्म,धर्म् को जीवन मे अपने लाये।
शस्य श्याम्ला अपनी धरती,इसको स्वर्ग बनाये ।
यह् धरती माँ बेटे इसके,आपसमे हम भाई।
फिर क्यो हम् पर जमी हुई,भेद् भाव की काई।
अपनी भाव् सरिता मे भाई,आओ करे स्नान्।
त्यागे आज् द्वेश् भाव् हम्,प्रेम दया का कर् ले ध्यान्।
भाव् सरिता मे स्वागत् है,करे अनुग्रह् मुझे आप्।
अपने भावो कि अन्जलि से,हर् ले जीवन का सन्ताप्।
आपके भावो कि भीख मांगता हू।
जन कल्यान् की सीख़ चाहता हूँ


सादर प्रणाम

हमको जीवन जीना है

जीवन है तो सुख है ,दुःख है ,
आते हैं बारी बारी ।
हंस कर जी लें ,रोकर जीलें,
जीवन है तो जीना है ।
आपद और निरापद के क्षण ,
आयेंगे और जायेंगे ,
स्वीकार करें या ठुकरा दें,
फ़िर भी जीवन जीना है ।
गरल घुले यदि जीवन में तो ,
बारी आयेगी अमृत की ,
मेल भले हम बिठा न पायें ,
तो भी जीवन जीना है ।
मर कर जी लें
जी कर मर लें
यह ऊहां पोह भले हो मन में ,
संघर्ष करें या करें पलायन
जीवन हमको जीना है ।
डर कर झेलें विसंगतियों को ,
या साहस से करें सामना ,
माना जीवन अबूझ पहेली ,
फ़िर भी जीवन तो जीना है ।
चाहे बोझ इसे माने हम ,
या कपास सा हल्का ,
अपनी सलीब तो आख़िर में ,
हमें स्वयं उठाना है ।
सिक्के जैसे जीवन के भी ,
धुप छाँव दो पहलू हैं ,
हँसना रोना ,सुख और दुःख ,
जीवन में जड़े नगीना हैं ।
जाने ,समझें और कदम रखें ,
भाई !हंस हंस कर जीना है ।
हमको जीवन जीना है ।
सार्थक जीवन जीना है .



Tuesday, November 18, 2008

हिन्दी हमारी मातृ भाषा

हम करोड़ों जन की मातृ भाषा हिन्दी है .विपुल साहित्य हिन्दी का है .अपने साहित्य से प्रेम करें .उसे सम्मान दें.उसे अपने भावों ,विचारों से सम्रध्द करें .हम सब भारत वासियों का कर्तव्य बनताहै किहिन्दी जो हमारी राष्ट्र भाषा भी है का मान करें .यह हमारी माँ है .आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने कहा है कि अपनी माँ को निस्सहाय और निरुपाय अवस्था में छोड़कर जो दूसरे की माँ की सेवा करता है ,उसके समान कृतघ्नी और कोई नहीं ।
आज हिन्दी के प्रति हमारी उदासीनता हिन्दी के भविष्य पर प्रश्न चिह्न लगा रही है .खुशी है कि इंटर नेट के माध्यम से हिन्दी ब्लोग्स की सहायता द्वारा हिदी का विशाल वर्ग तैयार हो रहा है .हम सब मिल कर अपनी माँ हिन्दी की सेवा कर एक और मातृ ऋण से उरण हो सकेंगे .
हमारे अहिन्दी भाषी भी इस पुनीत कार्य में भागीदार बनें ऐसी अपेक्षा है .हिन्दी हम सब की है .सारे देश की है .राष्ट्र मंच से राष्ट्र का आह्वान ,राष्ट्र के नाम संदेश राष्ट्र भाषा हिन्दी में ही होता है .फ़िर भी यह कटु सत्य है कि आज हिन्दी भाषियों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार होता है .महाराष्ट्र इसका एक उदाहरण है .पढा लिखा वर्ग ,हिन्दी फिल्मों के नायक नायिका ,हमारे तथाकथित राज नेता हिन्दी की उपेक्षा करने में चूकते नहीं .जिनकी जीविका हिन्दी में चलती है ,जो जनता से वोट हिन्दी में मांगते हैं उनका व्यवहार हिन्दी के प्रति उचित नहीं है ।
आइये !अपनी भाषा हिन्दी को हम सब वह मुकाम दें जिसकी वह अधिकारिणी है .बिना किसी पूर्वाग्रह के ,बिना द्वेष के हम अपने भावों ,विचारों के बल पर हिन्दी को उसका अधिकार दें .घरों में नाम पटल ,कार्यालय में हिन्दी का प्रयोग ,अपने हस्ताक्षर ,बोल चाल में इसका प्रयोग हिन्दी विस्तार का पहला कदम होगा .आइये शुरूवाद करें .आपस में ज्यादा से ज्यादा जुडें.शुभस्य शीघ्रम .

Monday, November 17, 2008

गाँधी की प्रासांगिकता

२ अक्टूबर को एक दैनिक पत्र के उपरोक्त शीर्षक में लोगों की प्रतिक्रिया दी गईथी .एक पाठक का उत्तर बड़ा दिलचस्प था .आज गांधी और उनके विचार अपना कर हम पिछड़ जायेंगे .शायद उपभोक्ता वादी ,बाजार वादी संस्कृति में गांधी मूल्य,सिध्दांत जोशाश्वत हैं .उन्हें अपना कर हम सचमुच पिछड़ जाएँ .आज कीसंस्कृति झूठ कपट बईमानी व भ्रष्टाचार पर ही टिकी हुई है .रातों रात लोग अमीर बनना चाहते हैं .यही बाजार वाद की नई संस्कृति है ।दूसरी ओर यह भी सत्य है कि नैतिक मूल्य ही किसी व्यक्ति या राष्ट्र के प्राण होते हैं .वर्षों पहले जब अमेरिका भीषण मंदी के दौर से गुजर रहा था.भूख ,तकलीफ और पीडा से कराह रही अमेरिकी जनता को राष्ट्र के नाम संदेश में फ्रेंकलिन रूजवेल्ट ने कहा था -ईश्वरका शुक्र है कि हमारी मुश्किलें सिर्फ़ भौतिक और सांसारिक ही हैं । गांधी द्वारा संजोये नैतिक मूल्य कोई एक रात की उपज नहीं थे .उनके पूरे जीवन की तपस्या और साधना का परिणाम थे.इन्हीं मूल्यों को लेकर गांधी जी ने अपना सारा जीवन जीया .आज गांधी -विचार ज्यादा प्रासंगिक हैं .हिंसा ,आतंक ,बेईमानी व भ्रष्टाचार के इस दौर की तोड़ यदि आज कहीं है तो वह है सत्य ,प्रेम ,करुना ,दया और समन्वय के भाव में .यही नैतिक मूल्य हैं और यही धर्मंहै..इन्हीं मूल्यों ने बुध्द,ईसा और मोहम्मद को महामानव बनाया ।इन्हीं सिध्दातों के साथ गांधी ने ब्रिटिश सत्ता का मुकाबला किया .यही नैतिक मूल्य उनके अस्त्र थे.झूठ कपट बेईमानी का राज्य महात्मा ने अपने नैतिक मूल्यों से ही ध्वस्त किया था .इन्हीं नैतिक मूल्यों ने हमारी सभ्यता और संस्कृति को विदेशी आक्रान्ताओं से बचाया .हमारे राष्ट्र को सुरक्षित रखा ।यदि नैतिक मूल्य अपना कर हम थोडा पिछड़ भी जाएँ तो क्या हुआ .अपना अस्तित्व तो बनाए रख सकेंगे .ज्यादा पाने के लिए थोडा तो खोना ही पडेगा .लेकिन तब हम एक नया राष्ट्र बनायेंगे जो शांत,सुद्रढ़ और आदर्श वादी होगा ।आज मानवता बिखर रही है .जरूरत है उसे संभालने की .प्रेम,करुना,भाई चारा अपना कर हम उसे मजबूत आधार दे सकते हैं .निश्चित ही गांधी और उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं .आज की विषम परिस्थितियों में उन्हें संजोना उन्हें अपनाना ही राष्ट्र के लिए सुखद होगा.गांधी आज ही नहीं सदा प्रासंगिक रहेंगे .
हमरि भाव सरिता पहले,गुरु चरन स्परश करे।उनके भाव्, उनका आशिश्,ह्रदय मे धरे।फिर कल कल चल चल्,हमारे जिवन मे बहे।जिवन का सार हमसे आपसे,सदा कहति रहे।आओ हम मिल जुल कर् ,अपने सुख दुख बाटेसद विचार कि बोनि कर, खुशियो कि फसले काटे।अपने पुरखो के कर्म,धर्म् को जिवन मे अपने लाये।शस्य श्याम्ला अपनि धरति,इसको स्वर्ग बनाये ।यह् धरति मा बेटे इसके,आपस् मे हम भाई।फिर क्यो हम् पर जमि हुई,भेद् भाव कि काई।अपनि भाव् सरिता मे भाई,आओ करे स्नान्।त्यागे आज् द्वेश् भाव् हम्,प्रेम दया का कर् ले ध्यान्।भाव् सरिता मे स्वागत् है,करे अनुग्रह् मुझ्हे आप्।अपने भावो कि अन्जलि से,हर् ले जिवन् का सन्ताप्।आपके भावो कि भिख् मागता हु।जन कल्यान् कि सिख् चाहता हु।सादर प्रनाम।

मेरे देश का युवा

मेरे देश का युवा शंकर !
सनातन धर्म की ,
पुनर्स्थापना के लिए ,
दिग्विजय करता है ।
विभिन्न पंथ ,विभिन्न मतों में ,
समन्वय स्थापित कर ,
राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोता है ।
युवा संन्यासी विवेकानंद !
अपनी माटी का धर्म ,इसकी संस्कृति की ,
महानता का उदघोष ,
सुदूर पश्चिम में करता है ।
सिध्दार्थ !
दृढ और कठिन साधना से ,
सम्बोधि प्राप्त कर ,
बुध्द बनता है ।
आजाद ,भगत सिंह ,सुभाष जैसा युवा ,
अपनी भारत माता के लिए
अपने प्राण न्यौछावर करता है ।
युवा शक्ति !
तुम्हारी वीर गाथा से ,हमारा ,
ह्रदय श्रध्दा से भरता है ।
मेरे देश का युवा ,
दृढ ,शक्तिशाली ,मेधावान है ,
उसके ज्ञान ,कौशल का डंका ,
देश विदेश में ,
पिट रहा है ।
देखो !देश की कीर्ति का ,
ध्वज कैसा फहर रहा है ।
मत करो ,उस भोले मन को ,
दिग्भ्रमित ,
उसकी शक्ति ,उसके अदम्य साहस को ,
कुत्सित राजनीति में मत घसीटो ।
हिंसा ,घृणा ,आतंक की लाठी ,
उसको माध्यम बना ,
मत पीतो।
उसकी ऊर्जा ,उसकी सृजनशीलता ,
का मजाक मत उडाओ ।
बहुत हो चुका अब तक ,
अब तो हरकतों से बाज आओ ।
उड़ने दो उसे स्वतंत्र ,
अपने कल्पना लोक में ,
कुछ नया रचेगा ।
कुछ नया सृजन करेगा ।
अपनी उमंग में ,
संसार को देगा नया कुछ ।
फ़िर जन्मने दो ,
गांधी ,सुभाष को ,
इस धरा पर ,
मानवता का संदेश ,
फ़िर उदघोषित होगा ।
भ्रमित युवा का
मोह भंग होगा ।
राष्ट्र का नव निर्माण ,
उसका अगला कदम होगा ।
जिसमें आम जन ,
शांत ,खुशहाल ,सम्रध्द होगा .

Saturday, November 15, 2008

गीत हम फ़िर गुनगुनाएं .

समवेत स्वर में प्रेम के ,
गीत हम फ़िर गुनगुनाएं ।
द्वेष ,इर्ष्या ,क्रोध का तम्,
इस धरा से हम हटायें ।
प्रेम अपने को करो ,फ़िर ,
भर हथेली बाँट दो ।
बढ़ती हृदय की दूरियों को ,
निशचिंत होकर पाट दो ।
हर हृदय हो प्रेम मय,
ऐसी जुगत हम फ़िर बिठाएं ।
समवेत स्वर में .......
बढ़ चला है आज फ़िर ,
कंस और रावण का बल ।
आतंक और हिंसा के आगे ,
इंसानियत होती विकल।
राम ,कृष्ण बन कर स्वयं हम ,
प्रेम मंत्र की अलख जगाये ।
समवेत स्वर में.......
नानक ,कबीर ,गौतम ,गांधी की ,
भाई !यह धरती है ।
ममता ,करुना ,दया यहाँ ,
सदियों से पलती है ।
उनकी ही संतति हम सब ,
जन मानस को समझाएं ।
समवेत स्वर में ........
भेद भाव बिसरा कर ,
एक हमें होना होगा ।
विध्वंसक स्थिति के पहले ,
हमें सचेतन होना होगा ।
दिव्य अलौकिक प्रेम शक्ति ले ,
मानवता को आज बचाएँ ।
समवेत स्वर में प्रेम के ,
गीत हम फ़िर गुनगुनाएं ।