Monday, March 8, 2010

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर भारतीय समाज में महिला की स्थिति क्या है ,एक कन्या के जन्म पर घर का वातावरण कैसा हो जाता है और एक मां जो पहले एक नारी है उसकी मनोदिशा अपनी कन्या के प्रति जन्म देने के लिए कैसी रहती है .ऐसे अनेक प्रश्न सामने आते हैं और अंत में सकारात्मक रुख अपनाकर वह समाज ,परिवार का रुख अपनी ओर करने का बीड़ा उठाते हुए आशावान हो जाती है ,यही है इस कविता का उद्देश्य ।
इसे पढ़ें और शुभ आशीर्वाद दें ,यही आप सब सुधी जन से अपेक्षा के साथ.............
हाँ , बेटी ! तुझे मैं जन्म दूंगी ।
जानती हूँ , तेरे जन्म पर ,
नहीं बजेंगी थालियाँ ।
गूंजेंगी नहीं घर में ,
ढोलक की थापियाँ ।
सास ,ससुर अन्य घर वालों के ,
चेहरे लटके होंगे।
मेरे पति याने तुम्हारे पिताभी
साथ ,साथ उनके,
कहीं भटके होंगे ।
मैं जानती हूँ ,
घर में छाई होगी उदासी ,
खुशियों के बदले ,मानो ,
मिल रही हो फांसी ।
फिर भी मैं ,
तुझे जन्म दूंगी ।
अपने अधूरे अरमान ,
तुझसे पूरा करूंगी ।
किरण बेदी , कल्पना चावला का ,
स्वप्न मैंने भी देखा ।
परिस्थिति वश ,स्वप्न पर ,
खिंची एक आड़ी रेखा ।
हाँ , तब से अब तक ,
बहुत आत्म बल संजोया है ।
धीरज का संबल ले इच्छाओं को ,
आज तुम में पिरोया है ।
जन्म लेगी तू अवश्य ,
इस धरती पर आयेगी ।
घर की स्थितियां भी बदलेंगी ।
तेरे जन्म तक मना लूंगी सबको ,
आशा है घर परिवार का ,
स्नेह प्रेम तू जरूर पायेगी ।
तेरा जन्म , मेरा निश्चय है ,
रंग उसमें अवश्य भरूँगी ।
हाँ ,बेटी ! कुछ भी हो ,
तेरी भ्रूण हत्या मैं ,
नहीं करूंगी ,नहीं करूंगी ।
हाँ,तुझे जन्म दूंगी ,
मैं तुझे जन्म दूंगी .




2 comments:

Unknown said...
This comment has been removed by the author.
Unknown said...

नमस्‍कार उदय जी
आपने नारी को इतने कम शब्‍दों में पिरो दिया है फिर भी मेरे अनुसार वह ठीक ही लगता है, खैर नारी की महत्‍ता को बता पाना कठिन काम है, वैसे भी यह या इस जैसा हर दिवस महज एक त्‍योहार बन कर रह गया है