Thursday, January 29, 2009

ये छिद्रान्वेषी

गीता में कहा है - अपने द्वारा अपना उध्दार करे ,अपने को अधोपतित न करे ,क्योंकि मनुष्य आप ही अपना मित्र है तथा आप ही अपना शत्रु है ।
पर हम दूसरों पर ज्यादा ध्यान देते हैं .छिद्रान्वेषण करते हैं दूसरों का .हम अपने को शायद ही कभी देखते होंगे .घर परिवार ,बाहर ,कार्यालय ये सभी स्थान गपयाने ,व्यर्थ की बात करने के अड्डे बन चुके हैं .पना समय हम यों बेकार गंवाते हैं .वह ऐसा है ,वैसा है .देश की हालत ख़राब है ,बड़ा भ्रष्टाचार फैला हुआ है ,लूट ,गुंडागर्दी फ़ैल रही है यही इनकी बातों के विषय होते हैं .हम क्या हैं ,हम कितने ईमानदार ,अपने काम के प्रति कितने जिम्मेदार हैं .देश की बिगड़ती स्थिति के लिए हम कितने जिम्मेदार हैं ,इसके लिए हम क्या कर सकते हैं इस पर हमें नहीं सोचना .गिलास कितना भरा है इस पर हम नहीं सोचेंगे , गिलास कितना खाली है यहीं हमारा ध्यान जाता है .कर्तव्य से हमारा वास्ता कम ,हमें तो अपने अधिकारों की ही चिंता है ।
यह प्रवृत्ति बदले ,दूसरों का छिद्रान्वेषण हम बंद करें यही हमारे लिए उचित होगा .हम दूसरों की तरह नहीं हो सकते .हम ,हम हैं यह समझें ,अपने को सही राह पर चलाकर ही हम अपना सुधार कर सकते हैं ,
यही हमारे हितमें होगा .अपना दर्पण स्वयं बनें ,अपने गिरेबान में झांकें .अपना हित साधें ,भला बुरा समझें और अपना उध्दार करें .

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