अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर भारतीय समाज में महिला की स्थिति क्या है ,एक कन्या के जन्म पर घर का वातावरण कैसा हो जाता है और एक मां जो पहले एक नारी है उसकी मनोदिशा अपनी कन्या के प्रति जन्म देने के लिए कैसी रहती है .ऐसे अनेक प्रश्न सामने आते हैं और अंत में सकारात्मक रुख अपनाकर वह समाज ,परिवार का रुख अपनी ओर करने का बीड़ा उठाते हुए आशावान हो जाती है ,यही है इस कविता का उद्देश्य ।
इसे पढ़ें और शुभ आशीर्वाद दें ,यही आप सब सुधी जन से अपेक्षा के साथ.............
हाँ , बेटी ! तुझे मैं जन्म दूंगी ।
जानती हूँ , तेरे जन्म पर ,
नहीं बजेंगी थालियाँ ।
गूंजेंगी नहीं घर में ,
ढोलक की थापियाँ ।
सास ,ससुर अन्य घर वालों के ,
चेहरे लटके होंगे।
मेरे पति याने तुम्हारे पिताभी
साथ ,साथ उनके,
कहीं भटके होंगे ।
मैं जानती हूँ ,
घर में छाई होगी उदासी ,
खुशियों के बदले ,मानो ,
मिल रही हो फांसी ।
फिर भी मैं ,
तुझे जन्म दूंगी ।
अपने अधूरे अरमान ,
तुझसे पूरा करूंगी ।
किरण बेदी , कल्पना चावला का ,
स्वप्न मैंने भी देखा ।
परिस्थिति वश ,स्वप्न पर ,
खिंची एक आड़ी रेखा ।
हाँ , तब से अब तक ,
बहुत आत्म बल संजोया है ।
धीरज का संबल ले इच्छाओं को ,
आज तुम में पिरोया है ।
जन्म लेगी तू अवश्य ,
इस धरती पर आयेगी ।
घर की स्थितियां भी बदलेंगी ।
तेरे जन्म तक मना लूंगी सबको ,
आशा है घर परिवार का ,
स्नेह प्रेम तू जरूर पायेगी ।
तेरा जन्म , मेरा निश्चय है ,
रंग उसमें अवश्य भरूँगी ।
हाँ ,बेटी ! कुछ भी हो ,
तेरी भ्रूण हत्या मैं ,
नहीं करूंगी ,नहीं करूंगी ।
हाँ,तुझे जन्म दूंगी ,
मैं तुझे जन्म दूंगी .
Monday, March 8, 2010
Sunday, February 28, 2010
बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक होली
त्यौहारों के देश भारत में सदियों से होली पर्व हर्ष और उल्लास से मनाया जाता है .रंग गुलाल से लेकर कीचड पानी सभी कुछ होली में काम आता है .पुरातन कथा में होलिका का दाह और प्रह्लाद की रक्षा प्रतीक है बुराई पर अच्छाई की विजय का .बच्चे बूढ़े ,नारियां सभी भेद भाव भूल मगन हो जाते हैं होली के रंग में .गरीब अमीर सभी गले मिलते हैं ,तिलक लगाते हैं ,सब भेद भाव बिसरा कर एक हो जाते हैं होली के दिन .सारा देश मानो एक हो जाता है ।
देश की एकता के लिए ,मजबूती के लिए ,होली पर्व एक सौगात है हम भारतीयों के लिए .एक दूसरे के लिए जियें ,प्रेम और भाईचारे का सम्बन्ध एक दूजे संग हो ,यही सन्देश तो हमें देता है होली का पर्व .काश ,हम इस पर्व की महत्ता को भली भांति समझें ,सार्थक हो यह पर्व ।
यही इच्छा आकांक्षा है इस पर्व के साथ .
देश की एकता के लिए ,मजबूती के लिए ,होली पर्व एक सौगात है हम भारतीयों के लिए .एक दूसरे के लिए जियें ,प्रेम और भाईचारे का सम्बन्ध एक दूजे संग हो ,यही सन्देश तो हमें देता है होली का पर्व .काश ,हम इस पर्व की महत्ता को भली भांति समझें ,सार्थक हो यह पर्व ।
यही इच्छा आकांक्षा है इस पर्व के साथ .
Friday, May 1, 2009
कितना बदल गया इन्सान
पंडित प्रदीप की रचना का यह एक पद है .इसमे ईश्वर को संबोधित करते हुए संसार की वर्तमान स्थिति का खाका खींचा गया है .सचमुच आज विश्व किस दिशा में जा रहा है ? आज से पचास वर्षपूर्व के भारत की स्थिति और आज कितना परिवर्तन आ गया है .सामाजिक ,राजनैतिक ,सांस्कृतिक हर पहलू में भारत बदला बदला लगता है .आदर्श ,नैतिकता ,शिष्टाचार मानो कल की बात हो गए हों .इनकी बात करने वाला मानों पिछड़ा कहलाये ।
नेहरू के समय की राजनीती और आज की राजनीती में कितना अन्तर .सिध्दांत की जगह आज अवसरवादिता ने ले लिया है .कल तक के दुश्मन आज एक हो रहे हैं .भ्रष्टाचार आज शिष्टाचार हो गया है .असामाजिक तत्व राजनीती में हावी हैं .धनबली ,बाहुबली आज राजनीती में सिरमौर हैं .अपराधी आज दिशा दे रहे हैं भारतीय राजनीती को ।
चुनाव पूर्व एक दूसरे को गलियां देते हैं ,फ़िर कुर्सी के लिए गलबहियां डाले घूमते हैं .वर्तमान में लोक सभा चुनाव का दौर चल रहा है .अब तक जो नहीं हुआ वह बी देखने को मिल रहा है .सभाओं मेंजुते चप्पल फिंकना आज आम बात हो गई है .एक दूसरे को जलील करना ,अपमानित करना राजनीती का अंग हो गया है ।
चुनाव परिणाम आयेंगे ,फ़िर जोड़ तोड़ की राजनीती शुरू होगी ,दुश्मन एक होंगे ,कुर्सी पकडेंगे .और फ़िर चलेगा राजनीती का पहिया ,भले ही डगमग हो .हम दुहाई देते रहेंगे भारतीय लोकतंत्र की .आदर्शों को अपना जीवन मानने वाला भारत आज कहाँ है ?कितना बदल गया है आज हमारा देश .कितने बदल गए हैं हम .क्या ऐसा ही चलता रहेगा .आशा है की बदलाव आयेगा और सकारात्मक बदलाव .हमारे देश की जनता ,आम जनता बदलेगी इस देश का बिगडा राजनैतिक इतिहास .उम्मीद है विश्वास है हमें .
नेहरू के समय की राजनीती और आज की राजनीती में कितना अन्तर .सिध्दांत की जगह आज अवसरवादिता ने ले लिया है .कल तक के दुश्मन आज एक हो रहे हैं .भ्रष्टाचार आज शिष्टाचार हो गया है .असामाजिक तत्व राजनीती में हावी हैं .धनबली ,बाहुबली आज राजनीती में सिरमौर हैं .अपराधी आज दिशा दे रहे हैं भारतीय राजनीती को ।
चुनाव पूर्व एक दूसरे को गलियां देते हैं ,फ़िर कुर्सी के लिए गलबहियां डाले घूमते हैं .वर्तमान में लोक सभा चुनाव का दौर चल रहा है .अब तक जो नहीं हुआ वह बी देखने को मिल रहा है .सभाओं मेंजुते चप्पल फिंकना आज आम बात हो गई है .एक दूसरे को जलील करना ,अपमानित करना राजनीती का अंग हो गया है ।
चुनाव परिणाम आयेंगे ,फ़िर जोड़ तोड़ की राजनीती शुरू होगी ,दुश्मन एक होंगे ,कुर्सी पकडेंगे .और फ़िर चलेगा राजनीती का पहिया ,भले ही डगमग हो .हम दुहाई देते रहेंगे भारतीय लोकतंत्र की .आदर्शों को अपना जीवन मानने वाला भारत आज कहाँ है ?कितना बदल गया है आज हमारा देश .कितने बदल गए हैं हम .क्या ऐसा ही चलता रहेगा .आशा है की बदलाव आयेगा और सकारात्मक बदलाव .हमारे देश की जनता ,आम जनता बदलेगी इस देश का बिगडा राजनैतिक इतिहास .उम्मीद है विश्वास है हमें .
Sunday, April 5, 2009
नारी शक्ति उपासना पर्व नवरात्री
नवरात्रि पर्व, माँ दुर्गा के नौ रूपों की उपासना का पर्व .नारी शक्ति की उपासना की जाती है इन नौ दिन में .भक्त जन माँ के रूप में देवी की उपासना करते हैं .व्रत रखते है ,उपवास रखते हैं आराधना करते हैं और अपने कुशल क्षेम की याचना करते हैं .देवताओं ने ही अपनी सहायता के लिए माँ का आव्हान किया था और देवी माँ ने उनकी सहायता कर असुरों को पराजित कर उन्हें अभय दान दिया था .कहते हैं भगवान राम ने भी रावन वध के लिए देवी आराधना की थी और वे रावन का वध कर सके ।
इस पर्व के सहारे हम नारी शक्ति की ही तो साधना करते हैं .शक्ति के बिना शिव शव के समान हैं .यह पर्व संदेश देता है नारी के सम्मान का ,उसकी छुपी शक्ति की आराधना का ।
क्या हम सचमुच नारी का सम्मान कर पाए हैं ? समाज ने उसे उसके उचित अधिकार दिए हैं ?नारी पर होते अत्याचार ,कन्या भ्रूण हत्याएं ,दहेज़ के लिए उनकी बलि सचमुच नारी शक्ति का अपमान ही है ।
हमारी देवी आराधना तभी सफल होगी जब हम नारी समाज को उसका उचित अधिकार देंगे .उसको सम्मान की द्रष्टि से देखेंगे .नव रात्रि पर्व को हम समर्पित करें नारी के लिए ,उसके सम्मान के लिए ,हमारा यही संकल्प सही देवी उपासना होगी .तभी माँ भगवती हम सब पर प्रसन्न होगीं .
इस पर्व के सहारे हम नारी शक्ति की ही तो साधना करते हैं .शक्ति के बिना शिव शव के समान हैं .यह पर्व संदेश देता है नारी के सम्मान का ,उसकी छुपी शक्ति की आराधना का ।
क्या हम सचमुच नारी का सम्मान कर पाए हैं ? समाज ने उसे उसके उचित अधिकार दिए हैं ?नारी पर होते अत्याचार ,कन्या भ्रूण हत्याएं ,दहेज़ के लिए उनकी बलि सचमुच नारी शक्ति का अपमान ही है ।
हमारी देवी आराधना तभी सफल होगी जब हम नारी समाज को उसका उचित अधिकार देंगे .उसको सम्मान की द्रष्टि से देखेंगे .नव रात्रि पर्व को हम समर्पित करें नारी के लिए ,उसके सम्मान के लिए ,हमारा यही संकल्प सही देवी उपासना होगी .तभी माँ भगवती हम सब पर प्रसन्न होगीं .
Friday, March 20, 2009
फूटेंगे नव अंकुर
ग्रीष्म काल आता,
धरती ताप से झुलसती ,
पेड़ पौधे तीखे घाम में ,
गरम ,गरम थपेडों से ,
मुरझाये ,झुलसाये लगते .
पात विहीन डालियों संग ,
मानो अपनी व्यथा कहते .
पशु ,पक्षी बेबस हो ,
ताप की पीड़ा सहते ।
आकुल व्याकुल जन ,
छांव ,पानी को तरसते ।
हाँ ,इस भीषण गरमी में ,
किसी को सुकून है ।
शिरीष का खड़ा पेड़ ,
केशरिया फूलों से लदा,
पर वह शांत और ,
मौन है ।
निरखता ,धरती की विपदा ,
पेड़ ,पौधों को मिलती सजा ,
हाँ ,
वह धीरज बंधाता है ।
एक आस जगाता है ।
टलेगा संकट
स्थिर थोड़े ही रहता है ।
देखो मुझे ,अपना दुःख कम करो .
भविष्य के सुखद सपनों को ,
अपनी आंखों में भरो ।
यह तपन ,यह तड़पन ,
जरूर कम होगी ।
इस भीषण गरमी से ही ,
आगे ,धरती की प्यास बुझेगी ।
बिना तपे सोना ,
कहीं खरा होता है ,
छाएंगे मेघ ,वर्षा होगी ।
तुम्हारी पीड़ा ,
अपने आँचल में भर लेगी ।
सारा दुःख ,सारा संकट ,
टल जाएगा ,
धरती हरी भरी हो जायेगी ।
फूटेंगे नव अंकुर ,
तपन की पीडा ,
वर्षा की बूंदों में ,
घुल जायेगी .
धरती ताप से झुलसती ,
पेड़ पौधे तीखे घाम में ,
गरम ,गरम थपेडों से ,
मुरझाये ,झुलसाये लगते .
पात विहीन डालियों संग ,
मानो अपनी व्यथा कहते .
पशु ,पक्षी बेबस हो ,
ताप की पीड़ा सहते ।
आकुल व्याकुल जन ,
छांव ,पानी को तरसते ।
हाँ ,इस भीषण गरमी में ,
किसी को सुकून है ।
शिरीष का खड़ा पेड़ ,
केशरिया फूलों से लदा,
पर वह शांत और ,
मौन है ।
निरखता ,धरती की विपदा ,
पेड़ ,पौधों को मिलती सजा ,
हाँ ,
वह धीरज बंधाता है ।
एक आस जगाता है ।
टलेगा संकट
स्थिर थोड़े ही रहता है ।
देखो मुझे ,अपना दुःख कम करो .
भविष्य के सुखद सपनों को ,
अपनी आंखों में भरो ।
यह तपन ,यह तड़पन ,
जरूर कम होगी ।
इस भीषण गरमी से ही ,
आगे ,धरती की प्यास बुझेगी ।
बिना तपे सोना ,
कहीं खरा होता है ,
छाएंगे मेघ ,वर्षा होगी ।
तुम्हारी पीड़ा ,
अपने आँचल में भर लेगी ।
सारा दुःख ,सारा संकट ,
टल जाएगा ,
धरती हरी भरी हो जायेगी ।
फूटेंगे नव अंकुर ,
तपन की पीडा ,
वर्षा की बूंदों में ,
घुल जायेगी .
Wednesday, March 18, 2009
दोषी कौन ?
आज की तेज भागती ,दौड़ती जिन्दगी में मौत कितनी सस्ती हो गई है, इसका उदाहरण हमें आए दिन होती दुर्घटनाएं देख कर मालूम होता है .गली ,चौराहों ,सडकों पर तेज भागते लोग ,तेज भागती गाडियां मौत को दावत देतीं हैं .सड़क पर पैदल चलता आदमी भी आज सुरक्षित नहीं है .यातायात के बहुत सारे नियम ,कानून बने हुए हैं ,पर उन्हें भी अंगूठा दिखाते लोग भागते जा रहे हैं .धनी मां ,बाप अवयस्क बच्चों को गाड़ी दिला कर सड़कों पर मनो मौत की दौड़ करवा रहे हैं .सड़कों पर सर्कस करते बच्चे हर जगह देखे जा सकते हैं .लाइसेंस नहीं ,सर पर हेलमेट नहीं और कलाबाजी दिखाते ,बच्चे अनो मौत को दावत देते हों ।
हेलमेट का नियम है ,चार पहिया वाहनों के लिए बेल्ट का प्रावधान है ,गाड़ियों की गति की सीमा भी है पर किसे परवाह है इसकी .मरते हैं हमीं , दुर्घटना ग्रस्त होते हैं हमी फ़िर भी लापरवाही ?
ताबड़तोड़ होती सड़क दुर्घटनाएं ,पर हम कोई सबक नहीं लेते .जागते नहीं ,अपने को नियंत्रित नहीं कर पाते . जब दुर्घटनाएं होती हैं ,तब कानूनों को गली दी जाती है ,थानों का घिराव किया जाता है ,अस्पताल तोड़ फोड़ का शिकार होते हैं .हमें अपनी गलती स्वीकार नहीं .बार बार मौत से खेलते हैं पर हममें को सुधार नहीं ।
सिलसिला मनो यूँ ही चलता रहेगा .हम नहीं सुधरेंगे ,हमने ठान रखा है .कानून कायदे शायद बनाये ही जाते हैं तोड़ने के लिए .फ़िर होने दीजिये मौत ,इतना हो हल्ला किसलिए .पुलिस दोषी क्यों ? कानून दोषी क्यों ?
दोषी तो हम हैं पर अपने दोष नजर अंदाज कर हमारी फितरत में नहीं ,दोषारोपण हमारी आदत है .मौत सस्ती जो हो गई है .हम नहीं तो हम किसे दोषी मानें ,दोषी आखिर कौन ?
हेलमेट का नियम है ,चार पहिया वाहनों के लिए बेल्ट का प्रावधान है ,गाड़ियों की गति की सीमा भी है पर किसे परवाह है इसकी .मरते हैं हमीं , दुर्घटना ग्रस्त होते हैं हमी फ़िर भी लापरवाही ?
ताबड़तोड़ होती सड़क दुर्घटनाएं ,पर हम कोई सबक नहीं लेते .जागते नहीं ,अपने को नियंत्रित नहीं कर पाते . जब दुर्घटनाएं होती हैं ,तब कानूनों को गली दी जाती है ,थानों का घिराव किया जाता है ,अस्पताल तोड़ फोड़ का शिकार होते हैं .हमें अपनी गलती स्वीकार नहीं .बार बार मौत से खेलते हैं पर हममें को सुधार नहीं ।
सिलसिला मनो यूँ ही चलता रहेगा .हम नहीं सुधरेंगे ,हमने ठान रखा है .कानून कायदे शायद बनाये ही जाते हैं तोड़ने के लिए .फ़िर होने दीजिये मौत ,इतना हो हल्ला किसलिए .पुलिस दोषी क्यों ? कानून दोषी क्यों ?
दोषी तो हम हैं पर अपने दोष नजर अंदाज कर हमारी फितरत में नहीं ,दोषारोपण हमारी आदत है .मौत सस्ती जो हो गई है .हम नहीं तो हम किसे दोषी मानें ,दोषी आखिर कौन ?
Sunday, March 1, 2009
शिरीष का पेड़
जब आती ग्रीष्म ऋतु,
धरती ताप से झुलसती ,
पेड़ पौधे तीखे घाम से ,
गरम गरम थपेडों से ,
मुरझाये लगते ।
पात विहीन डालियों संग ,
अपनी व्यथा कहते ।
पशु पक्षी बेबस हो ,
गरमी की मर सहते ।
आकुल व्याकुल जन ,
पानी ,छांव को तरसते ।
फ़िर भी भीषण गरमी में ,
किसी को शान्ति ,शुकून है ।
केशरिया फूलों से लदा ,
खड़ा शिरीष का पेड़ ,
पर वह भी मौन है ।
देखता है धरती की विपदा ,
पेड़ पौधों और मानवों की सजा ,
हाँ ,
वह धीरज बंधाता है ।
एक आस जगाता है ।
कहता ,टलेगा संकट ,
स्थिर ,थोड़े ही रहता है ।
देखो मुझे ,अपना गम दूर करो ।
भविष्य के सुखद सपनो को ,
अपनी आंखों में भरो ।
यह तपन ,यह तड़पन ,
जरूर कम होगी ।
आशा रखो ,
इस भीषण गरमी से ही ,
धरती की प्यास बुझेगी ।
छाएंगे मेघ ,वर्षा होगी ।
तुम्हारी पीड़ा ,वह ,
अपने आँचल में भर लेगी ।
सारा दुःख ,सारा संकट ,
टल जाएगा ।
धरती हरी भरी हो जायेगी ।
फूटेंगे नव अंकुर ,
तपन की पीड़ा ,
वर्षा की बूंदों में ,
घुल जायेगी .
धरती ताप से झुलसती ,
पेड़ पौधे तीखे घाम से ,
गरम गरम थपेडों से ,
मुरझाये लगते ।
पात विहीन डालियों संग ,
अपनी व्यथा कहते ।
पशु पक्षी बेबस हो ,
गरमी की मर सहते ।
आकुल व्याकुल जन ,
पानी ,छांव को तरसते ।
फ़िर भी भीषण गरमी में ,
किसी को शान्ति ,शुकून है ।
केशरिया फूलों से लदा ,
खड़ा शिरीष का पेड़ ,
पर वह भी मौन है ।
देखता है धरती की विपदा ,
पेड़ पौधों और मानवों की सजा ,
हाँ ,
वह धीरज बंधाता है ।
एक आस जगाता है ।
कहता ,टलेगा संकट ,
स्थिर ,थोड़े ही रहता है ।
देखो मुझे ,अपना गम दूर करो ।
भविष्य के सुखद सपनो को ,
अपनी आंखों में भरो ।
यह तपन ,यह तड़पन ,
जरूर कम होगी ।
आशा रखो ,
इस भीषण गरमी से ही ,
धरती की प्यास बुझेगी ।
छाएंगे मेघ ,वर्षा होगी ।
तुम्हारी पीड़ा ,वह ,
अपने आँचल में भर लेगी ।
सारा दुःख ,सारा संकट ,
टल जाएगा ।
धरती हरी भरी हो जायेगी ।
फूटेंगे नव अंकुर ,
तपन की पीड़ा ,
वर्षा की बूंदों में ,
घुल जायेगी .
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