Wednesday, April 21, 2010

धरती रहेगी ,हम रहेंगे ....

h२२ अप्रेल पृथ्वी दिवस पर -
धरती की कराह.
रही अनसुनी सी ,
किसे है परवाह ।
कटते पेड़ ,उजड़ते जंगल ,
टूटते ,ढहते पहाड़ ,यंत्रों से ,
मानो होता दंगल।
प्रदूषित होते ,समुद्र और नदियाँ ।
बढते कदम विकास के ,
मनाई जाती खुशियाँ ।
माटी,पानी ,हवा में ,
निरंतर घुलता जहर ।
सांस लेना हो रहा दूभर ।
गाँव हो या शहर ।
प्रकृति का चेहरा भी ,
आज है बदला ।
सूखा अकाल और न जाने ,
क्या उसका स्वरूप हो अगला ।
बहुत हो चुका,
बाजारवाद का खेल ।
बचाएं प्रकृति ,बचाएं धरती ,
अब तो करें इनसे मेल ।
धरती की पीड़ा को ,
अब तो समझें ।
उसे चुनौती देकर ,
अपने जीवन ,अपने भविष्य से ,
न उलझें ।
धरती की सुरक्षा ,
हमारा मूल मन्त्र बने ।
माँ है हमारी यह ,
यह भाव मन में सने ।
आइये इसे हरा भरा करें ।
विनाश से इसे बचाएं ।
पेड़ लगाकर ,प्रदूषण हटाकर ,
मानव अस्तित्व को ,
सुखद और खुश हाल बनायें ।
धरती रहेगी ,हम रहेंगे ,
सन्देश जन ,जन को बताएं .

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