वैशाखी पर्व शस्य श्यामला पंजाब की भूमि का मौज मस्ती वाला पर्व है .लहलहाती फसल देख पंजाबी किसान झूम उठता है ,पैर थिरकने लगते हैं ,भांगड़ा में वह मस्त हो जाता है .वीर बहादुर यह कौम सदियों से अपने साहस,शौर्य और बलिदान के लिए जानी जाती है .
मुग़ल और ब्रिटिश शासन के दौरान संघर्ष के इनके अनेक किस्से प्रचलित हैं .वैशाखी पर्व का यह दिन इसलिए भी याद किया जाता है कि आज के ही दिन १९१९ में ब्रिटिश शासन के एक प्रतिनिधि द्वारा जलियांवाला बाग में लोमहर्षक कांड रचा गया था .एक जलसे में शामिल सैकड़ों निहत्थे लोगों को क्रूर नराधम जनरल डायर ने इसी जगह पर भूनवा डाला था . विश्व इतिहास में शायद ही ऐसी नृशंस हत्या का उदाहरण मिले .ब्रिटिश शासन का न्याय तो देखिये .उसे सम्मानित किया गया था इस कार्यवाही के लिए .वह जिन्दा रहा बिना पश्चाताप के ,लगभग छह साल .आखिरी तक वह यह कहता रहा कि मुझे नहीं मालूम कि मैंने सही किया या गलत .आखिर कुदरत ने उसे सजा दी ,वह अपना आख़िरी समय लकवा ग्रस्त रहकर ही बिताया ।
कितने लोग आज उन शहीदों को याद करते हैं ,क्या उनकी कुर्बानी हम भूल गए ? वर्षों बाद उनकी स्मृति में स्मारक बनाया गया उस बाग में .इस दिन वहां अमर शहीदों को श्रध्दांजलि दी जाती है .कैसे आज हम उस स्वतंत्रता संग्राम को भूले जा रहे हैं जिससे हमें आजादी मिली ।
प्रसिध्द लेखिका और पत्रकार मनोरमा दीवान ने लिखा है कि देश की आजादी पर पंडित नेहरू द्वारा संसद भवन पर फहराया गया तिरंगा झंडा ऐसा गायब हुआ कि आज तक नहीं मिल पाया .आश्चर्य होता है उनके द्वारा यह जानकर कि आजाद भारत में सार्वजनिक तौर पर १९५६ तक ब्रिटिश शासन के अन्याय ,उनके अत्याचार ,उनके अमानुषिक कृत्यों पर वक्तव्य की मनाही थी ।
आज भी ब्रिटिश काल के प्रतीक चिन्हों को हम ढोएजा रहे हैं .हमारे शहीद हमसे भूले भुल्वाये जा रहे हैं .हमारा संविधान भी क्या वास्तव में स्वदेशी है ?सोचना पड़ रहा है ।
एक पीड़ा सी उठ रही है आज के दिन ,इसी लिए लिखने बैठ गया कि आप के साथ बाँट लूं इसे .शायद अपनी सोच का कोई साथी मिल जाये . उन शहीदों के प्रति विनम्र श्रध्दांजलि .
Tuesday, April 13, 2010
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