Sunday, April 18, 2010

आदमी को आदमी के प्यार से बांधो .

विद्यार्थी जीवन में हमारे विद्यालय का वातावरण बहुत कुछ साहित्यिक और सांस्कृतिक था .कितने कार्यक्रम हमारे विद्यालय में होते थे ,याद कर आज भी उस पर गर्व होता है .विद्यालय ने सचमुच हमें एक अच्छा विद्यार्थी बनाया .साहित्यिक माहौल वाले अपने विद्यालय की दीवार में लिखी एक कविता आज भी मुझे याद है जिसमे प्रेम की महिमा गायी गई है ।
पूर्णिमा के चाँद को ,ज्वार से बांधो।
सांप को बीन की झंकार से बांधो ।
बांधना गर आदमी को चाहते हो ,
तो आदमी को आदमी के प्यार से बांधो ।
गांधी विचार धारा से प्रेरित हमारे विद्यालय ने हमें बहुत कुछ दिया .धैर्य ,अनुशासन ,आदर सम्मान के भाव और प्रेम हमारे विद्यालय की ही हमको देन है . मानव मूल्यों की पहचान हमें उसी ने दिया .कबीर ,तुलसी ,मीरा ,नानक आदि को हमने भली भांति आत्मसात किया .विद्यालय एवं उसके गुरुजन सचमुच में हमारे लिए आदर्श रहे ,उसका प्रभाव आज तक हमारे मन में है .
मैं आभारी हूँ अपने विद्यालय एवं अपने गुरुजन का ,जो कुछ बन सका या कुछ अच्छा कर सका .

Friday, April 16, 2010

खुशियों का खजाना

दूसरों की तरह मुझे भी खुशियों की चाहत है .ढूंढता रहता हूँ ,कहाँ से मिले खुशियाँ .कभी सुबह के उदय होते सूर्य को देखता हूँ ,कभी चिड़ियों के चहचहाने को सुनता हूँ ,बगीचे के पेड़ों में खिले फूलों को निरखता हूँ ,मन खुश हो जाता है .कार्यालय में पहुँच कर सबको प्रेम से मिलता हूँ ,नमस्कार होती है ,लोगों की मुस्कान से मन प्रसन्न हो जाता है.अपने काम को उत्साह और मन से करता हूँ ,खुशी मिलती है .दोपहर का भोजन अनुराग से करता हूँ ,तृप्ति मिलती है .घर लौटकर अपने परिवार जनों के साथ खुशियाँ बाँट ता हूँ .शाम की बेला में भ्रमण में निकलता हूँ ।
वापस आकर एक और खुशी के खजाने को ढूंढ लेता हूँ ,साहित्य के अध्ययन में मानो मुझे खुशियों का खजाना मिल जाता है .एक नींद में सुबह हो जाती है ।
यही हैं खुशियाँ .अपने आसपास आसानी से उपलब्ध है खुशियाँ .कभी कभी अतीत के संघर्ष पर अपनी विजय पर हर्षित हो लेता हूँ ,नौकरी के दौरान अपनी उपलब्धियों को देख कर बड़ी खुशी मिलती है .सबका स्नेह दुलार ,सम्मान ,प्यार पाकर गौरव होता है .कभी कुछ लिख कर खुश हो लेता हूँ .जब उसे दुसरे पढ़ते हैं ,सराहना मिलती है ,खुशी दूनी हो जाती है .सदा खुश रहने का प्रयास करता हूँ ,यथा संभव चिंताओं को दूर रखने का प्रयास करता हूँ ।
मीठे बोल ,स्नेह ,प्रेम ,लोगों का सम्मान ,प्रकृति दर्शन मुझे अपार खुशियाँ देते हैं .खुशियाँ दें खुशियाँ लें इस सिध्दांत पर मैं भरोसा करता हूँ .हर कहीं खुशियाँ तलाशता रहता हूँ .जीवन खुशियों भरा है यह विश्वास सा हो गया है .हम सब खुश रहें ,खुशियाँ बांटें इन्हीं आशाओं के साथ .

Wednesday, April 14, 2010

नाम की पहचान

वर्षों पहले जब मैं भोपाल आया था ,टी .टी .नगर के पूरे नाम से परिचित न होने के कारण इसे टाटा नगर समझता था .ग्लानि हुई यह जानकर कि यह तात्या टोपे नगर है .तब से आज तक इस सक्षिप्ती कारण का जाल तेजी से फैला है .एम् .पी नगर ,एम् .वी एम् .,एम् एल बी ,सी एम् ,जे .के .रोड आदि हर जगह संक्षिप्त नामों का सिलसिला चलन में है .नगर ,सस्थाएं ,नाम ,उपनाम जिस उद्देश्य को लेकर रखे जाते हैं वह उद्देश्य ही समाप्त हो गया है मानो .महाराणा प्रताप ,तात्या टोपे ,महारानी लक्ष्मी बाई ,मोती लाल ,महात्मा गांधी ,नेहरू जैसे आदर्श ,माननीय प्रसिध्द व्यक्तियों के आदर्शों को मानो इस संक्षिप्तीकरण ने निगल लिया है .आज सब कुछ उलट पलट है ।
क्या हम एक सद्प्रयास यह नहीं कर सकते कि यथासंभव इससे बचें और दूसरों को भी इसकी सलाह दें .अपना नाम भी यथा संभव विस्तार से उपयोग करें .महा पुरुषों का भी पूरा नाम ही उच्चारित करें .अंगरेजी कारण का भूत आखिर कब तक हम पर हावी रहेगा ।
नामों को सार्थक बनायें .नयी पीढी को एक सन्देश दें .अपनी संस्कृति ,अपनी परंपरा का सम्मान बढ़ाएं ।
कहिये आप तैयार हैं ? मेरा विनम्र अनुरोध स्वीकारेंगे ?
तो फिर आज से ,अभी से तैयार हो जाइये ,शुरू कर दीजिये नामों का विस्तार .नामकरण का उद्देश्य पूरा होगा .महापुरुषों की आत्माएं हमें आशीष देंगी .युवा पीढी उनसे परिचित होगी ,उन्हें जानने समझने को उत्सुक होगी .और यही उद्देश्य था नामकरण का .तब हमारे नाम की सही पहचान होगी .

Tuesday, April 13, 2010

वैशाखी पर्व शस्य श्यामला पंजाब की भूमि का मौज मस्ती वाला पर्व है .लहलहाती फसल देख पंजाबी किसान झूम उठता है ,पैर थिरकने लगते हैं ,भांगड़ा में वह मस्त हो जाता है .वीर बहादुर यह कौम सदियों से अपने साहस,शौर्य और बलिदान के लिए जानी जाती है .
मुग़ल और ब्रिटिश शासन के दौरान संघर्ष के इनके अनेक किस्से प्रचलित हैं .वैशाखी पर्व का यह दिन इसलिए भी याद किया जाता है कि आज के ही दिन १९१९ में ब्रिटिश शासन के एक प्रतिनिधि द्वारा जलियांवाला बाग में लोमहर्षक कांड रचा गया था .एक जलसे में शामिल सैकड़ों निहत्थे लोगों को क्रूर नराधम जनरल डायर ने इसी जगह पर भूनवा डाला था . विश्व इतिहास में शायद ही ऐसी नृशंस हत्या का उदाहरण मिले .ब्रिटिश शासन का न्याय तो देखिये .उसे सम्मानित किया गया था इस कार्यवाही के लिए .वह जिन्दा रहा बिना पश्चाताप के ,लगभग छह साल .आखिरी तक वह यह कहता रहा कि मुझे नहीं मालूम कि मैंने सही किया या गलत .आखिर कुदरत ने उसे सजा दी ,वह अपना आख़िरी समय लकवा ग्रस्त रहकर ही बिताया ।
कितने लोग आज उन शहीदों को याद करते हैं ,क्या उनकी कुर्बानी हम भूल गए ? वर्षों बाद उनकी स्मृति में स्मारक बनाया गया उस बाग में .इस दिन वहां अमर शहीदों को श्रध्दांजलि दी जाती है .कैसे आज हम उस स्वतंत्रता संग्राम को भूले जा रहे हैं जिससे हमें आजादी मिली ।
प्रसिध्द लेखिका और पत्रकार मनोरमा दीवान ने लिखा है कि देश की आजादी पर पंडित नेहरू द्वारा संसद भवन पर फहराया गया तिरंगा झंडा ऐसा गायब हुआ कि आज तक नहीं मिल पाया .आश्चर्य होता है उनके द्वारा यह जानकर कि आजाद भारत में सार्वजनिक तौर पर १९५६ तक ब्रिटिश शासन के अन्याय ,उनके अत्याचार ,उनके अमानुषिक कृत्यों पर वक्तव्य की मनाही थी ।
आज भी ब्रिटिश काल के प्रतीक चिन्हों को हम ढोएजा रहे हैं .हमारे शहीद हमसे भूले भुल्वाये जा रहे हैं .हमारा संविधान भी क्या वास्तव में स्वदेशी है ?सोचना पड़ रहा है ।
एक पीड़ा सी उठ रही है आज के दिन ,इसी लिए लिखने बैठ गया कि आप के साथ बाँट लूं इसे .शायद अपनी सोच का कोई साथी मिल जाये . उन शहीदों के प्रति विनम्र श्रध्दांजलि .

Monday, April 12, 2010

हाँ अब बेटियां जन्म लेंगी

और बेटी ने जन्म लिया ,
बजी थालियाँ ,ढोलक की थापियाँ ।
घर परिवार को मिली बहुत बहुत बधाइयाँ ।
खिलती ,खिलखिलाती ,
बेटी बढ़ती गई ,
उम्र दर उम्र ,
परिवार के सहयोग ,स्नेह से
वह बहुत आगे बढी।
शिक्षा के उच्च पायदान चढी ।
भारतीय पुलिस सेवा में ,
वह दूसरी किरण बेदी बनी ।
वह आज उच्च पद पर है .
परिवार जनों का स्नेहित कर
उसके सर पर है ।
वह उसका घर आज सम्मानित है ।
माँ,अपनी साधना ,अपनी उपलब्धि ,
पर हर्षित है ।
आसपास जब माँ की नजर ,
पूतों वाली माँओं पर पड़ती।
एक टीस मन में उभरती ।
देखती उन्हें निर्वासित ।
विधवा या वृध्दाश्रम में स्थापित ।
शब्द फूटते होंठों से ,
इन माँओं के बेटों से तो
बेटियां भली ।
कम से कम ये तो ,
न जातीं छलीं।
काश अब बेटियों का ,
जन्म घर समाज में ,
बोझ न बने ।
बेटे बेटियां बराबर में ,
परिवार स्नेह रस में सनें ।
हाँ ,अब बेटियां जन्म लेंगी ।
नहीं होंगी भ्रूण हत्याएं ,
वे सकुशल जन्मेगी ।
इस समाज ,इस देश को ।
और किरण बेदी ,और कल्पना चावला ,
अवश्य देंगी ,अवश्य देंगी .

Saturday, April 10, 2010

आस्थाओं पर प्रहार क्यों ?

आज कल आये दिन यह देखा जाता है कि धर्मों पर उलटे सीधे आक्षेप लगाये जाते हैं .हमारे आराध्य ,देवी देवताओं एवं प्रतीकों पर अनावश्यक टिप्पणी करना मानो शगल सा हो गया है . राम ,कृष्ण ,गणेश एवं अन्य हिन्दू देवी देवताओं पर निरंतर अभद्र टिप्पणी की जा रहीं हैं .ब्रिटिश काल में तो यह सब होता ही था लेकिन स्वतन्त्र भारत में भी यह सब जारी है.धर्म निरपेक्षता की आड़ में भी यह सब चल रहा है .कभी राम सीता को भाई बहिन बताना ,कभी द्रौपदी के चरित्र पर उंगली उठाना ,कभी ऍम .ऍफ़ .हुसेन जैसे विवादास्पद चित्रकारों द्वारा अश्लील चित्र हमारे आराध्यों के बनाना आखिर किस बात का संकेत है ?
कुछ समय पूर्व दक्षिण की कोई अभिनेत्री खुशबू के लिव इन रिलेशन के बयान पर सुप्रीम कोर्ट के माननीय न्यायाधीशों की कृष्ण राधा के संबंधों पर की गई टिप्पणी दुखद है .ये अंगरेजी पढ़े लिखे तथाकथित बुध्दिजीवीयों द्वारा की जा रही ये टिप्पणियाँ इनके मानसिक दिवालियापन की ही शायद उदाहरण हैं ।भारतीय दर्शन ,रामायण ,महाभारत का शायद इनको सतही ज्ञान हो या शायद वह भी नहीं .पश्चिम को ये बहुत जानते हों पर भारत को नहीं .एम् .ऍफ़ .हुसेन जैसे विकृत मानसिकता के चित्रकारों की पैरवी तो भारत सरकार करती ही है पर तसलीमा नसरीन को भारत में सुरक्षा भी नहीं मिलती है और सलमान रश्दी की रचनाओं पर पाबंदी लगती है .यह कैसा सर्व धर्म सद्भाव और कैसी धर्म निरपेक्षता ?
भगवान इन्हें सद्बुध्दि दे यही प्रार्थना है ताकि देश बचा रहे .

Sunday, March 14, 2010

बाजारवाद की उपज ये ढोंगी बाबा

हाल ही में बहुत से ढोंगी बाबाओं की पोल खुली है .धर्म के नाम से ,संतों के नाम से ,ईश्वर के नाम से अंध श्रध्दालु भोले भक्तों को ठगने वाले ये इच्छाधारी बाबा ,नित्यानंद बाबा ,कृपालु जी महाराज जैसे बाजारवाद की उपज तथाकथित पाखंडी बाबाओं की जितनी भी भर्त्सना की जाये वह भी कम है .रातों रात लखपति ,करोड़ पति बन कर ,सुख सुविधा बढाकर ,भोग विलासमय जीवन जी रहे हैं .यही स्थिति हमारे तथाकथित शंकराचार्यों की है .शाही रहन सहन अपनाकर आखिर ये हिन्दू समाज का क्या भला कर रहे हैं ?
बाजारवाद ने मानो सारी नैतिकता को ताक पर रख दिया है . नेता ,अधिकारी के साथ साथ बाबा लोग भी अपना धंधा चला रहे हैं ।
क्या कानून इन पकडे गए लोगों को उचित सजा देगा ? इन सब की मिलीभगत की क्या पोल खुल खुलेगी ?यह अभी देखना है .या फिर स्थिति ढ़ाक के तीन पात ही होगी .फिर उनका धंधा चल निकलेगा .