Wednesday, February 4, 2009

प्रकृति की पाठशाला

जैसे ही होती ही भोर .
नभ में पक्षियों का झुंड ,
अंगरेजी के वी आकार में ,
मानो विजयी मुद्रा में ,निकलता ,
लक्ष्य की ओर.
सहयोग ,श्रम और शान्ति का ,
कैसा अद्भुत उदाहरण ,देते
एक के बाद एक ,वे
अग्रिम स्थान लेते ।
शांत ,सम गति ,
अद्भुत इनकी मति
लक्ष्य को भेद ,सायं,
जब ये वापस होते ।
वही चाल , वही गति ,
बढ़ते चलते ,
बिना ले खोते ।
फ़िर ,सुबह शाम
यही सिलसिला चलता ।
लक्ष्य पाने का हौसला ,
इसी तरह पलता ।
प्रकृति के लीला रहस्य को
काश !हम समझते ।
इन जीव जंतुओं से ,
जीवन का पाठ पढ़ते ।
सहयोग ,श्रम और शान्ति
की दिशा में ,
एक पग और आगे ,
हम धरते ।

2 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बड़े लक्ष्य भी मिल जाते हैं, श्रम से और लगन से,
पक्षी यह सन्देशा दे जाते हैं, नील-गगन से।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

भ्राता श्री !
कृपया शब्द-पुष्टिकरण (Word Verification) हटा दीजिए, जिससे कि टिप्पणी करना आसान हो जाये।