माँ! तुम उत्तर प्रदेश के ठेठ गाँव की थीं .पिताजी यद्यपि कानपुर जैसे शहर के थे.पढ़े लिखे भी थे.विवाह के बाद तुम पिताजी के साथ मध्य प्रदेश के एक गाँव में आकर बसेरा बनाया.तुम निरक्षर थीं। आज से लगभग सात आठ दशक पूर्व शिक्षा का प्रसार नाम को था।
अपने आसपास जब कुछ शिक्षित महिलाओं को तुलसी रामायण ,हनुमान चालीसा या अन्य सरल कथा साहित्य पढ़ते देखतीं तो तुम्हारे मन में भी हूक उठती पढने की .तब तुमने भी पढने का बीडा उठाया। अपना शिक्षक ढूँढा और अक्षर ज्ञान प्राप्त किया .अंततः हिन्दी साहित्य पढ़ना प्रारम्भ किया .समाचार पत्र ,किस्से कहानियाँ ,पत्र आदि पढ़ना तुम्हें आ गया ।
माँ!कितना समय बीत गया आज हम कंप्यूटर युग में जी रहे हैं.फ़िर ही आज हमारे देश में साक्षरता की कमी है .एक बहुत बड़ा वर्ग आज भी अपना हस्ताक्षर नहीं कर सकता .उसे सिर्फ़ अंगूठा लगा कर ही संतोष कर लेना पड़ता है .दुनिया आगे बहुत आगे बढ़ रही है .हमारे यहाँ शिक्षित लोगों की कमी खल रही है .शासकीय योजनायें बहुत हैं पर कहाँ तक इनका लाभ जन समाज उठा पाया है .क्यों नहीं इमानदारी से इस पर विचार होता।
क्यों नहीं निरक्षर जनों में तुम्हारे सामान पढ़ने की ललक जागती.
Sunday, December 14, 2008
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