किसी कवि ने लिखा है - गो धन गज धन ,बाजि धन ,और रतन धन खान ।
जब आवे संतोष धन ,सब धन धूरि समान ॥ आज जब लोगों के पास बहुत कुछ है ,वह संपन्न ,साधन युक्त है पर वह खुश और संतुष्ट नहीं दिखाई पड़ता .निरंतर दूना ,चौगना करने के फेर में अपनी सुख शांति खो रहा है .महत्वाकांक्षा तो होना चाहिए पर अपनी चादर को देख कर .आज बाजार वाद ने हमारी सोच ही बदल दी है .कर्ज लेकर घी पियो ,इस तरह की प्रवृत्ति बढ़ रही है ।
हमने अपने माता पिता को देखा है ,सदा संतुष्टि का भाव लिए .साधारण परिवार था हमारा .थोड़ी सी आय में उन्होंने सुचारू रूप से गृहस्थी चलाई .शायद उनके गुणों का प्रभाव हम पर हुआ .यथास्थिति हमने व्यवहार किया .जैसी आय वैसा खर्च ,जीवन में यही सिद्धांत बना कर रखा .हमारे पड़ोसियों के पास क्या है ,न सोच कर अपनी उपलब्धियों पर संतोष करते रहे ।
कभी अमिताभ बच्चन ने भी अपने पिता की कही पंक्तियाँ याद किया था - अपने मन की हो जाये तो ठीक ,न हो तो और अच्छा .कितनी संतुष्टि का भाव है .उनके पिता श्री हरिवंश राय बच्चन ने जीवन में बहुत संघर्ष किया था स्वयं अमिताभ की भी जीवन गाथा संघर्ष से भरी हुई है .अपने पिता से अमिताभ ने बहुत कुछ सीखा है ,और वे बखान भी करते रहते हैं ।
पुरानी कहावत है - संतोषी सदा सुखी ।
अपनी सामर्थ्य भर कमाया ,उसका आनंद से उपभोग किया .जरूरी चीजों के लिए थोडा उधार भी किया ,आज इससे उबरने की स्थिति है .अपनी उपलब्धि पर संतोष है ,खुशी है और गर्व भी .ईश्वर ने बहुत कुछ दिया शक्ति से ज्यादा और दिया संतोष का भाव .सचमुच यदि हमें संतोष का महत्त्व समझ आ जाये तो सारा धन धूल के समान हो जाये . गुरुजनों एवं माता ,पिता के आशीर्वाद से हमें बहुत कुछ मिला ,शक्ति से ज्यादा ,यह हमें संतोष देता है ।
सचमुच ,जब आवे संतोष धन सब धन धूरि समान सार्थक पंक्तियाँ हैं ,जीवन की मार्गदर्शक हैं .प्रेरणा स्त्रोत हैं .
Tuesday, April 20, 2010
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1 comment:
thanx for writing this article i really needed it for my school speach
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